भत्ता नहीं, स्वरोजगार का बंदोबस्त कीजिए

By: Jan 9th, 2017 12:02 am

( राजेश वर्मा लेखक, बलद्वगाड़ा, मंडी से हैं )

युवा बेरोजगारी भत्ते की नहीं, रोजगार की मांग करता है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की लत डालने की बजाय स्वरोजगार की तरफ ले जाना चाहिए, ताकि कोई युवा व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर सरकार की तरफ टकटकी लगाए न देखे। वह अपना कार्य शुरू करे।  उन्हें बिना ब्याज दर के स्वरोजगार के लिए आसान ऋण उपलब्ध करवाया जाए…

बेरोजगारी-एक ऐसा नाम जो माथे पर चिंता की लकीरें उकेर देता है। प्रत्येक व्यक्ति खुद से या फिर अपने परिवार से इस शब्द को दूर करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है। बेरोजगारी का अभिप्राय है, काम करने योग्य इच्छुक व्यक्ति को कोई काम न मिलना। मौजूदा समय में बेरोजगारी की समस्या से शहर और गांव दोनों आक्रांत है। समय-समय पर सरकारें बेरोजगारी को कम करने के लिए प्रयासरत रहती हैं। कम करना इसलिए कहूंगा, क्योंकि बेरोजगारी को पूरी तरह से खत्म करना किसी भी देश प्रदेश के लिए संभव नहीं। यह किसी न किसी रूप में, किसी न किसी क्षेत्र में सदैव विद्यमान रहती है। इसी समस्या को कुछ हद तक कम करने के लिए अल्पकालिक उपाय में से एक है ‘बेरोजगारी भत्ता’। देश के कई राज्यों में बेरोजगारों की फौज को राहत के तौर पर ‘बेरोजगारी भत्ता’ नामक एक ऐसी वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है, जिससे कुछ हद तक बेरोजगारों का दर्द कम हो सके। इसी बेरोजगारी भत्ते की चर्चा हमारे प्रदेश में भी समय-समय पर किसी न किसी वजह से होती रही है। मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात की तरफ नहीं जाना चाहता कि प्रदेश में बेरोजगारों को राहत के तौर पर बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया जाए या न किया जाए, लेकिन कुछेक पहलूओं पर जरूर प्रकाश डालना चाहूंगा जो शायद बेरोजगारी भत्ते को पहला और अंतिम विकल्प नहीं मानते। बेरोजगारी दर या आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो प्रदेश के श्रम एवं रोजगार कार्यलय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अभी तक आठ लाख के लगभग बेरोजगार प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों मे पंजीकृत हैं।

इनमें से लगभग 67 हजार के लगभग स्नातकोत्तर, एक लाख के करीब स्नातक, छह लाख के आसपास मैट्रिक से लेकर अंडर ग्रेजुएट तक, 60 हजार के करीब अंडर मैट्रिक बेरोजगार प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में दर्ज हैं। बेशक यह आंकड़ा आठ लाख से ऊपर है, परंतु हकीकत में मेरा मानना यह है कि वास्तव बेरोजगारी इसका 50 फीसदी है। आज प्रत्येक युवा जब तक सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर लेता, तब तक वह अपना नाम अपने क्षेत्र के रोजगार कार्यालय में दर्ज करवा कर रखता है। आठ लाख में से 50 फीसदी इसलिए कहूंगा, क्योंकि यह 50 फीसदी निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त किए हुए हैं। लेकिन हम बेरोजगारी के इन आंकड़ों को केवल सरकारी क्षेत्र से ही जोड़ कर देखते हैं। वहीं इस 50 फीसदी का आधा हिस्सा उस वर्ग से संबंधित है, जो निजी क्षेत्र में एक सम्मानजनक वेतन पर जीवनयापन कर रहा है, जबकि उसका नाम अभी भी प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में दर्ज है। सरकारी नौकरी की चाहत में वह युवा वर्ग भी अपना नाम नहीं कटवा पाता, जिसे सरकारी क्षेत्र से कहीं अधिक वेतन निजी क्षेत्र में मिल रहा है। कुल मिलाकर प्रदेश में बेरोजगारी भत्ते की पात्रता के लिए 3.4 लाख बेरोजगारों का आंकड़ा ही बनता है बात चली है बेरोजगारी भत्ते की। एक युवा अपने रोजगार को ध्यान में रखते हुए भविष्य की पढ़ाई का चुनाव करता है, ताकि उसे अपनी उच्च शिक्षा या व्यावसायिक शिक्षा पूरी करने के बाद रोजगार प्राप्त हो। लेकिन यह इतना भी आसान नजर नहीं आता। सवाल यह है कि आखिर जब तक रोजगार उपलब्ध न हो, तब तक किया क्या जाए? क्या बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान ही अंतिम विकल्प हो सकता है। शायद देश प्रदेश का कोई भी बेरोजगार युवा बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहेगा, वह रोजगार चाहेगा। बात यदि अपने प्रदेश की करें, तो किसी भी सरकार के लिए यह संभव नहीं कि 3.4 लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। वजह यह कि हमारे पास इतने संसाधन नहीं, जिनसे हम इस मांग को पूरा कर सकें। न ही हमारे प्रदेश का युवा बेरोजगारी भत्ते की मांग करता है। वह रोजगार की मांग करता है। मेरी नजर में युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की लत डालने की बजाय स्वरोजगार की तरफ ले जाना चाहिए, ताकि कोई युवा व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर सरकार की तरफ टकटकी लगाए न देखे। वह अपना कार्य शुरू करे।

  उन्हें बिना ब्याज दर के स्वरोजगार के लिए आसान ऋण उपलब्ध करवाया जाए। दूसरी ओर जो युवा उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, उन्हें केंद्रीय व राज्य के अधीन होने वाली विभिन्न पदों की भर्ती हेतु लिया जाने वाला आवेदन शुल्क खत्म किया जाए। आज किसी भी भर्ती हेतु आवेदन करने के लिए एक बेरोजगार युवा का कम से कम पांच सौ रुपए के लगभग खर्च बैठता है। कुछेक पढ़े-लिखे युवा तो कई बार आवेदन शुल्क न होने के कारण आवेदन तक नहीं कर पाते। जब तक वह बेरोजगार है, तब तक उससे बिना शुल्क लिए रोजगार संबधी अवसरों में निःशुल्क बैठने का मौका तो दिया ही जा सकता है। यह इमदाद बेरोजगारी भत्ते से कहीं बढ़कर होगी। एक वर्ष में कहीं 10 बार विभिन्न पदों के लिए आवेदन करना पड़े, तो यही खर्च करीब 5 हजार के आसपास बैठता है। यह तो बेरोजगार वर्ग के लिए ‘एक तो कंगाली, ऊपर से आटा गीला’ वाली कहावत चरितार्थ करती है। यदि युवावस्था में बेरोजगारी भत्ते की आदत डाल दी जाएगी, तो हमारा युवा उसे ही अपना कर्म मानकर अपनी अंदर की योग्यता को धीरे-धीरे खत्म कर देगा। वह उसे ही अंतिम विकल्प मान लेगा और शायद यह किसी धीमे जहर से कम नहीं होगा। हमें बीमारी को जड़ से खत्म करने का उपचार चाहिए, न कि बीमारी को पालने का। यह जड़ से उपचार बेरोजगारी भत्ता देकर नहीं, बल्कि रोजगार उपलब्ध करवा कर, स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर ही संभव है।

ई-मेल : bsnsince79@rediffmail.com


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