अपेक्षाओं के विपरीत

By: Jan 18th, 2017 12:01 am

( अनिल कुमार जसवाल, ऊना रोड, गगरेट )

130 करोड़ के करीब आबादी वाला भारत आज वश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, जबकि आज भी कुल धन का एक बड़ा हिस्सा काले धन के रूप में है। भारत में काले धन की व्यवस्था को समानांतर अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। इसका सरल सा अर्थ है कि जितना सफेद, उतना ही काला धन है। इस काली संपदा के कारण सरकार इसका उपयोग नहीं कर पाती है। इस कारण अमीर आदमी तो और अमीर हो रहा है, तो गरीब और गरीब होता जा रहा है। इस समस्या से निपटने को हाल ही में सरकार ने नोटबंदी का कदम उठाया। करीब 86 फीसदी करंसी को सिस्टम से बाहर निकाल दिया। जाहिर है कि अगर किसी इनसान का 86 फीसदी खून निकाल लिया जाए, तो उसके जीने की संभावना नगण्य होगी। इस नोटबंदी के परिणाम से लोगों के पास कैश ही ऩहीं रहा और जरूरत के समय पास नकदी न होने से कई मुश्किलों को भी सामना करना पड़ा। इससे छोटे दुकानदारों का काम-धंधा चौपट हुआ, क्योंकि बाजार में ग्राहक नहीं रहे। इससे दिहाड़ीदार अपने गांव की ओर पलायन करने लगे, जिससे कारखानों में मजदूरों की भारी कमी हुई और कई कारखाने बंद भी हुए। इससे देश की जीडीपी दर में भी गिरावट संबंधी आकलन सामने आ रहे हैं। अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। दूसरी तरफ किसानों को फसल बोने के लिए पैसे की जरूरत थी, लेकिन पर्याप्त नकदी उपलब्ध न होने पर इन्हें भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नोटबंदी कई बातों को लेकर सरकार के अनुमान से विपरीत परिणाम लेकर आई। अब जो हुआ सो हुआ, परंतु आगे से सरकार को पूरे देश की राय करके ही ऐसी नीति बनानी होगी, जिससे जनता को थोड़ी सी भी परेशानी न हो।

 


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