प्रदूषण पर उदासीनता का मनोविज्ञान

By: Jan 17th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

( डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं )

सरकार द्वारा केवल वही सार्वजनिक माल उपलब्ध कराए जाते हैं, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल नहीं कर सकता है, जैसे कानून व्यवस्था एवं करंसी। सरकार द्वारा उन सार्वजनिक माल को हासिल कराने में रुचि नहीं ली जाती है, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल कर सकता है, जैसे साफ पानी तथा हवा। सरकार पर इन्हीं लोगों का वर्चस्व रहता है, इसलिए सरकार द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण करने के सर्वहितकारी कदम नहीं उठाए जाते हैं…

देश के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। लोग बीमार हो रहे हैं, परंतु सरकार निष्क्रिय है। सरकार के इस कृत्य को समझने के लिए प्रदूषण का गरीब तथा अमीर पर अलग-अलग प्रभाव को समझना होगा। अर्थशास्त्र मे दो तरह के माल बताए जाते हैं-व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक। व्यक्तिगत माल वे हुए, जिन्हें व्यक्ति अपने स्तर पर बाजार से खरीद सकता है, जैसे चाय पत्ती, कपड़ा एवं कार। सार्वजनिक माल वे हुए जिन्हें व्यक्ति चाहे तो भी अपने स्तर पर हासिल नहीं कर सकता है, जैसे कानून व्यवस्था, करंसी, पीने का पानी अथवा स्वच्छ हवा। इन माल को स्तर पर हासिल करने में अत्यधिक खर्च आता है। सरकार द्वारा कानून व्यवस्था सुचारू न बनाई जाए, तो व्यक्ति को पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड रखने होंगे, जो कि अति महंगा पड़ेगा। अथवा लेन-देन करने के लिए अमीर स्वयं अपने नोट छाप ले, तो भी दुकानदार उसे स्वीकार नहीं करेगा। रिजर्व बैंक नोट छाप कर अर्थव्यवस्था में न डाले, तो अमीर का धंधा चौपट हो जाएगा। उसे लेन-देन के लिए सोने की गिनीयों का उपयोग करना होगा, जो कि कष्टप्रद होगा। कानून व्यवस्था तथा करंसी ऐसे माल हैं, जिन्हें केवल सरकार ही उपलब्ध करा सकती है। इन्हें व्यक्तिगत स्तर पर हासिल करना बहुत ही महंगा पड़ता है।

दूसरे सार्वजनिक माल ऐसे होते हैं, जिन्हें अमीर द्वारा तुलना में कम खर्च करके हासिल किया जा सकता है। जैसे पीने के पानी को लें। सामान्य रूप से जनता उसी पानी को पिएगी, जिसे सरकार उपलब्ध कराती है। जैसे गांव में पाइप से पानी सप्लाई न हो, तो सभी को कुएं का पानी पीना होगा। यदि कुएं का पानी प्रदूषित हो, तो सभी को उसके प्रभाव झेलने होंगे। लेकिन अमीर द्वारा कुछ खर्च उठाकर अपने घर में आरओ यंत्र लगाकर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। ऐसी ही स्थिति स्वच्छ वायु की है। अमीर को श्वास लेने के लिए स्वच्छ वायु तभी उपलब्ध होगी, जब सरकार फैक्टरियों एवं डीजल कारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए। लेकिन अपने घर तथा दफ्तर में हवा साफ करने के यंत्र लगाकर अमीर स्वच्छ वायु को प्राप्त कर सकता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि इन सभी सार्वजनिक माल को जनता को उपलब्ध कराए। इस कार्य के लिए ही सरकार को कर वसूल करने का अधिकार हासिल होता है। इन माल को सरकार द्वारा उपलब्ध कराने का खर्च कम पड़ता है। जैसे जलकल विभाग द्वारा पानी को साफ करने का खर्च न्यून आता है, उसी पानी को घर में आरओ लगाकर साफ करने का खर्च दस गुणा से भी ज्यादा आता है। इसी प्रकार फैक्टरियों द्वारा उगले जा रहे धुएं पर नियंत्रण करना सस्ता पड़ता है। हर दफ्तर में हवा साफ करने के यंत्र को लगाना महंगा पड़ता है। सामान्य व्यक्ति न तो आरओ लगा सकता है और न ही हवा शोधन करने का यंत्र। अतः उसका एकमात्र सहारा सरकार है।  सरकार इन माल को उपलब्ध न कराए, तो गरीब मारा जाता है।

कुएं का प्रदूषित पानी पीना पड़े तो परिवार के लोग बीमार पड़ते हैं। दवा और डाक्टर का खर्च सिर पर आ पड़ता है। देश का हर नागरिक चाहता है कि सरकार द्वारा उसे साफ पानी और हवा उपलब्ध कराई जाए। वह इस माल का दाम भी अदा करने को तैयार है। मसलन यदि शहर की पानी सप्लाई को साफ करने का खर्च एक रुपए प्रति परिवार प्रतिदिन आता है, तो जनता इस मूल्य को अदा करने को तैयार होगी। 30 रुपए प्रतिमाह देकर वह दवा और डाक्टर के 300 रुपए प्रतिमाह के खर्च से छुटकारा पा जाएगी। जनता से 30 रुपए प्रतिमाह वसूल कर सभी को साफ पानी उपलब्ध कराने में सरकार पर अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ेगा, परंतु अमीर के लिए यह घाटे का सौदा हो जाता है। उसकी फैक्टरी द्वारा गंदा पानी नाले में बहाया जाता है। प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने में उसे करोड़ों का खर्च करना होगा। इसके सामने घर में आरओ लगाने में दस हजार रुपए ही खर्च करने होंगे। इसलिए अमीर के लिए लाभप्रद है कि गंदे पानी को नाले में बहाए और अपने घर में आरओ लगा ले। इसी प्रकार उसके लिए लाभप्रद है कि फैक्टरी से प्रदूषित हवा को वायुमंडल में छोड़े और अपने घर में वायु शोधन यंत्र लगाए। देश के लिए उपयुक्त है कि सरकार जनता से साफ पानी और हवा का मूल्य वसूल करे। उद्योगों पर सख्ती करके उन्हें गंदा पानी नाले में डालने से रोके। प्रदूषण नियंत्रण करने में उनका जो खर्च बैठता है, वह उद्योगों को सबसिडी के रूप में दिया भी जा सकता है। ऐसी व्यवस्था सबके हित में होगी। सामान्य नागरिक द्वारा 30 रुपए प्रतिमाह अदा किया जाएगा और 300 रुपए के दवा और डाक्टर के खर्च की बचत की जाएगी। वसूल की गई रकम से अमीर को सबसिडी दी जाएगी।

प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने व चलाने में जो खर्च आता है, वह उसे मिल जाएगा। उस पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। सरकारी अधिकारियों के लिए भी यह व्यवस्था लाभप्रद है, चूंकि जनता से रकम वसूलने तथा अमीर को सबसिडी देने में उनका धंधा बढ़ेगा। परंतु सबके लिए हितकारी होने के बावजूद सरकार इस व्यवस्था को लागू नहीं करती है। कारण यह कि अमीर को सबसिडी लेकर प्रदूषण रोकने में लाभ कम तथा गंदे पानी को नाले में बहाने में लाभ ज्यादा है। सबसिडी लेकर उसके हाथ कुछ नहीं आता है। एक हाथ से उसे सबसिडी मिलती है, तो दूसरे हाथ से वह रकम प्रदूषण नियंत्रण उपकरण चलाने में खर्च हो जाती है। उसकी बचत शून्य रहती है। तुलना में गंदे पानी को नाले मे बहाना अमीर के लिए लाभप्रद है। प्रदूषण नियंत्रण का करोड़ों का खर्च बचता है और घर में आरओ लगाने का मामूली खर्च वहन करना पड़ता है। इसलिए सबके लिए हितकारी होने के बावजूद सरकार द्वारा पानी तथा हवा के प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया जाता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि कानून व्यवस्था, करंसी तथा साफ पानी व हवा जैसे सभी सार्वजनिक माल जनता को उपलब्ध कराए और इस कार्य के लिए जरूरी रकम जनता से टैक्स लगाकर वसूल करे। इन माल को उपलब्ध कराना सबके लिए हितकारी है, परंतु सरकार द्वारा केवल वही सार्वजनिक माल उपलब्ध कराए जाते हैं, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल नहीं कर सकता है, जैसे कानून व्यवस्था एवं करंसी। सरकार द्वारा उन सार्वजनिक माल को हासिल कराने में रुचि नहीं ली जाती है, जिन्हें अमीर व्यक्तिगत स्तर पर हासिल कर सकता है, जैसे साफ पानी तथा हवा। सरकार पर इन्हीं लोगों का वर्चस्व रहता है। इसलिए सरकार द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण करने के सर्वहितकारी कदम नहीं उठाए जाते हैं।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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