बनें परिवर्तन के वाहक
( सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल )
देश के समग्र विकास का दायित्व केवल केंद्र और राज्य सरकारों का ही नहीं है। इस संदर्भ में हर उस व्यक्ति के कुछ दायित्व बनते हैं, जिसका यह देश है। आज हम सुविधाओं के इस कद्र गुलाम बन चुके हैं कि छोटी-छोटी समस्या या परिवर्तन के लिए भी सरकारों का मुंह ताका जाता है। इन परिवर्तनों में हमारी क्या व्यक्तिगत भूमिका हो सकती है, इसके बारे में हम नहीं सोचते और न ही हमारी कोई योजना रहती है। इस समय समाज बेरोजगारी के थपेड़ों से बेहाल है। न तो सरकार के पास नौकरियां हैं और न ही निजी क्षेत्र के पास स्थायी रोजगार है। सरकारी नौकरियों में सुनिश्चित वेतनमान के साथ सुरक्षित भविष्य की गारंटी जुड़ी हुई है, परंतु अस्थायी नौकरी वालों को काम अनुसार वेतन नहीं मिल रहा है। सरकारी व निजी रोजगार की इस भिन्नता के बीच हमारा शासन-प्रशासन युवाओं के सुरक्षित रोजगार के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पाया है। सरकारी कर्मचारियों को वेतन आयोग दस वर्ष के बाद नए वेतनमान तय करता है, लेकिन निजी नौकरियों में ऐसा कुछ नहीं। नोटबंदी के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भी परिदृश्य बदला-बदला सा नजर आ रहा है। जीडीपी निरंतर घट रही है और वित्तीय घाटा बढ़ रहा है। इसका गहरा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। ऐसे में सरकार ही हर किसी को रोजगार दिला पाएगी या निजी क्षेत्रों में आने वाले कुछ समय में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, ऐसी अपेक्षा बेमानी ही होगी। ऐसे में स्वरोजगार की अछूती संभावनाओं की ओर रुख करके हर बेरोजगार को राष्ट्रीय उत्पादन की वृद्धि में योगदान देना चाहिए।
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