खादी के नए गांधी

By: Jan 16th, 2017 12:02 am

खादी एक इतिहास है, एक आंदोलन है और राष्ट्रीय जागृति का एक अभियान भी है। हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान स्वदेशी प्रतीक रही है। खादी सिर्फ कपड़ा, लिबास और फैशन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विचारधारा भी है। खादी एक उत्पाद भी है जो सीधा व्यापार से जुड़ा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं हैं कि खादी आयोग के कैलेंडर और डायरी पर उनका फोटो छपा है। गांधी देश की आत्मा और सांस भी हैं। वह अमूर्त भारत हैं, लेकिन गांधी एक व्यक्ति और अतीत भी हैं। यदि 2017 में कैलेंडर और डायरी पर चरखा चलाते प्रधानमंत्री मोदी का चित्र छापा गया है, तो यह कौन-सा देशद्रोह है? क्या प्रधानमंत्री मोदी गांधी का अनुसरण करते नहीं लगते? यदि चरखे पर कताई करने के बजाय प्रधानमंत्री किसी मशीन पर कपड़ा बुनते दिखाए जाते तो आपत्तिजनक हो सकता था। क्या नए संदर्भ, नए साल, नए परिप्रेक्ष्यों में खादी के प्रवक्ता के तौर पर गांधी भी नया नहीं होना चाहिए? क्या भारत सरकार ने ऐसी कोई अधिसूचना जारी की है कि अब गांधी का नया विकल्प प्रधानमंत्री मोदी ही होंगे? गांधी के नाम पर जो कांग्रेस प्रलाप कर रही है, जो दल और नेता छाती पीट रहे हैं, जो नाथूराम गोडसे से संघ और भाजपा को जोड़ने का अनैतिहासिक काम कर रहे हैं, उन्हें शायद याद नहीं होगा कि गांधी की प्रिय पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ को जवाहर लाल नेहरू ने रद्दी की टोकरी में फेंकने लायक करार दिया था। नेहरू और गांधी परिवार की कांग्रेस सरकारों ने इन दो नामों पर करीब 450 संस्थानों, परियोजनाओं और पुस्तकालयों आदि का नामकरण किया, लेकिन महात्मा गांधी को लगातार भुलाया गया। दूसरी ओर आरएसएस ने गांधी के स्वच्छता और स्वदेशी अभियानों को न केवल अपनाया, बल्कि संगठनों का गठन भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘स्वच्छ इंडिया’ अभियान शुरू किया, तो उसका प्रतीक चिन्ह गांधी का चश्मा रखा गया और उनका संकल्प है कि 2019 में गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त भारत और विकसित देशों की तरह साफ-सुथरे देश की तस्वीर को तोहफे के तौर पर पेश किया जा सके। खादी पर भी गांधी की जगह प्रधानमंत्री मोदी की फोटो क्यों नहीं हो सकती? वह देश का वर्तमान हैं, प्रथम लोकतांत्रिक चेहरा हैं और खादी का एक कपड़ा जरूर पहनने की पैरवी करने वाले ब्रांड एंबेसेडर हैं। गांधी ने भी 1920 के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान खादी को अनिवार्य बनाने की बात कही थी। 1947 में देश के आजाद होने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने खादी ग्रामोद्योग आयोग का गठन किया था। यदि इन परंपराओं को प्रधानमंत्री मोदी तोड़ते या संघ के नाम पर खादी को भी बदरूप करने की कोशिश करते, तो माना जा सकता था कि भाजपा गांधी के अपमान की राजनीति कर रही है। आखिर खादी का नया गांधी सामने क्यों नहीं आ सकता? हरियाणा के स्वास्थ्य और खेल मंत्री अनिल विज ने इस संदर्भ में जो बयान दिया और फिर लोगों की आहत भावनाओं के मद्देनजर वापस ले लिया, सिर्फ उसी के आधार पर राष्ट्रपिता गांधी, प्रधानमंत्री मोदी और संघ-भाजपा के आपसी रिश्तों की व्याख्या नहीं की जा सकती। यदि गंभीरता और तटस्थता से विश्लेषण किया जाए तो अनिल विज ने भी कुछ गलत नहीं कहा था। गांधी के नाम खादी का पेटेंट नहीं है। करंसी नोटों का इस्तेमाल भ्रष्ट और पतित लोग ज्यादा करते हैं, लिहाजा गांधी के चित्र वाली मुद्रा का अवमूल्यन भी हुआ है। सिर्फ पूर्वाग्रह की राजनीति के मद्देनजर विवाद को उस हद तक बढ़ाना सरासर गलत,  अनैतिक और अतार्किक होगा कि मोदी सरकार करंसी नोटों पर से भी गांधी का फोटो हटा सकती है। ऐसा दुष्प्रचार कर देश को भ्रमित नहीं करना चाहिए। उससे मोदी विरोधियों को सत्ता के लायक वोट मिलना संभव नहीं है। गांधी को ऐसे क्षुद्र और घटिया विवादों से अलग रहने दें। अब देश पर गोरे अंग्रेजों का शासन नहीं है। हमें स्वदेशी की आड़ में विदेशी मिलों की कमर नहीं तोड़नी है, बल्कि यह विश्व आज अपेक्षाकृत एक कुटुंब है। हमें कई तरह के समझौते करते हैं। हमें मेक इन इंडिया को भी सफल बनाना है, क्योंकि उससे हमारी जमीन पर उत्पादन बढ़ेगा और रोजगार भी मुहैया होगा। आज हमें अपने वर्तमान को देखना है और भविष्य संवारना है। उसके मद्देनजर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय वस्तुओं का प्रचार करें, तो कुछ भी गलत नहीं है।


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