आओ बर्फबारी मनाएं

By: Jan 9th, 2017 12:02 am

मौसम खुद ही एक कयास है और अगर इसी बीच किसान-बागबान की अरदास मंजूर हो जाए, तो समय का हर चक्र हमारी आशाओं की मन्नत पूरी करता है। हिमाचल के लिए मौसम की एक विशाल चादर के रूप में पर्वत शृंखलाएं अपना वृतांत देती हैं और अगर सफेदी का आलम दिखाई देता है, तो खुशहाली का एक स्वर्ग हाजिरी भरता है। एक लंबे सूखे के बाद अंततः उदास पहाड़ पर फिर बर्फ ने अपनी बाहें फैलाईं, तो मौसम की चांदनी ने सभी को मोहित कर लिया। देरी से ही सही, मगर सर्दियों के हिमाचली मायनों से झांकती प्रकृति ने फिर इन करवटों को कबूल किया। पूर्वानुमानों के रेगिस्तान में बारिश, बर्फ और पानी एक साथ जिंदगी को सींचने लगे, वरना इंतजार की हर घड़ी बेचैन करती रही। किसान के बीज खेत में ठहर गए, तो बागबान की सारी मेहनत आसमान को बेसब्री से देखती रही। खिसकते मौसम की परतों ने पर्वत को मुजरिम बना दिया और नदी-नाले भी अपने वजूद के आईने में सिकुड़ गए। मौसम फिर मेहरबान हुआ तो ताबूत से बाहर निकल आई आशाएं और प्रकृति ने शृंगार के हर विकल्प को चूम लिया। हिमाचल को बर्फ का घर इसीलिए कहा गया, क्योंकि जब तक बर्फबारी न हो प्रदेश की अभिव्यक्ति नहीं होती। पहाड़ चमकते हैं, तो घाटियां नाचती हैं और यही संदेश लेकर नदियां मैदान की तरफ भागती हैं। विडंबना यह कि किसी बांध को मालूम नहीं होता कि मौसम का हुस्न क्या होता है, लेकिन पहाड़ खुद को इसी के साथ मजबूत करता है। प्रकृति की मरम्मत में मौसम का मरहम लगता है, तब सामने इनसानी बस्तियां भी शरीक होती हैं। लगातार बर्फबारी की कवायद में जिंदगी अपने विराम पलों को जी कर भी मन्नत मांगती है कि पहाड़ लदे रहें और ग्लेशियर आकार में बढ़ जाएं। दूसरी ओर सियासी बहस के लाल किनारों पर किसी बांध की ऊंचाई या जोड़ नहर की लंबाई का जिक्र होता है, मगर देश नहीं सोचता है कि बर्फ के आगोश में पर्वतीय जीवन का संयम अपने आप में कितना बड़ा योगदान है। आश्चर्य यह कि बांध में पानी की गहराई और नहर की रफ्तार में पानी को देखा जाता है, मगर पहाड़ पर बर्फ के आकार में कुछ नजर नहीं आता है। यही अंतर है मौसम को पर्वत या मैदान पर खड़े होकर समझने और इसके साथ जीने का। लगातार कई दिनों से हिमाचल अपने देवभूमि होने के कारण मौसम की प्रार्थना में धार्मिक अनुष्ठानों में व्यस्त था, तो गूर परंपराएं अपने संबोधनों की हर पेशकश में आग्रह करती रहीं। यकीनन मौसम अगर अनुकूल हुआ, तो बर्फ के साथ जीने की मजबूरियों से कबायली तथा दुरूह क्षेत्रों में कठोरता का दौर भी शुरू हुआ। बर्फ की चादर के नीचे जिंदगी के तहखानों का मतलब क्या होता है, यह कोई हिमाचल से पूछे कि किस तरह मौसम की परीक्षा से रू-ब-रू हुआ जाता है। न जाने कितनी सड़कें बर्फ के कारण अपनी मंजिल भूल गईं और खाद्य आपूर्ति के मार्ग अवरुद्ध हुए। राजधानी शिमला की छत से टपकती बर्फ, लेकिन आंचल में पानी नहीं। विद्युत राज्य की लबालब क्षमता के बावजूद शिमला की आपूर्ति पर बर्फ का डाका और इसी के साथ पर्यटन खिल उठा। मौसम की ऐसी अनूठी अनुभूति केवल हिमाचल ही दे सकता है, इसलिए बर्फ की पलकें खुलती हैं तो सामने कितने ही पर्यटक दौड़े चले आते हैं। बर्फबारी को मनाने की फुर्सत और नसीहतों के बीच झूमते पर्यटन को महसूस करते हिमाचल की आर्थिकी भी नाचती है। बर्फबारी में शिमला, मनाली या डलहौजी का नशा अपनी कंपा देने वाली सर्दी के मुकाबले अधीर और जोशीला है। बर्फबारी की यही अदा जब फल के पौधों पर बैठ कर गीत सुनाती है, तो बागबान की मेहनत में नशा भर जाता है। वाकई हिमाचल में सर्दी भी एक नशा है और जब इंतजार के बाद मौसम अपना चक्र घुमाता है, तो बर्फ घुंघरू पहन लेती है और बारिश नाचने लगती है। प्रकृति खुद को समेटे पर्यावरण की ढाल बनकर पेश होती है, तो इनसान भी सीखता है और गणित करता है कि कितनी बर्फ आवश्यक है जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए।


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