अछूते स्थलों तक पहुंचे पर्यटन की राह

By: Jan 18th, 2017 12:02 am

( सतपाल लेखक, एचपीयू में शोधार्थी हैं )

हिमाचल के लगभग सभी जिलों में पर्यटन के विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं, परंतु सही मायनों में पर्यटन विकास कुछ क्षेत्रों तक सिमित रहा है,  फिर चाहे चंबा का खजियार हो, डलहौजी, शिमला, कांगड़ा का धर्मशाला या कुल्लू का मनाली क्षेत्र। आज हम अंग्रेजों द्वारा स्थापित इन्हीं पर्यटन का ही फायदा प्राप्त कर रहे हैं…

हिमाचल प्रदेश हिमालय की गोद में बसा एक सुंदर व दर्शनीय स्थल है। यह केवल भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में अपनी अनूठी प्राकृतिक सुंदरता के लिए एक अलग पहचान बनाए हुए है। हिमाचल में भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधता, स्वच्छ वातावरण, बर्फ से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़, कल-कल बहते झरने व नदियां, विभिन्न ऐतिहासिक स्थल एवं स्मारक तथा इन सब से ऊपर यहां के ईमानदार व मिलनसार स्वभाव के लोग पर्यटन के विकास में सहायक संसाधन मौजूद हैं। इतना ही नहीं, धार्मिक महत्त्व रखने वाले कई स्थल भी हैं, जहां वर्ष भर पर्यटक आते-जाते रहते हैं। ऐसे में अगर पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो अपने विशिष्टतम प्राकृतिक गुणों के कारण यहां पर्यटन विकास के अपार स्रोत हैं, जिनकी वजह से पर्यटन को राज्य की आर्थिकी का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता रहा है। इसका अनुमान इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र का योगदान आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2015-16 के अनुसार 7.2 प्रतिशत है, जिसे बहुत महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। हिमाचल के लगभग सभी जिलों में पर्यटन के विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं, परंतु सही मायनों में पर्यटन विकास कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहा है, जैसे कुल्लू जिला का मनाली क्षेत्र। पर्यटन की दृष्टि से यह स्थल आज इतना प्रसिद्ध है कि इसे पर्यटन नगरी के नाम से जाना जाता है। जिला के दूसरे क्षेत्र एक जैसी भौगोलिक विशेषताओं के बावजूद पर्यटन को विकसित करने में पीछे रह गए। चंबा जिला का डलहौजी क्षेत्र व मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाने वाला खजियार भी पर्यटन स्थलों की दृष्टि से विश्व के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बनाए हुए हैं, लेकिन दूसरी और चंबा जिला के दूसरे क्षेत्र काफी पीछे रह गए। ठीक इसी प्रकार कांगड़ा जिला के धर्मशाला व बीड़-बिलिंग ने भी हिमाचल पर्यटन को एक नई दिशा दी है। प्रदेश के दो कबायली जिले किन्नौर व लाहुल-स्पीति में पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद पर्यटन की दृष्टि से हमने इनका दोहन तो किया है, परंतु यहां पर्यटन को विकसित करने में कोई अहम कदम नही उठाया।

इसी उदासीनता की वजह से यहां के स्थानीय लोगों के जीवन पर पर्यटन से कुछ खास असर देखने को नहीं मिलता। इन क्षेत्रों में हम अधोसंरचनात्मक विकास करने में भी अब तक असफल रहे हैं, जिसके अभाव में आज भी इन क्षेत्रों के लोग काफी कठिन जीवन जीने में मजबूर हैं। जिला शिमला की अगर बात करें, तो यह जिला पूरे विश्व में अपनी अनूठी सुंदरता के लिए अपनी छाप छोड़े हुए है। जिला का मुख्यालय व आसपास के क्षेत्र, जैसे कुफरी, नालदेहरा, नारकंडा इत्यादि ऐसे क्षेत्र हैं, जो पर्यटकों को गर्मी के मौसम में भी सर्दी का एहसास दिलाने की क्षमता रखते हैं। ऐसी जलवायु को ध्यान में रखते हुए ही अंग्रेजी शासकों ने शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया था। इसी वजह से शिमला पर्यटन की दृष्टि से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि जितने भी पर्यटक स्थलों का वर्णन हमने अभी तक किया, इन सब क्षेत्रों को अंग्रेजों द्वारा पर्यटन की दृष्टि से पहचान दिलाई गई, फिर चाहे चंबा का खजियार हो, डलहौजी, शिमला के आसपास के क्षेत्र, कांगड़ा का धर्मशाला या कुल्लू का मनाली क्षेत्र। आज हम अंग्रेजों द्वारा स्थापित पर्यटन का ही फायदा प्राप्त कर रहे हैं। हमने अपने सारे स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से सतत दोहन न करके उनका शोषण किया है। उदारहण के तौर पर शिमला से लगते कुफरी व नालदेहरा को ही ले लीजिए। ये प्राचीन समय से ही रमणीक स्थलों में शामिल हैं, परंतु इन्हें भी हमने उपेक्षा के सिवाय कुछ नहीं दिया। इसी बात को ध्यान में रखते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने हाल ही में कुफरी पर्यटन स्थल को कश्मीर की तर्ज पर विकसित करने काआदेश दिया है। ऐसे में नीति-नियंताओं को चाहिए कि हिमाचल प्रदेश में वर्तमान के जिन क्षेत्रों में भी पर्यटन संभावनाएं अभी तक अछूती रही हैं, उन्हें परिणाम में बदला जाए। इससे पर्यटन की दृष्टि से उपेक्षित क्षेत्रों को भी प्रदेश के पर्यटन के मानचित्र में अंकित किया जा सकेगा।

हिमाचल अपने यहां पर्यटन को एक ब्रांड के रूप में विकसित करने में असफल रहा है, ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश के दूसरे राज्य जैसे उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, केरल, गोवा, तमिलनाडु इत्यादि राज्यों ने अपने पर्यटन को ब्रांड व ट्रेडमार्क के रूप में पेश किया है, जिससे इन राज्यों को काफी सफलता भी मिली है। अतः हमें भी इन राज्यों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। प्रदेश में भौगोलिक स्थिति अनुकूल नहीं है, जिसके कारण यहां यातायात की समस्या से पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी दो चार होना पड़ता है। सबसे पहले हमें अपने अधोसरंचानात्मक ढांचे को मजबूत बनाने की जरूरत है। जहां तक रही ब्रांड व ट्रेडमार्क की बात, तो हिमाचल को प्रकृति से ही बहुत कुछ मिला है, सिर्फ उसके सतत दोहन की जरूरत है। प्रदेश में मौसम गर्मी का हो या सर्दी का, पर्यटकों का हुजूम हर मौसम में देखने को मिलता है। गर्मी के मौसम में पर्यटक गर्मी से निजात पाने के लिए यहां आते हैं व सर्दी के मौसम में बर्फ की सफेद चादर ओढ़े पहाड़ों के मनमोहक दृश्य की झलक पाने के लिए। अतः हमें तो प्रकृति ने एक सुंदर व स्वच्छ वातावरण के रूप में पर्यटन ब्रांड के रूप में एक अनमोल तोहफा प्राप्त हुआ है, जरूरत है तो उसके सतत दोहन की। अगर ऐसा होता है, तभी प्रदेश का नाम पर्यटन स्थलों की सूची में अव्वल स्थान पर पहुंच पाएगा व पर्यटन दृष्टि से उपेक्षित स्थलों के विकास के द्वार भी स्वतः ही खुल जाएंगे।

ई-मेल : satpal.khoond@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App