राहुल का ‘भूकंप’ फुस्स !

By: Jan 14th, 2017 12:01 am

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ‘भूकंप’ नहीं ला सके और न ही साबित कर सके। उसके साक्ष्य और दस्तावेज फर्जी और गैर कानूनी करार दे दिए गए। क्या राहुल गांधी झूठ की बुनियाद पर ही राजनीति करना चाहते हैं? क्या राहुल बेहद जल्दबाजी में हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी इंतजार नहीं कर सके? क्या राहुल गांधी सहारा-बिड़ला डायरी केस में केजरीवाल और ममता बनर्जी को पीछे धकेल कर प्रधानमंत्री मोदी को दागदार साबित करने का श्रेय लूटना चाहते थे? या सबसे अहम सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी करीब 13 साल की संसदीय राजनीति के बावजूद आज भी परिपक्व नहीं हो पाए हैं? दरअसल हमें वह दिन याद आता है, जब संसद परिसर में पत्रकारों से संवाद के दौरान राहुल ने दावा किया था कि जब वह संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा। संयोग ऐसा रहा कि संसद की कार्यवाही चल नहीं सकी, लिहाजा राहुल गांधी को बोलने का मौका भी नहीं मिल पाया। अंततः उन्होंने गुजरात की जमीन पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ 52 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के आरोप जड़ दिए। राहुल ने यह भी दावा किया था कि उनके पास ऐसे सबूत हैं कि प्रधानमंत्री ‘हिल’ जाएंगे। बहरहाल तारीखें गिना कर राहुल ने जनता को बताया कि मुख्यमंत्री रहते मोदी ने सहारा समूह से 40 करोड़ और बिड़ला समूह से 12 करोड़ रुपए लिए थे। आयकर विभाग के एक छापे में जो डायरी मिली थी, उसमें ये ब्यौरे दर्ज थे, लेकिन भूकंप तो क्या, हवा का एक तेज झोंका तक नहीं चला, क्योंकि प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की हुई थी। लिहाजा देश की निगाहें शीर्ष अदालत के फैसले पर टिकी थीं। अब सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक पीठ का फैसला आया है कि  अदालत के सामने जो कागजात और सबूत पेश किए हैं, उनके आधार पर जांच का आदेश तो क्या, याचिका मंजूर करने का भी फैसला नहीं दिया जा सकता। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की पीठ का मानना था कि खुले कागजों, ई-मेल और प्रिंट आउट के आधार पर लगाए आरोप मान्य नहीं हैं। वे छेड़छाड़ वाले और फर्जी कागज भी हो सकते हैं। आयकर का सेटलमेंट आयोग भी ऐसे दस्तावेजों को फर्जी करार दे चुका है। यदि ऐसा ही होता रहा तो संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए काम करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। न्यायिक पीठ ने कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का भी अंदेशा जताया। राहुल गांधी और प्रशांत भूषण दोनों की नीयत और मंशा पर भी सवाल खड़े होते हैं। उस डायरी में 54 राजनेताओं और अन्य लोगों के नाम थे। मुख्यमंत्री के तौर पर सिर्फ मोदी का ही नाम नहीं था, बल्कि शीला दीक्षित और नीतीश कुमार समेत चार मुख्यमंत्रियों के नाम थे। उनके अलावा डायरी में सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद, लालू यादव आदि के नाम भी बताए जाते हैं। उनके नाम राहुल गांधी ने क्यों नहीं लिए? बहरहाल शीर्ष अदालत के एक फैसले ने राहुल गांधी के ‘भूकंप’ को टांय-टांय फुस्स कर दिया। यह भी साबित हो गया कि राहुल उधार के दस्तावेजों और कथित सबूतों के आधार पर राजनीति करना चाहते हैं। हालांकि कांग्रेस और प्रशांत भूषण के खेमे फैसले की यह व्याख्या भी कर रहे हैं कि इस तरह तो किसी भी नेता के खिलाफ प्रथमदृष्टया आरोपों की जांच ही नहीं होगी, लिहाजा वे बेधड़क भ्रष्टाचार में लिप्त होते रह सकते हैं। दरअसल शीर्ष अदालत ने यह फैसला नहीं दिया और न ही ऐसा कहा है, लेकिन खुले और हाथ में लिखे कागजों को प्रमाण मान कर देश के प्रधानमंत्री को कठघरे तक कैसे खींचा जा सकता है? इससे पहले जैन हवाला डायरी केस भी उछला था। अदालत ने उसे भी सबूत नहीं माना और सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया था। उसमें लालकृष्ण आडवाणी, मदन लाल खुराना, शरद यादव सरीखे नेताओं के नाम पर कालिख पोतने की कोशिश की गई थी। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी 2001 से लगातार सत्ता में हैं और आज तक एक भी भ्रष्टाचार का छींटा उछाला नहीं गया है। जो लोग मोदी को पुराने जानते हैं और जिन्होंने भाजपा के दफ्तर में उन्हें काम करते देखा है, वे कुछ दावा कर सकते हैं कि मोदी कमोबेश भ्रष्ट नहीं हैं, लेकिन राहुल गांधी अब भी ‘जनवेदना’ सरीखे सम्मेलनों में वही आरोप दोहरा रहे हैं, जिन्हें अदालत खारिज कर चुकी है। यही राजनीतिक विडंबना और बौनापन है।


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