क्रिसमस पर सजी कवियों की महफिल

By: Jan 2nd, 2017 12:05 am

जिला भाषा, कला एवं संस्कृति अधिकारी कांगड़ा के कार्यालय में क्रिसमस के अवसर पर कवियों की एक विशिष्ट महफिल सजी। इसमें जिला भर के विभिन्न स्थानों से आए हुए लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक कवि-कवयित्रियों ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता प्रतिष्ठित साहित्यकार डा. पीयूष गुलेरी ने की तथा इसके संचालन की भूमिका में श्रीमती अदिती गुलेरी थीं। कवि सम्मेलन का प्रारंभ मां सरस्वती की पूजा-अर्चना एवं ज्योति प्रज्वलन के साथ डा. पीयूष गुलेरी एवं जिला भाषा अधिकारी प्रवीण मनकोटिया ने किया।

कवि सम्मेलन का आगाज बैजनाथ से पधारीं आरती दीक्षित व तृप्ता देवी की रचनाओं से हुआ। अरुण नागपाल ने ‘कुरुक्षेत्र’ शीर्षक कविता में यों कहा-अभिमन्यु की मानिंद / उठा लिया है। रथ का पहिया/चुनौतियों से लड़ने के लिए। सुप्रसिद्ध कवयित्री चंद्ररेखा डढवाल ने सस्वर अपना गीत यों गुनगनाया- बातें ये अच्छी सारी मियां जी/ कहने-सुनने में प्यारे मियां जी/ जुल्म की पूरी एक सदी पर/ एक ही लम्हा भारी मियां जी।

श्रीमति संचिता ने बेटियों के संदर्भ में कहा-ये चुलबुल सी ये बुलबुल सी बेटियां/ ये नाजुक सी ये भावुक ही बेटियां। कांति सूद का कथन था-बेशक मंजिल है दूर बहुत/और राह में इतनी कठिनाइयां/फिर भी न रुकने का आदी/मैं चलता गाता जाता हूं। अदिती गुलेरी ने अपनी पारी के निर्वहन में कुछ इस अंदाज में कहा-जो समझ न पाए। वो कहानी हूं-रूहों में जो दौड़े / वो रवानी हूं / न मैं मीरा /न मैं सीता/ न मैं वो दीवानी हूं / ठहरा ले समंदर को / वो लहर का पानी हूं। गोपाल शर्मा ने अपनी पहाड़ी रचना की यों प्रस्तुति दी-छड्ड मांह्णुआं गल्ल पराणी/ मैं नीं भरना तेरा पाणी/ दफ्तरां च कम्म कमांदी/ बिच स्कूलां मैं पढ़ांदी/ मैं नीं रेह्ई हुण गोली बांदी/ मैं हुण होई गेई स्याणी/ छड्डा मांह्णुआं गल्ल पराणी। कवि जीतेंद्र रजनीश, सतपाल, घृत बंदूति और जितेंद्र शर्मा ने हिंदी, हिमाचली और संस्कृत रचनाओं से श्रोताओं को भाव-विभोर किया तो शक्ति राणा शक्ति ने अपने

हिमाचली गीत से माहौल को शांत रस में सराबोर कर दिया। गीत की प्रारंभिक पंक्तियां कुछ इस प्रकार थीं-तेरी जिंदड़ी दे दिन दो चार / कल तोतैं उड़ी जाणा / तथा आती हैं घर में बनके मेहमान बेटियां/ होती हैं घर में महकती मुस्कान बेटियां।

कविवर प्रभात शर्मा की व्यंग्य रचना के बोल थे- ये कैसी आजादी है/ यह सरासर बर्बादी है/ दुश्मन का खतरा कम है अब / अपनों ने ही आग लगा दी है। वर्तमान युग व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत करती हुई डा. वासुदेव शर्मा प्रशांत की रचना की भावाभिव्यक्ति रही-अखबार के कॉलम / कह रहे होते हैं सिसक-सिसक कर कि क्यों उन्हीं के वक्ष पर /मासूम

इनसानों के ताजे खून से/कर दी जाती हैं/ विविध चित्रकारियां। युवा कवि रमेश मस्ताना का कथन था- दुनिया दा अजब नजारा है/ वतीरा नौआं-नौखा न्याय ए े/कोई नीं अपणा है कुसीदा / रिश्तेयां दा खूब खलारा है। सुरेश भारद्वाज ‘निराश’ ने अपनी रचना में पक्षियों को कुछ यों संदर्भित किया-कां-कां करदे कोअ माए / चीं-चीं करदी चिडि़यां / कौलां मुठ क्या खांणी/ फिर-फिर करन घुटारियां। कवि-सम्मेलन के अंत में अध्यक्ष डा. पीयूष गुलेरी ने क्रिसमस और भारत वर्ष के शारदोत्सव के संदर्भ में वैश्विक एकता और समरसता को रेखांकित करते हुए क्राइस्ट के बलिदान को मानवीय संदर्भ में युग-युगों तक आत्मलोचन की प्रेरणा बताया।

उन्होंने शरदोत्सव पर ‘शरद नवोढ़ा’ शीर्षक अपनी रचना यों प्रस्तुत कीः-जन-जन रंजन मन सुखदाई/ देखो शरद नवोढ़ा आई/सज्जित-लज्जित-नयन सुनैना/अकथ कहे अनकहे सुवैना/ठुमक-ठुमक पग भरकर चलती/पुलकायित ऊग-जग को करती/हास-सुहास निवास अधर पर/देती दस्तक जी भर घर-घर/आनंदित-मन हर मन भाई/देखो!! शरद नवोढ़ा आई! सफल आयोजन पर हर्ष व्यक्त करते हुए जिला भाषा अधिकारी प्रवीण मनकोटिया ने अध्यक्ष डा. पीयूष गुलेरी का आभार जताते हुए इस अवसर पर दूर-दूर से आए आगंतुक कवि-कवयित्रियों का धर्मशाला पधारने पर आभार व्यक्त किया।

—हरि कृष्णा मुरारी, रैत (कांगड़ा)


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