बर्फ ने बता दिया हम कितने पानी में

By: Jan 14th, 2017 12:02 am

( सुरेश कुमार  लेखक, योल, कांगड़ा से हैं )

कैसी देवभूमि है यह, जहां आपदा में किसी की मदद करने के बजाय लूट-खसोट शुरू हो जाती है। उदाहरण टैक्सी वालों का ही ले लीजिए, जिन्होंने पर्यटकों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रशासन खबर छपने के बाद जागा और टैक्सी आपरेटरों के चालान काटकर संतुष्ट हो गया, पर पर्यटक तो लुट गए…

बर्फ ने 25 साल का रिकार्ड तोड़ा यह खबर अखबारों की सुर्खियां बन गई। मुख्यमंत्री को बर्फबारी के कारण कुछ दूर पैदल चलना पड़ा, यह समाचार भी मीडिया ने कवर कर लिया। जबकि हिमाचल के नौ जिले इस दौरान ब्लैकआउट रहे और व्यवस्थाओं की बारीकियों पर किसी ने भी विशेष नहीं दिया। यह तो सरकार को भी पता था और प्रशासन को भी कि बर्फबारी होगी। उसके लिए इंतजाम क्या हों कि जिंदगी जाम न हो, किसी ने सोचने की जहमत ही नहीं उठाई। शिमला तो स्मार्ट सिटी के लिए ताल ठोंक रहा था, भला स्मार्ट सिटी ऐसे बना जाता है कि हल्की सी आपदा आए और शिमला के होश फाख्ता हो जाएं। अकेला शिमला ही क्यों, पूरा हिमाचल ही इस बर्फबारी से पस्त हो गया। बर्फबारी ने बता दिया कि हम कितने पानी में हैं। इधर बर्फबारी हो रही थी और उधर पिछले साल हुई बरसात से हुए नुकसान का जायजा लेने केंद्र की टीम आई हुई थी। उसे भी एहसास हो गया कि बारिश-बर्फबारी हिमाचल को कितना रुलाती है। टीम तो पूरा हिमाचल घूम ही नहीं पाई और वहशियाना बर्फबारी को देखकर समय से पहले ही हिमाचल से नौ दो ग्यारह हो गई। हिमाचल हर बार बारिश-बर्फबारी के बवंडरों से रू-ब-रू होता है। बारिश-बर्फबारी कोई अचानक होने वाली आपदा नहीं है। सरकार को मौसम विभाग से इसके पूर्वानुमान के आंकड़े मिलते रहते हैं, पर सरकारी ढर्रा वही कि फाइलें बनाते जाओ और अलमारी में सजाते जाओ।

‘बर्फबारी ने 25 साल का रिकार्ड तोड़ा’ का मतलब यह भी नहीं कि बहुत ज्यादा बर्फ पड़ी, तो फिर व्यवस्थाएं बदहाल कैसे हो गईं। जाहिर सी बात है कि सरकार ने तैयारियां ही नहीं की। प्रशासन ने परेशानी नहीं उठाई और बर्फबारी में जिंदगी जहनुम(नरक) बन गई। यह तो बर्फबारी है, मान लो भगवान न करे कि कोई नेपाल के भूकंप सरीखी या उत्तराखंड के प्रलय जैसी प्राकृतिक आपदा आ जाए, तो हिमाचल कहां ठहरेगा। ऐसे हालात में हमारे बचने की गारंटी कोई नहीं, जिंदगी और लिखी होगी बच जाएंगे। पर सरकार और प्रशासन से राहत की उम्मीद करना बेमानी होगा, क्योंकि बारिश-बर्फबारी की आपदा में हम सरकारी तैयारियों का अनुभव पहले कई बार कर चुके हैं। सच पूछो तो हिमाचल में राजनीति ज्यादा है रणनीति कम। स्कूलों में बच्चों को आपदा से बचने के लिए मॉक ड्रिल करवाई जाती है, जो महज खानापूर्ति ही होती है। यानी शिक्षा विभाग के निर्देशों का पालन करने की मजबूरी। याद आया एक बार समाचार पत्र में फोटो देखी कि आपदा प्रबंधन बोर्ड के उपाध्यक्ष किसी की पीठ पर सवार होकर कहीं आई आपदा का जायजा लेने गए थे। जब व्यवस्था देखने के लिए ही पीठ पर सवार होकर जाना पड़ रहा हो, तो व्यवस्था कैसी होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है।

ऐसे में हमें कौन बचाएगा शायद ऊपर वाला ही, क्योंकि सरकार तो वैसे ही बेबस है। वह केंद्र की तरफ मुंह उठाए देखती रहती है कि नुकसान की भरपाई का पैकेज मिल जाए और हिमाचल की केंद्र कितनी कद्र करता है यह भी देख लो कि पिछली बरसात के नुकसान का जायजा लेने टीम छह महीने बाद आती है, जबकि अगले छह महीने बाद फिर बरसात दस्तक दे देगी तो यह मुआवजा कब मिलेगा और अगली बरसात का मुआवजा कब मिलेगा, कोई भी नहीं जानता। सरकार चाहे तो लोगों की परेशानियां कम हो सकती हैं, पर उसके लिए राजनीति से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। ऐसे हालात में पक्ष-विपक्ष को एकजुट होकर प्रदेश को मुसीबत से बाहर निकालना चाहिए, पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर राहत देने के बजाय मुश्किलों को और बढ़ा देता है। कैसी देवभूमि है यह, जहां आपदा में किसी की मदद करने के बजाय लूट-खसोट शुरू हो जाती है। उदाहरण टैक्सी वालों का ही ले लीजिए, जिन्होंने बर्फबारी में पर्यटकों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मनाली से कुल्लू तक ही 10 से 15 हजार रुपए तक वसूल किए गए।

मूकदर्शक प्रशासन खबर छपने के बाद जागा और नाका लगाकर टैक्सी आपरेटरों के चालान काटकर संतुष्ट हो गया, पर पर्यटक तो लुट ही गए। प्रदेश की छवि तो खराब हो ही गई। कैसे कोई हिमाचल घूमने के लिए दोबारा मन बनाएगा। जाम लगने के कारण प्रदेश की छवि तो पहले ही धूमिल हो चुकी है, अब यह टैक्सी आपरेटरों की मनमानी ने चार चांद लगा दिए। शिमला क्या धर्मशाला को भी स्मार्ट सिटी बनने के लिए अभी कई कोस चलना होगा। स्मार्ट सिटी के लिए क्या सिर्फ केंद्र की मंजूरी मिलना ही काफी है, मशक्कत कौन करेगा, योजना कौन बनाएगा और सहयोग कौन करेगा। हिमाचल के दावे बड़े-बड़े, पर कभी-कभी लगता है कि हम अभी पिछली सदी में ही जी रहे हैं। हर साल होने वाली बर्फबारी का ही यदि हम तोड़ नहीं निकाल पाए, तो यह प्रदेश अभी बहुत पीछे है।  चार दशक पहले यदि हम इन हालात से रू-ब-रू होते, तो समझौता कर लेते कि चलो अभी तकनीक नहीं है, पर आज अगर प्रदेश की राजधानी चार दिन बिना बिजली के रहती है, तो सोचो आज हिमाचल किस पायदान पर खड़ा है। प्रदेश को किसी कैग रिपोर्ट या किसी सर्वे की जरूरत नहीं कि हिमाचल आज कहां खड़ा है, बस बरसात और बर्फबारी ही बता देती है कि हम कितने पानी में हैं!

ई-मेल : sureshakrosh@gmail.com


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