एक मां है और एक यह सरकार!

By: Jan 19th, 2017 12:01 am

( सुरेश कुमार, योल )

कल के समाचार में खबर पढ़ी कि मंडी के घाट की एक महिला अपने 7 दिन के बीमार बच्चे को लेकर 22 किलोमीटर बर्फ में पैदल चली। पढ़कर कलेजा कांप गया और जिन पर यह सब गुजरी, उनका क्या हाल हुआ होगा। सोचकर ही लगता है कि हिमाचल में राजनीति के सिवाय कुछ भी नहीं है। घोषणाएं एम्स तक की हो चुकी हैं और वर्तमान वाकया बताता है कि हम अभी पिछली सदी में ही जी रहे हैं। क्या किसी सरकारी नुमाइंदे ने भी यह समाचार पढ़ा होगा। पढ़ा भी होगा, तो पढ़कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया होगा। क्योंकि राजनीति में आने के बाद भावनाएं मर जाती हैं। कल ही मैने मुख्यमंत्री के काफिले को पास से गुजरते देखा और साथ में देखीं 25-30 गाडि़यां, जो हूटर बजाती हुईं पल में गुजर गईं। ये गाडि़यां कोई मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए नहीं थीं, बल्कि अपनी-अपनी पैठ बढ़ाने के लिए थीं। कर्ज में डूबे प्रदेश की फिजूलखर्ची की एक झलक देखकर मैं समझ गया कि प्रदेश के कर्ज में डूबने का कारण यही है। मंडी के घाट जैसे हालात को क्या लेना है करोड़ों के बजट से और आए दिन होती घोषणाओं को, जब एक मां की ममता की बर्फबारी में परीक्षा होती हो। उनके लिए प्रदेश में स्मार्ट सिटी बनने का और फोरलेन और सिक्सलेन का कोई मतलब नहीं है। जिन्हें जीने के लिए इतना जूझना पड़ता है, उनकी तरफ भी कभी सरकार का रेला निकले। एक दृष्टिहीन की फोटो मुख्यमंत्री के साथ छपी, तो मुख्यमंत्री भी भावुक हो गए और एक समाजसेवी ने अपनी एक आंख दान करने का मन भी बनाया, पर गाड़ी आगे नहीं बढ़ी। हिमाचल के लिए एम्स से भी ज्यादा जरूरी हैं ऐसे लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं । सरकार ध्यान दे कि एक ऐसा हिमाचल भी है, उसे भी साथ लेकर चले।

 


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