बर्फबारी से सामने आए नाकामियों के निशान

By: Jan 19th, 2017 12:02 am

( कर्म सिंह ठाकुर  लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं )

टूरिज्म को बढ़ावा देना तो दूर की बात, जो विरासत में मिला है, यह उसके दोहन में भी नाकाम साबित हुआ है। विभाग वर्ष भर कंगणा रणौत की ब्रांड एंबेसेडर बनने की मिन्नतें करता रहा, लेकिन पर्यटन को ब्रांड एंबेसेडर से ज्यादा जरूरत सहूलियतों की है…

लंबे समय की शुष्कता से राहत तो मिली, लेकिन भारी बर्फबारी ने प्रदेश के आम जनजीवन को झकझोर कर दिया है। एक तरफ जहां किसानों, टूरिज्म तथा बागबानों के चेहरे खिल उठे, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में दैनिक सेवाएं इस कद्र प्रभावित हुई हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को स्वयं प्रदेश की बागडोर संभालनी पड़ी। क्रिसमस के दिन भी बर्फबारी ने टूरिज्म कारोबारियों की चांदी कर दी थी। व्हाइट क्रिसमस से यह अंदाजा तो हो गया था कि आने वाले दिनों में प्रदेश का मौसम अपने मिजाज बदलेगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही नववर्ष की पहली बर्फबारी ने किसानों-बागबानों के चेहरे पर रौनक ला दी। टूरिज्म कारोबारी भी गदगद हुए, लेकिन प्रदेश के आम नागरिक का जनजीवन कमरों की चारदीवारी तक की सिमट गया। यातायात के प्रमुख साधन सड़कें बुरी तरह से प्रभावित हुईं। दैनिक उपयोग सामग्री दूध, ब्रेड, सब्जी, समाचार पत्र कई दिनों तक अवरोधक मार्गों के कारण आम आदमी तक नहीं पहुंच पाए। बर्फबारी का होना प्रदेश के टूरिज्म, किसानों के खेतों, बागबानों के बागीचों के लिए संजीवनी बूटी से कम नहीं है। जिस प्रदेश की आर्थिकी का मुख्य व्यवसाय पर्यटन हो, स्वाभाविक है कि बर्फबारी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित तो करेगी ही, लेकिन पर्यटन का विकास सुविधाओं पर निर्भर करता है। आज के व्यस्त जीवन में बड़ी मुश्किल से भ्रमण के लिए दो-चार दिन ही निकल पाते हैं। पर्यटक हिमाचल की ओर रुख करके प्राकृतिक सौंदर्य, गगनचुंबी पहाड़ों की खूबसूरती तथा शांत व स्वस्थ वातावरण के कारण कुछ पल सुकून से जी लेते हैं, लेकिन खस्ताहल सड़कें, पर्यटन स्थलों पर सरेआम लूट-खसोट, ठगबाजी, होटल-रेस्तरां के दोगुने-तिगुने दाम दिन-प्रतिदिन सुर्खियां बटोर रहे हैं और अब रही सही कसर बर्फबारी ने पूरी कर दी। कई दिनों से हजारों पर्यटक सड़क मार्गों के बंद होने के कारण बुरी तरह से फंसे हुए हैं।

सरकार अनेक दावे कर रही हो, लेकिन वर्ष की पहली ही बर्फबारी ने हमारी व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। पर्यटकों को सुविधाएं मुहैया करवाना तो दूर की बात, प्रदेश की राजधानी शिमला व इससे सटे इलाकों रोहड़ू, जुब्बल, रामपुर, ठियोग, कुमारसैन में भी आम जनजीवन बहाल करने में पसीने छुट गए। इसके अलावा कुल्लू-मनाली, करसोग, चच्योट, मुरारीधार, बंदलाधार, डलहौजी, पच्छाद इत्यादि क्षेत्रों की बात तो दूर के ढोल सुहावने लगने जैसी है। सड़कें, बिजली, दूरसंचार इस कद्र प्रभावित हुए हैं कि मानों कोई बड़ी आफत प्रदेश पर आ गई हो। सवाल यह है कि इस तरह की कछुआ चाल विभागों द्वारा क्यों चली जाती है। क्यों हर बार प्रदेश के मुख्यमंत्री को ही आपदा से निपटने की कमान अपने हाथ में लेनी पड़ती है। क्या प्रदेश के विभागाध्यक्ष इस कद्र बेलगाम हो गए हैं कि वे अपनी जरूरी ड्यूटी से भी कतराने लगे हुए हैं। आखिर इस अव्यवस्था के कारणों को जांचना होगा। अस्पतालों में कई मरीजों की मौत का कारण बिजली का न होना बना। क्या बिजली विभाग के अधिकारियों व अस्पताल प्रशासन अब तक सोए हुए थे? आखिर सरकारी अस्पतालों में पड़ा गरीब रोगी की जान का जिम्मेदार कौन है? आखिर कब तक प्रदेश का गरीब इस तरह ही पिसता रहेगा। माननीय उच्च न्यायालय शिमला ने बिजली मुहैया न करवाने के कारण मुख्य सचिव से जवाब-तलब भी किया है, लेकिन प्रदेश सरकार ने अब तक इस अव्यवस्था के दोषी डाक्टरों व कर्मचारियों को आड़े हाथों क्यों नहीं लिया? जब तक सरकार लापरवाह व चाटुकार अफसरों के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार नहीं करेगी, तब तक अव्यवस्था का खुल्लम-खुल्ला नृत्य ऐसे ही बरकरार रहेगा।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने खुद विभागाध्यक्षों से बैठकें कीं तथा शीघ्र अतिशीघ्र प्रदेश के जनजीवन को पटरी पर लाने के आदेश जारी किए, लेकिन हर बार मुख्यमंत्री को ही सक्रिय भूमिका क्यों निभानी पड़ती है? क्या पीडब्ल्यूडी के विभागाध्यक्ष, बिजली विभाग के अधिकारी या अस्पताल प्रशासन हर बार मुख्यमंत्री को ही जगाना पड़ेगा। आखिर इस ढीलेपन के दोषियों को क्यों बख्शा जाए? इस संदर्भ में प्रदेश सरकार को खोखला कर रहे अधिकारी वर्ग को पहचानना होगा, अन्यथा प्रदेश पर आर्थिक बोझ बढ़ता रहेगा तथा आम आदमी इसी तरह पिसता रहेगा। हाल ही में समाचार पत्रों में पर्यटकों से तिगुना किराया वसूलना, खान-पान की चीजों में भ्रष्टाचार, होटलों-रेस्तरों की मिलीभगत की सच्चाई से रू-ब-रू करवाया गया, जो कि देवभूमि को शर्मसार करता है। प्रदेश का पर्यटन विभाग अभी तक सोया हुआ है और टूरिज्म को बढ़ावा देना तो दूर की बात, जो विरासत में मिला है, यह उसके दोहन में भी नाकाम साबित हुआ है। विभाग वर्ष भर कंगणा रणौत की ब्रांड एंबेसेडर बनने की मिन्नतें करता रहा, लेकिन पर्यटन को ब्रांड एंबेसेडर से ज्यादा जरूरत सहूलियतों की है। प्रदेश के कर्णधारों को प्रदेश के संसाधनों को परखना होगा, सही उपयोग की नीतियां बनानी होंगी, भ्रष्ट व निठल्ले अधिकारियों की छुट्टी करनी होगी, तभी प्रदेश पर्यटन की संभावनाओं का लाभ ले सकेगा। प्राकृतिक संसाधन प्रदेश को समृद्ध बना सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि प्रदेश में आधारभूत सुविधाएं तो उपलब्ध करवाई जाएं।


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