नीयत का खोट

By: Jan 14th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

टूट गए फिर जुड़ गए, बिखर गए फिर आप,

शीशा बिखरा चौक पर, संभव नहीं मिलाप।

चारा बाबू, आजमी, सुलह कराते रोज,

द्वंद्व युद्ध नित-नित नया, नित पंगों की खोज।

नेता चीखे चौक पर कैसा वाद-विवाद,

बबुआ श्रवण सपूत है, सदा रहे यह याद।

बेटा देता पटकनी, घायल कर दिया बाप,

रामू मस्ती ले रहा, कलियुग का है श्र्राप।

रस्साकशी चली है, कर्ता हैं बेहाल,

एक तरफ श्री क्लेश है, एक तरफ श्री पाल।

मुखिया है वह प्रांत का, नहीं पड़ रही घास,

कैसे हो बर्दाश्त यह, कैसे आए रास।

वो भी अब फुंकारता, चला अढ़ाई चाल,

पापा-चाचू मिल गए, ठोंक रहे अब ताल।

चाचा अमरू शत्रु हैं, दी क्लेश को चोट,

नीति नहीं कुछ भी यहां, नीयत में है खोट।

 


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