मां! मेरा बचपन लौटा दो!

By: Jan 16th, 2017 12:05 am

मां! सुन लो करुण पुकार मेरी

क्यों नहीं चुभती पीड़ा मेरी?

नन्हीं परियों की कथा सुना दो

मां! मेरा बचपन मुझे लौटा दो।।

मां! दूध मिले, न आंचल तेरा

अंधकार छाया, मुझमें घनेरा।

माता कुमाता, कभी भी न होती

होते उसके संतान, कभी न रोती।।

कोमल तन-मन मैया मेरे

दिन भर दर्शन न होते तोरे।

तेरी बाहों का, झूला मैं झूलता

लाड़-प्यार तेरा कभी न भूलता।।

टब के पानी में, गोता लगाता

मैं घर-आंगन, तेरा महकाता

चलता-फिरता मैं रोटी खाऊं

तेरे संग ही, सदा जागूं-सोऊं।।

पल्लू पकड़ तेरा सदा मैं घूमता

सदा तू मेरा, मैं तेरा माथा चूमता।

गुड्डे-गुडि़यों की शादी मैं रचाता

सदा ‘धूल भरा हीरा’ ही कहलाता।।

खेल-खिलौनों का संसार छूटा

कोमल कल्पना का घरौंदा टूटा।

मां मोरी तेरी वे लोरियां कहां हैं?

भारी-भरकम बस्ता आज यहां है।।

दादा-दादी सब जुदा हो गए

संगी-साथी सब कहां खो गए?

दीवारें घर की अब सुनसान हैं

बाल किलकारियों से अनजान हैं।।

तेरा संसार क्यों अजीब हो गया ?

 क्यों मेरा बचपन गरीब हो गया।

मुझे मेरा पूरा परिवार लौटा दो,

मेरे दादा-दादी-चाची वापस ला दो।।

मां की ममता संतान को जरूरी,

बिना इसके जिंदगी उसकी अधूरी।

खेल-खिलौनों का संसार लौटा दो,

मां! मेरा बचपन मुझे लौटा दो।।

                   -डा मनोहर ‘अनमोल’ शिक्षाविद, मंडी


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