साइकिल चकनाचूर

By: Jan 21st, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

साइकिल के टुकड़े किए, ले समाज की आड़,

रिश्ते फेंके भाड़ में, दिए कब्र में गाड़।

अलग-अलग पहिए बंटे, खत्म हो गया खेल,

क्या टीपू, क्या सख्त का, निकल गया सब तेल।

महल सैफई का हुआ, सरेआम दोफाड़,

लल्ला को रामू प्यारे, बापू दिए उखाड़।

पुर्जा-पुर्जा हिल गया, साइकिल चकनाचूर,

हिला नहीं पर आज तक, उनका दंभ, गुरूर।

 


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