नोटबंदी से बिगड़ी भारत की इकॉनोमी

By: Jan 12th, 2017 12:05 am

NEWSन्यूयार्क— अमरीकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने नोटबंदी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को गलत ठहराते हुए अपने आर्टिकल में लिखा है कि भारत में पुराने नोट बंद हुए दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन हालात नहीं सुधरे हैं। इकॉनोमी लगातार बिगड़ रही है। मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर सिकुड़ रहा है। रियल एस्टेट और कारों की बिक्री में गिरावट आई है। मजदूरों, दुकानदारों का कहना है कि कैश की कमी से अब भी मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। इस बात के आसार कम हैं कि नई करंसी भ्रष्टाचार खत्म करने में कारगर साबित होगी। मोदी के फैसले से देश की 86 फीसदी करंसी चलन से बाहर हो गई।  नोटबंदी की कवायद का मकसद यह पता लगाना था कि किसने ब्लैक मनी छिपाकर रखी है या फिर कौन टैक्स बचाकर भ्रष्टाचार कर रहा है। मोदी सरकार ने बाद में कहा कि वह चाहती है कि लोग इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन करें। आर्टिकल में यह भी लिखा गया है कि मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला गलत तरीके से प्लान और लागू किया। बैंक में पैसे जमा करने और निकालने के लिए लोग घंटों लाइन में लगे रहे। सरकार ने नए नोट ज्यादा तादाद में नहीं छापे। इसके चलते उनकी सप्लाई पर असर पड़ा। कैश की कमी की सबसे ज्यादा मार छोटे शहरों और गांवों में पड़ी। आरबीआई के मुताबिक, 23 दिसंबर को 9.2 लाख करोड़ चलन में थे, जबकि 4 नवंबर को 17.7 लाख करोड़। यानी नोटबंदी के एक महीने के बाद बाजार में कैश आधा रह गया। कुछ हफ्ते में ज्यादातर करंसी के बाहर होने से कोई भी इकॉनोमी बैठ नहीं सकती, लेकिन भारत में स्थिति अलग है। यहां 98 फीसदी ट्रांजेक्शन कैश में होती है। हालांकि भारत में डेबिट कार्ड्स और मोबाइल से मनी ट्रांसफर का चलन बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर दुकानदार अब भी इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट नहीं ले रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इस बात की संभावना कम है कि सरकार के नोटबंदी के फैसले और नई करंसी से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। एक बार जब ज्यादा कैश हो जाएगा तो लोग फिर जमा करने लगेंगे। सरकार ने कहा था कि अढ़ाई लाख तक अपने अकाउंट में रख सकते हैं। उन्हें बताना होगा कि इस पैसे का टैक्स दिया गया है। अफसरों को उम्मीद थी कि इन नियमों के चलते काफी ब्लैक मनी बैंक में वापस नहीं लौटेगी। हालांकि भारतीय मीडिया ने कहा कि लोगों ने काफी तादाद में पुराने जमा कराए। इसका मतलब यह हुआ कि या तो ब्लैक मनी बाहर ही नहीं आई या फिर पैसे जमा करने के लिए जमकर टैक्स की हेराफेरी की गई। इसे सरकार नहीं पकड़ पाई।


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