स्मार्ट आईने में शिमला

By: Jan 12th, 2017 12:01 am

शिमला के साथ स्मार्ट शब्द किसी नई पहचान का फलक नहीं है, लेकिन आजादी के बाद की निरंकुश हवाओं ने माहौल बिगाड़ दिया। रात को जगमगाता शहर जब सुबह के आईने में खुद को निहारता है, तो हजारों चीखें सुनी जा सकती हैं। बेशक अब कसौटियां पुनः देश के स्मार्ट होते शहरों में शिमला को परख रही हैं, लेकिन प्रकृति की बाहों में बसे इस शहर की नसों में हमने इतना कंकरीट भर दिया कि परिवेश को फिर से सजाने की चुनौती तसदीक हो रही है। शहरी प्रबंधन से सियासी बंधन तक प्रदेश की राजधानी में बने हर नासूर को दूर किए बिना शिमला का स्पर्श स्मार्ट नहीं होगा। यह शहर तब चीखा जब पानी के हर कतरे पर पीलिया काबिज होने लगा और अब भी बर्फ के शृंगार में विधवा हुई व्यवस्था के कारण एक बार फिर शिमला का तेज तिरोहित हुआ। शिमला के वजूद में हिमाचल को बहुत कुछ साबित करना है और यह इसलिए भी कि शहरीकरण के मानक यहीं से निकल कर अन्य शहरों को संबोधित करेंगे। यह दीगर है कि राजधानी से पहले धर्मशाला ने स्मार्ट होने की योजनाओं में देश की महत्त्वाकांक्षा को जीत लिया, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि शिमला का रोड मैप भी एक समान होगा। जो योजनाएं धर्मशाला के लिए मंजूर हुईं, उनसे कहीं आगे एक बसे-बसाए, आबादी घनत्व में आगे और विस्तार की ऊंचाई पर स्थित शिमला का अपना एक खाका और संघर्ष है। जाहिर तौर पर स्मार्ट होते शिमला की निगाहों में राजधानी होने का अर्थ और अतीत का रिश्ता कायम रखने की सौगंध के साथ-साथ इसके दायरे में आधा दर्जन उपनगरीय व्यवस्था का सामर्थ्य जोड़ना होगा। प्रमुख रूप से शहरी प्रबंधन, योजना-वित्तीय प्रबंधन, अधोसंरचना विकास, नागरिक सुविधाओं में विस्तार के अलावा जीवन मूल्यों में सुधार की गुंजाइश है। शिमला नगर निगम को महानगरीय व्यवस्था के कुशल चितेरे के रूप में अपने अस्तित्व में नए रंग भरने होंगे और ढर्रे के बाहर निकलकर विकल्पों पर मेहनत करनी होगी। यह आवश्यक है कि शिमला विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ नगर निगम को रेखांकित किया जाए, ताकि विधायक की प्राथमिकताएं भी शहर के नक्श-ए-कदम से जुड़ें। स्मार्ट सिटी के सूचना पट्ट पर शिमला को अपनी जरूरतों और मांगों पर गौर करते हुए सर्वप्रथम अपनी सफाई, पेयजल तथा विद्युत आपूर्ति के अलावा जल निकासी को सौ फीसदी दुरुस्त करना होगा, जबकि नागरिक अपेक्षाओं के समाधान भी तराशने होंगे। यह सही है कि शिमला की रूह आज भी माल रोड से रिज तक तफरीह करती है, लेकिन अब इसकी फैली हुई बाहों में शहर को साबित करना होगा। शिमला के भूगोल, इतिहास, भू-गर्भ के साथ मानव व्यवहार को जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि इस स्थान की आत्मा को जिंदा रखने की यही निशानी तय करेगी कि स्मार्ट होने की असली वजह क्या है। जो सवाल शिमला से एनजीटी ने पूछे या इसकी शहरी क्षमता से जुड़ते हैं, उनका हल स्मार्ट सिटी की जिरह भी है। यानी हम स्मार्ट शिमला के नागरिकों की शुमारी को कहां तक ले जाना चाहते हैं। हमारा मानना है कि शिमला को अपने ही वजूद से कुछ चिन्ह और बोझ हटाना और राजधानी के दबाव को भी घटाना होगा। सर्वप्रथम शिमला-सोलन के बीच एक कर्मचारी नगर का विकास अब समय की मांग है, ताकि राजधानी का एक बड़ा हिस्सा खुद को नए सिरे से रेखांकित करे। कर्मचारी नगर की आवासीय व्यवस्था के साथ कार्यालय परिसर तथा ट्रांसपोर्ट शहर विकसित होने से शिमला को अतिरिक्त स्थान, विकास का अभियान तथा ट्रांसपोर्ट का नया नेटवर्क स्थापित करने का अधिमान मिलेगा। शिमला के हर प्रवेश द्वार से पहले अलग-अलग दिशा में बस स्टैंड स्थापित करके आगे की परिवहन व्यवस्था, एरियल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क से जुड़े तो नागरिक सुविधा के अलावा शहर की सबसे बड़ी जरूरत पूरी होगी। शिमला को यह भी तय करना है कि शहर के बीच धरोहर, पर्यटन, राजधानी व व्यवसाय के हिसाब में किसका कितना हिस्सा बरकरार रहे। यानी पर्यटन और राजधानी का रुतबा बचाना है, तो कई अनावश्यक कार्यालय, कुछ फासले पर कर्मचारी नगर या अन्य जिला मुख्यालयों में स्थानांतरित करने होंगे। स्मार्ट सिटी का प्रारूप केवल नगर निगम की हैसियत से तय नहीं होगा, बल्कि हिमुडा, पर्यटन, कला, भाषा व संस्कृति, वन, पीडब्ल्यूडी, आईपीएच व परिवहन विभागों के आपसी तालमेल से ही राजधानी की धमनियों को सही तरीके से संचालित किया जा सकता है। शिमला की श्रेष्ठता और आकर्षण की कसक को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने के लिए पर्यटन अधोसंरचना को पुनः लिखना पड़ेगा। कान्वेंशन सेंटर, सामुदायिक मैदानों के अलावा राजधानी के स्तर की हवाई पट्टी का संचालन आवश्यक हो जाता है।


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