आपदा से गायब प्रबंधन
( वर्षा शर्मा, पालमपुर, कांगड़ा )
हिमाचल में बर्फबारी के पांचवें दन भी अगर जनजीवन पूरी तरह से सामान्य नहीं हो पाया है, तो इस बात की पड़ताल बेहद आवश्यक हो जाती है कि आखिर चूक कहां पर हुई। इन नाकामियों के बीच यदि मुख्यमंत्री प्रशासन को लताड़ते हैं, तो कोइर् हैरानी नहीं होनी चाहिए। सबसे ज्यादा तरस तो उस प्रबंधन पर, जिससे आम तौर पर किसी भी आपदा के बाद जनता को राहत पहुंचाने की उम्मीद रहती है। देखकर हैरानी होती है कि पांच दिनों के इस समूची आपदाग्रस्त तस्वीर में प्रबंधन के कहीं दर्शन नहीं। प्रदेश के आपदा प्रबंधन बोर्ड ने अगर अपनी पूर्व तैयारियों में कुछ गंभीरता दिखाई होती, तो यकीनन प्रभावित क्षेत्रों में हालात को सामान्य बनाने का सिलसिला इतना लंबा नहीं खिंचता। यही वजह है कि इस पर्यटक सीजन में जहां कारोबारियों को भारी लाभ होने की उम्मीद थी, बिजली, पानी या यातायात सरीखी मूलभूत सुविधाओं के प्रभावित होने से वह औंधे मुंह गिरी। दुखद यह भी कि जो पर्यटक जहां अपना कुछ समय गुलजार करने के लिए आए थे, उन्हें अंधेरे में ही ठंडी रातें गुजारनी पड़ीं। इस तरह के प्रतिकूल अनुभव लेकर लौटने वाले पर्यटकों से क्या यह पूछने की हिम्मत हमारे शासन-प्रशासन में है कि आप यहां दोबारा कब आओगे? बेशक आपदा के बाद जनजीवन बहाल करने में कुछ मुश्किलें तो पेश आती ही हैं, लेकिन एक दिन की बर्फबारी के बाद चार दिन मौसम साफ रहने पर भी यहां जीवन दुरूह है, तो समूची व्यवस्था सवालों के कठघरे में खड़ी नजर आ रही है।
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