लोकगाथाओं में सतलुज के राग

By: Jan 30th, 2017 12:01 am

किन्नौर में एक रोचक लोककथा है कि शोणितपुर (सराहन) के राजा बाणासुर ने मानसरोवर से सतलुज को सराहन तक अपना अनुगमन करने का आदेश दिया। सराहन पहुंचकर बाणासुर ने नदी को आगे का मार्ग स्वयं ढूंढ निकालने का आदेश दिया और स्वयं वहीं राज्य स्थापित किया…

सतलुज घाटी का सांस्कृतिक जीवन वैदिक एवं पौराणिक परंपराओं का जीवंत दस्तावेज है। ऋग्वेद के नदी सूक्त में वर्णित नदियों में सतलुज (शुतुद्रि) का वर्णन मिलता है-

इमे मे गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमसचता-परुष्णया।

असिकया मरुद्रवृधो वितस्तयार्जीकीय श्रृणुह्य सुषोमया

सतलुज वैदिक नाम सतुद्री (शतुद्रि) और परवर्ती संस्कृत वाङ्मय में शतुद्र मिलता है, जो तिब्बत  मे स्थित शिव-स्थली कैलाश पर्वत की दक्षिणी ढलान में रक्सताल से निःसृत होती है। रक्सताल से 320 किलोमीटर का सफर तयकर सतलुज शिपकी (किन्नौर) में हिमाचल में प्रवेश करती है। बुशैहर भज्जी और बिलासपुर रियासतों की राजधानियां सतलुज के तट पर स्थित थीं। यह नदी शिमला जिला को कुल्लू और मंडी से अलग करती है। सतलुज नदी यहां की प्राचीन संस्कृति में लोकगाथाओं और लोक कथाओं के माध्यम से अपनी वैदिक और पौराणिक पृष्ठभूमि को कायम रखे हुए है। सतलुज को किन्नौर के लोग गंगा की तरह पवित्र नदी मानकर स्तुति करते हैं। किन्नौर में एक रोचक लोककथा है कि शोणितपुर (सराहन) के राजा बाणासुर ने मानसरोवर से सतलुज को सराहन तक अपना अनुगमन करने का आदेश दिया। सराहन पहुंचकर बाणासुर ने नदी को आगे का मार्ग स्वयं ढूंढ निकालने का आदेश दिया और स्वयं वहीं राज्य स्थापित किया। वैदिक समाज की आराध्या नदी सरस्वती का प्रवाह क्षेत्र यमुना और सतलुज (शुतुद्री) के बीच के क्षेत्र में था।

भू-उपग्रह से मिले चित्रों में यह साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं कि यमुना और सतलुज सरस्वती की सहायक नदियां थीं। सिंधु सभ्यता के अवशेष सर्वाधिक इस नदी समूह के पुराने सूखे मार्गों के किनारे मिले हैं। सतलुज घाटी क्षेत्र के अंतर्गत शिमला जिला की रामपुर, कुमारसैन, ठियोग व सुन्नी और कुल्लू की आनी एवं मंडी की करसोग तहसील का क्षेत्र आता है। हालांकि सतलुज घाटी क्षेत्र का उक्त क्षेत्र कुनिंद प्रदेश के अंतर्गत आता है, जिसकी पुष्टि अलग्जैंडर कनिंघम ने की है। उसके अनुसार सतलुज नदी के दोनों ओर के पर्वतीय प्रदेश विशेषकर शिमला व सोलन जिलों के क्षेत्र कुलिंद प्रदेश में आते थे। एक अन्य स्रोत के अनुसार कुलिंद (कुनिंद) व्यास नदी के ऊपरी भाग से लेकर यमुना नदी तक फैले हुए हिमालय के इस पर्वतीय प्रदेश में फैले थे। अतः सतलुज घाटी का यह क्षेत्र कुलिंदों का क्षेत्र था, जिनके वंशज कुल्लू की व्यास घाटी किन्नौर व शिमला की सतलुज घाटी और सिरमौर की गिरिघाटी में आज कनैत और खश के रूप में आबाद हैं। सतलुज घाटी का सांस्कृतिक वैभव सैंधव-वैदिक सभ्यता का सम्मिश्रित स्वरूप है। यही कारण है कि कुलिंद क्षेत्र के इस भू-भाग का वर्णन महाभारत, बृहदसंहिता, विष्णु पुराण और मार्केंडय पुराण में आता है।

लोकगाथाओं में उत्सवधर्मिता

इस क्षेत्र के लोकोत्सव जनमानस के जीवन में से अभिन्न रूप से जुड़े हैं। जिला शिमला, कुल्लू के बाहरी सिराज की विप्र नगरी निरमंड और मंडी के करसोग क्षेत्र के साथ-साथ सहस्रार्जुन के सुन्नी क्षेत्र में दिवाली उत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दिवाली के अवसर पर लोक रामायण का पाठ देवठियों (देव प्रांगण) में किया जाता है। इन लोकगाथाओं  में कथावस्तु रामायण की है। यदि कुछ  उपमाएं और प्रकरण जोड़े गए हैं, वे विशुद्ध रूप से गुमनाम लोक कलाकारों  की ईश्वराधना की संवेदनात्मक परिणति का प्रतिफल हैं। इस भू-भाग में लोकोत्सव-दिवाली, शिवरात्रि, गूंगा नवमी जैसे पुण्य अवसरों पर धार्मिक लोक गाथाओं का गायन श्रद्धातिरेक से होता है। इसके अतिरिक्त विवाहोत्सव विशू जागरा और मेलों के अवसर पर लौकिक गाथाओं का गायन नृत्य के संयोजन के साथ होता है।

रामायण और महाभारत व बरलाज गान की परंपरा ः दिवाली हिमालय के इस अंचल में मंदिर प्रांगणों में आयोजित होती है। दिवाली वाले दिन उपयुक्त राशि वाले व्यक्ति का चयन कर रात्रि में देव प्रांगण में वरलाज प्रज्वलित किया जाता है। बरलाज विरोचन पुत्र बलि है, जिससे भगवान वामन ने अढ़ाई कदम धरती मांग कर उसे पाताल का सिंहासन प्रदान किया। भगवान ने उसकी दानशीलता को देखते हुए कार्तिक मास की अमावस और नए चांद का एक दिन दिया। बरलाज लोकगाथा में ठियोग क्षेत्र में वामन और बलि का घटनाक्रम इस प्रकार निरूपित किया गया है-

बडिराजा मेरा चकुआ राजा…

किया हो बामणो बेखो…

बलिराजै सै शोधणा लाया

मांठा बामण केथेआ आया

डाई बीखौ परिथवी देंदा

जोपड़ी टैवणी ओ मेरे

मांगी चुंगिय टुकड़ा खामा

बडि़राजै संकड़प ढाडा…

एक बिख दिती लोके दी एकी

दुजी बिखो दिती लोके दी दुजी

आधी बिखो के जागा न रई

घड़ी नारायणा केथेओ आया

बारौ देंदा दैवड़ी बारौ देंदा ऐ वांसी

मीनै री दैवड़ी राजेआ आंव देया न बडू

बांसों री दैवड़ी करू मा साजौ।,

डॉ.हिमेंद्र बाली ‘हिम’ राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला, मैलन, शिमला 


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