मां! मेरा बचपन लौटा दो!
मां! सुन लो करुण पुकार मेरी
क्यों नहीं चुभती पीड़ा मेरी?
नन्हीं परियों की कथा सुना दो
मां! मेरा बचपन मुझे लौटा दो।।
मां! दूध मिले, न आंचल तेरा
अंधकार छाया, मुझमें घनेरा।
माता कुमाता, कभी भी न होती
होते उसके संतान, कभी न रोती।।
कोमल तन-मन मैया मेरे
दिन भर दर्शन न होते तोरे।
तेरी बाहों का, झूला मैं झूलता
लाड़-प्यार तेरा कभी न भूलता।।
टब के पानी में, गोता लगाता
मैं घर-आंगन, तेरा महकाता
चलता-फिरता मैं रोटी खाऊं
तेरे संग ही, सदा जागूं-सोऊं।।
पल्लू पकड़ तेरा सदा मैं घूमता
सदा तू मेरा, मैं तेरा माथा चूमता।
गुड्डे-गुडि़यों की शादी मैं रचाता
सदा ‘धूल भरा हीरा’ ही कहलाता।।
खेल-खिलौनों का संसार छूटा
कोमल कल्पना का घरौंदा टूटा।
मां मोरी तेरी वे लोरियां कहां हैं?
भारी-भरकम बस्ता आज यहां है।।
दादा-दादी सब जुदा हो गए
संगी-साथी सब कहां खो गए?
दीवारें घर की अब सुनसान हैं
बाल किलकारियों से अनजान हैं।।
तेरा संसार क्यों अजीब हो गया ?
क्यों मेरा बचपन गरीब हो गया।
मुझे मेरा पूरा परिवार लौटा दो,
मेरे दादा-दादी-चाची वापस ला दो।।
मां की ममता संतान को जरूरी,
बिना इसके जिंदगी उसकी अधूरी।
खेल-खिलौनों का संसार लौटा दो,
मां! मेरा बचपन मुझे लौटा दो।।
-डा मनोहर ‘अनमोल’ शिक्षाविद, मंडी
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App