कविताएं

By: Jan 9th, 2017 12:05 am

आहुति

अंतर्मन की तुम तह खोलो,

बिन सोचे बिन समझे बोलो।

सोच समझ है होती छोटी,

केंद्र-बिंदु तुम जरा टटोलो।।

शांत-चित्त होकर हे मानव!,

देखो अंदर कितने दानव।

करते क्रीड़ा देते पीड़ा,

काटे कैसे कामी कीड़ा।

कर्णप्रिय गुंजार बहुत हैं,

आकर्षण शृंगार बहुत हैं।

तुझे लुभाएंगे सब मिलकर,

बड़ा सताएंगे सब मिलकर।

इनसे नेह लगाना तुम मत,

खुद को कभी फंसाना तुम मत।

अमृत-रस का दरिया भीतर,

इस दरिया का तुम जल पी लो।

मर- मर कर जीना क्या जीना,

मस्ती में तुम अपनी जी लो।

पीहू पीहू रटन लगाओ,

बाट निहारो दीप जलाओ।

वंदनवार द्वार पर बांधो,

भोगी मन को थोड़ा साधो।

कूकर सूकर बन बैठा जो,

बिन कारण यूं ही ऐंठा जो।

आहुति इसकी दे ही डालो,

भीतर का आनंद मना लो।

अंतर्मन की तुम तह खोलो।

बिन सोचे बिन समझे बोलो।

सोच समझ है होती छोटी,

केंद्र-बिंदु को जरा टटोलो।।

रंज-ओ-गम

मिला है जो उसकी खुशी में,

रंज-ओ-गम छिन जाने का।

रंज-ओ-गम फिर खुशियां लाए, है दस्तूर जमाने का।।

खुशी में पागल होते लोग,

यह तो जाने वाली है।

तोड़े गम और होता सोग,

घड़ी दुखाने वाली है।।

इक सिक्के के दो पहलू ये,

समझो है समझाने का।।

रंज-ओ-गम फिर…

गिरना उठना और संभलना,

चले चलो चतुराई से।

फिसलन है तुम नहीं फिसलना,

तड़पो पीड़ पराई से।।

नीड-निगोड़ा नहीं किसी का,

ठाकुर कौन ठिकाने का।।।

रंज-ओ-गम……

बच्चे लाते घर में खुशियां,

अच्छी लगती किलकारी।

शादी मुंडन मंगल घडि़यां,

सतरंगी है पिचकारी।।

पिचकारी के सतरंगों में, ले आनन्द नहाने का।।।

रंज-ओ-गम…

उबटन खूब लगाओ तन पर,

बांधो मंगल तोरण भी।

झूमो नाचो खेलो गाओ,

यह जीवन हो मधुबन ही।।

लेकिन भाई ठहरो देखो,

यहीं नहीं रम जाने का।।।

रंज-ओ-गम…

बाहर के सब रंग सलोने,

पर रंगीला अंदर है।

हम सब तो हैं खेल-खिलौने,

सच्चा वही सिकंदर है।।

उसकी रहमत पाकर अपना,

दोनों लोक सजाने का।।।

रंज-ओ-गम…


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