सुलगता हिमाचल बेहाल फायर ब्रिगेड
हिमाचल प्रदेश में हर साल आग कहर बरपाती है। अग्निशमन विभाग हर हाल में आग पर काबू पाने की भरसक कोशिश करता है, पर कभी बहुत देर हो जाती है तो कभी पहाड़ के संकरे रास्ते मंजिल तक फायर ब्रिगेड को पहुंचने ही नहीं देते। इस बार दखल के जरिए फायर ब्रिगेड की हकीकत बता रहे हैं खुशहाल सिंह…
पहाड़ी राज्य होने के कारण हिमाचल में आग की घटनाओं की संभावना बहुत ज्यादा रहती है,लेकिन इनसे निपटने के इंतजाम जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देते। दरअसल पहाड़ी राज्य होने की वजह से यहां पर दमकल सेवाओं के मापदंड मैदानी राज्यों की तरह नहीं हो सकते। ऐसे में यहां मैदानी इलाकों की तुलना में ज्यादा नजदीक दमकल केंद्रों की जरूरत है, लेकिन हालात ये हैं कि राज्य में सभी विधानसभा क्षेत्रों में भी दमकल केंद्र नहीं खोले गए। अभी भी हिमाचल में 47 दमकल केंद्र हैं, मतलब साफ है कि औसतन प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दमकल केंद्र नहीं हैं। वहीं, जो दमकल केंद्र खोले गए हैं, उनमें पूरा स्टाफ नहीं है। दरअसल सरकार के पास ऐसी कोई पालिसी नहीं है, जिसमें राज्य के भवनों को आग से सुरक्षित बनाया जा सके। यह सही है कि सरकार अपने स्तर पर हर गांव या पंचायत स्तर पर दमकल केंद्र नहीं खोल सकती, लेकिन सरकार ने ऐसी भी कोई नीति नहीं बनाई जिसमें कि समाज की सहभागिता हो ,ताकि गांवों को जलने से बचाया जा सके। हालांकि सरकार नए दमकल केंद्र खोलने की बात जरूर कर रही है, लेकिन जब तक राज्य में आग को लेकर कोई विशेष नीति नहीं बनती, तब तक राज्य में जंगल, घर और गांव दहकते रहेंगे। गांव ही नहीं बल्कि नगर और औद्योगिक क्षेत्र भी आग से सुरक्षित नहीं है। राज्य में औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, लेकिन इनमें आग से निपटने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। हर साल औद्योगिक क्षेत्रों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं और करोड़ों का नुकसान हो रहा है।
आग ने निगली करोड़ों की सपत्ति
हिमाचल में आग से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है । यही वजह है कि आग हिमाचल में हर साल करोड़ों की सपत्ति स्वाह कर रही है। रिहायशी मकानों के साथ-साथ अमूल्य संपत्ति वाले जंगल धू-धू कर जल रहे हैं। अग्निशमन विभाग के आंकड़े बता रहे हैं कि 2007 से 2016 तक ही आग की 1653 घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं जिनमें करीब 1219 करोड़ की संपत्ति स्वाह हो गई। इसी साल राज्य में आग की करीब 2339 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें करीब 93 करोड़ की संपत्ति जलकर रख हो गई, इनमें घरों में लगने वाली आग भी शामिल हैं।
साल घटनाएं नुकसान (करोड़ में )
2007 1184 33.96
2008 1351 101.82
2009 1605 123.23
2010 1447 68.01
2011 1127 136.21
2012 2640 50.50
2013 1631 46.57
2014 1635 151.03
2015 1564 414.53
2016 2339 93.67
कुल 16,523 1219.53
पांच मिनट में मिले सेवा
केंद्रीय दिशा निर्देश के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में आग लगने की स्थिति में दमकल वाहन 20 मिनट में घटनास्थल पर पहुंचने चाहिएं ,जबकि शहरी क्षेत्रों में पांच मिनट के समय में दमकल वाहनों का पहुंचना जरूरी है,तभी आग को रोका जा सकता है। लेकिन यहां कई किलोमीटर दूर तक दमकल केंद्र ही नहीं हैं और हालात ये हैं कि शहरों और गलियों पर कब्जे किए गए हैं, जहां पर आसानी से दमकल वाहन समय पर नहीं पहुंच सकते।
फास्ट मूविंग व्हीकल नहीं
हिमाचल प्रदेश में दमकल विभाग के लिए फास्ट मूविंग व्हीकल जरूरी है। इसके बिना इस राज्य में आग की घटनाओं पर त्वरित कदम नहीं उठाया जा सकता। जानकारों के अनुसार दमकल विभाग के पास फास्ट मूविंग व्हीकल पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, जबकि इन वाहनों की ज्यादा जरूरत है। हिमाचल की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि यहां पर बड़े दमकल वाहन आसानी से मौके पर नहीं पहुंच पाते। वहीं छोटी और संकरी सड़कों के साथ ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर बड़े दमकल वाहन आसानी से नहीं दौड़ पाते और आग के काफी समय बाद वहां पहुंचते हैं। तब तक आग से भारी नुकसान हो चुका होता है। इन हालात में राज्य में फास्ट मूविंग व्हीकल की ज्यादा जरूरत है।
आधुनिक दमकल वाहनों की कमी
आग को बुझाने में देश और दुनिया भले ही तकनीकी तौर पर कितनी भी आगे बढ़ चुकी हो,लेकिन हिमाचल अभी भी इन तकनीकों से कोसों दूर है। हिमाचल में दमकल विभाग कितना हाईटेक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विभाग के पास अभी ऐसा कोई आधुनिक दमकल वाहन नहीं है, जो ऊंची इमारतों में लगी आग को बुझाने में सक्षम हो। दमकल कर्मियों को आग से घिरी ऊंची इमारतों में जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है। दमकल कर्मियों के पास इन इमारतों के लिए भी फायर टेंडर ही एकमात्र विकल्प है। जानकारों के अनुसार विभाग के पास इस वक्त टर्न टेबल लैडर, हाइड्रोलिक प्लेटफार्म, टिल्लर लैडर जैसे आधुनिक उपकरणों से युक्त आधुनिक दमकल वाहन नहीं हैं। गार्टन कैसिल भवन में लगी आग के वक्त भी इन आधुनिक दमकल वाहनों की कमी खली थी।
हिमाचल में अस्पताल भी सुरक्षित नहीं
कई अस्पतालों में फायर फाइटिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। वहीं, आग लगने की स्थिति में मरीजों के सेफ इवेकुएशन करने के लिए तो अधिकांश अस्पतालों में व्यवस्था ही नहीं है। आप यह जानकर हैरान होंगे कि प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी के पास तो फायर विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं है। दूसरे बड़े अस्पताल टांडा मेडिकल की भी यही हालत है। बताया जा रहा है कि टांडा के एक ब्लॉक को भी एनओसी नहीं मिली हुई है। यानी दमकल विभाग इनको आग से फुल प्रूफ नहीं मानता। आईजीएमसी में बाहर निकलने के लिए प्रॉपर एग्जिट प्वाइंट नहीं रखे गए हैं । अस्पताल में आपातकाल में इस्तेमाल होने वाले रैंप और सीढि़यों पर दफ्तर बनाकर बाहर जाने वाले रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं। भवन बनाते वक्त भी आग और आपदा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। जानकारों की मानें तो हिमाचल में अस्पतालों के भवन भी ऐसे बनाए गए हैं कि आग या दूसरी त्रासदी के वक्त इनकोे मरीजों से खाली करवाना संभव नहीं होगा। यहीं नहीं, कई अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र भी कई जगह एक्सपायर रखे गए हैं। कई अस्पतालों में धुएं को डिटेक्ट करने के लिए सेंसर और ऑटोमेटिक फायर फाइटिंग यंत्र भी नहीं हैं। ऐसे हालात में प्रदेश के अस्पताल भगवान भरोसे हैं ,जहां कभी भी त्रासदी हो सकती है। कई अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र आपरेशनल नहीं हैं और स्मोकिंग डिटेक्शन यंत्र काम नहीं कर रहे। प्रदेश के दूसरे अस्पतालों की हालत तो इससे भी खराब है।
कंट्रोल बर्निंग न होने से धधक रहे जंगल
हिमाचल में न केवल घरों में ही बल्कि जंगलों में भारी संख्या में हर साल आग की घटनाएं सामने आ रही हैं। हिमाचल में इसके लिए पहले कंट्रोल बर्निग की जाती थी। फरवरी व मार्च माह में कंट्रोल बर्निंग की जाती थी। कंट्रोल बर्निंग में सीमित मात्रा में चीड़ के जगलों में पत्तियों को जलाया जाता था और साथ में लाइनें भी बनाई जाती थी,ताकि सूखे के दौरान उनमें आग न लगे, लेकिन बीते दो सालों से यह हिमाचल में नहीं किया जा रहा है, क्योंकि केंद्रीय वन मंत्रालय ने इस पर रोक लगा रखी है। ऐसा न होने से गर्मियों में हिमाचल के जंगलों में भयंकर आग लग रही है। जगलों में लगने वाली आग से न केवल वन संपत्ति राख होती है बल्कि इससे वन्य प्राणी जीवन भी प्रभावित होता है। यही नहीं, प्रदेश में जंगलों को आग से बचाने व सूखे से लोगों को सुरक्षित रखने के करीब दस वर्ष पहले राज्य सरकार ने पंचायत स्तर पर पानी के टैंक बनाने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन इस पर अमल नही हो पाया। ऐसे में वन कर्मचारी ही छोटी-मोटी आग बुझाते हैं। हालांकि वन विभाग गर्मियों में फायर वाचर भी तैनात करता है,लेकिन वन क्षेत्र अधिक होने के कारण पूरे प्रदेश में फायर वाचर तैनात करना भी संभव नहीं है।
68 लाख आबादी 47 दमकल केंद्र
हिमाचल में आग से निपटने के लिए सरकारी इंतजामों का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां की 68 लाख की आबादी के लिए मात्र 47 दमकल केंद्र राज्य में स्थापित किए गए हैं। यही नहीं, दमकल केंद्रों को स्थापित करने को लेकर प्रदेश में कोई नीति नहीं बनाई गई है। यही वजह है कि कुछ जगह अभी भी दमकल केंद्र नहीं हैं। हिमाचल में लकड़ी के मकान वाले क्षेत्रों में आग की घटनाएं ज्यादा होती हैं,लेकिन यहां पर दमकल केंद्रों का अभाव है। वहीं इनको स्थापित करने में भौगोलिक स्थिति का भी विशेष ध्यान रखा जाना जरूरी है, जो कि रखा नहीं जा रहा। शिमला जिला के दुर्गम इलाकों, कुल्लू, मंडी, चंबा, सिरमौर जैसे जिलों में दमकल केंद्रों की कमी है। ऐसे में इन जगहों पर आग लगने पर समय पर दमकल वाहन दूर से नहीं पहुंच पाते। वहीं,रही-सही कसर खराब सड़कें पूरा कर रही हैं। ऐसे में आग की यदि एकदम भी सूचना दी जाए, तो भी घटनास्थल तक पहुंचने में कई घंटे दमकल वाहनों को लगते हैं। हाल ही शिमला जिला के चिड़गांव के जिस तांगणू गांव में आग लगने की घटना पेश आई है, वह भी रोहड़ू फायर स्टेशन से करीब 37 किलोमीटर दूर था। वहीं, सड़क खराब होने की वजह से वाहनों को गांव तक पहुंचने में ही कई घंटे लग गए। इसलिए जरूरत इन इलाकों में अधिक से अधिक दमकल केंद्रों को खोलने की है, ताकि आग लगने पर समय पर दमकल वाहन घटनास्थल तक पहुंच सकें। जिला वार देखें तो शिमला जिला में मौजूदा समय में पांच फायर स्टेशन हैं। ये स्टेशन राजधानी शिमला में माल रोड, छोटा शिमला, बालूगंज और रोहड़ू व रामपुर में हैं, वहीं चार फायर पोस्टें ठियोग, कुमारसैन, सुन्नी व चौपाल में खोली गई हैं। सोलन में सोलन शहर, परवाणू, नालागढ़ व बद्दी मेेंकेंद्र खोले गए हैं। इसके अलावा एक फायर पोस्ट अर्की में है। सिरमौर में नाहन, पांवटा साहिब, जबकि एक फायर पोस्ट कालाअंब में है। बिलासपुर में एक फायर स्टेशन शहर में और दो फायर पोस्टें नैनादेवी व घुमारवीं में काम कर रही हैं। हमीरपुर में एक फायर स्टेशन हमीरपुर व एक फायर पोस्ट सुजानपुर में स्थापित की गई है। कांगड़ा में तीन फायर स्टेशन धर्मशाला, कांगड़ा व पालमपुर में हैं,जबकि ज्वालामुखी, नूरपुर, बैजनाथ, जवाली, नगरोटा बगवां व जयसिंहपुर में फायर पोस्टें हैं। ऊना जिला में एक फायर स्टेशन ऊना शहर में और दो फायर पोस्टें अंब और टाहलीवाल में हैं। चंबा में एक फायर स्टेशन चंबा शहर में और तीन फायर पोस्टें बनीखेत, खड़ामुख और चुराह में हैं। मंडी जिला में एक फायर स्टेशन मंडी शहर में है जबकि तीन फायर पोस्टें जोगिंद्रनगर, सरकाघाट में व लारजी में हैं। कुल्लू में एक फायर स्टेशन कुल्लू और दो फायर पोस्टें मनाली और आनी में स्थापित की गई हैं। किन्नौर में एक फायर स्टेशन रिकांगपिओ में, और लाहुल-स्पीति के केलांग में एक फायर पोस्ट काम कर रही है। चीफ फायर आफिसर जेसी शर्मा का कहना है कि सरकार प्रदेश में दमकल सेवाओं को दुरुस्त कर रही है। इसके लिए सरकार अब तक राज्य में 47 दमकल केंद्र खोल चुकी है और बाकी जगहों पर चरणबद्ध तरीके से दमकल केंद्र खोले जाएंगे। विभाग को आधुनिक वाहनों से लैस किया जा रहा है। इसके लिए जहां आधुनिक फायर टेंडर तैनात किए गए हैं, वहीं सभी दमकल केंद्रों में एक-एक क्विक रिस्पांस व्हीकल तैनात कर दिया गया है और अग्निशमन यंत्रों से लैस बाइकें भी चरणबद्ध तरीके से इन केंद्रों को दी जाएंगी। स्टाफ की कमी को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं। विभाग में विसंगितयों का मसला सरकार के सामने रखा गया है।
गांवों के लिए कोई प्लान नहीं
हर पंचायत और गांव में दमकल केंद्र खोलना संभव नहीं है, लेकिन सरकार सामाजिक भागीदारी से आग से निपटने के लिए नीति बना सकती है, लेकिन इस ओर सरकारों का ध्यान नहीं गया। हालांकि 1998 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस बारे में संबंधित विभागों को पहल करने के निर्देश दिए थे। इसके तहत ऐसी योजना बनाने के निर्देश दिए गए थे, इसमें गांवों के लिए पानी के बड़े टैंक बनाए जाने थे और इस पानी का इस्तेमाल आग लगने पर किया जा सकता था,लेकिन अभी तक ऐसी कोई नीति सरकार ने नहीं बनाई है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की जरूरत
प्रदेश के गावों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की भी जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक आग से निपटने के लिए लोगों को खुद अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने बेहद जरूरी हैं और इसके लिए सरकारों को लोगों को प्रोत्साहित करना होगा। जानकारों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की जिस तरह की परिस्थितियां हैं, उसमें यदि सभी लोग मिलकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाएं तो आग से तुरंत निपटने में मदद मिलेगी।
फायर प्रूफ नहीं शहर-गांव
हिमाचल में ऐसा कोई शहर या गांव मॉडल के तौर पर भी विकसित नहीं किया गया, जहां आग से निपटने के पुख्ता इंतजाम हों। हाल ही में शिमला के तांगणू में लगी आग ने बता दिया है कि 21वीं सदी में भी हम बेबस हैं और आग की विनाशलीला को मूकर्दशक बनकर देख रहे हैं। इससे पहले भी कुल्लू के कोटला गांव को आग ने पलक झपकते राख के ढेर में बदल दिया था। हालांकि आग बुझाने के लिए इस गांव तक दमकल गाडि़यां तो भेजी गई थीं,ं लेकिन प्रशासन कई सालों से इस गांव तक सड़क नहीं बना पाया था। वहीं आग से जब सब कुछ तबाह हो चुका था,तब प्रशासन ने यहां रातों-रात सड़क बना दी, ताकि सरकार का कोपभाजन न बनना पडे़।
राष्ट्रीय मानकों पर अमल नहीं
राज्य में आग से बचाव को लेकर राष्ट्रीय मानकों पर अमल नहीं किया जा रहा है। फायर सर्विस हालांकि राज्य सरकारों का मामला है, ऐसे में यह राज्य सरकारों की पूरी जिम्मेदारी है कि वह आग बुझाने के लिए पूरा तंत्र विकसित करें। वावजूद केंद्र सरकार इसके लिए समय-समय पर राज्य सरकारों को आर्थिक और तकनीकी मदद देती रहती है। केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्टैंडिंग फायर एडवाइजरी काउंसिल बनाई गई है, जो कि राज्यों को इस बारे में दिशा निर्देश देती रहती है, लेकिन हिमाचल में इन दिशा निर्देशों को लागू नहीं किया जाता।
बदले ही नहीं जाते सिलेंडर
सरकारी भवनों में कई जगह फायर फाइटिंग सिलेंडर लगाए तो गए हैं,लेकिन अधिकांश मामलों में इन्हें रीफिल नहीं किया जाता। मानकों के अनुसार इन सिलेंडरों को एक साल में बदलना जरूरी है, लेकिन यहां सचिवालय से लेकर स्कूलों और दूसरे सरकारी भवनों में कई साल पुराने सिलेंडर पड़े रहते हैं, जिनको बदलने की कभी जहमत नहीं उठाई जाती।
फायर फाइटिंग संयंत्र कामचलाऊ
स्टैंडिंग फायर एडवाइजरी काउंसिल के अनुसार कोई भी भवन जो 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाला है। वहां पर फायर फाइटिंग से जुड़े उपकरण होने जरूरी हैं। मगर यहां पर कुछेक सरकारी भवनों को छोड़कर किसी में भी ऐसी व्यवस्था नहीं है। स्कूलों, अस्पतालों व ऐसे कार्यालयों, जिनमें लोगों का आना-जाना रहता है, वहां पर ये उपकरण होने जरूरी हैं, लेकिन इन उपकरणों को या तो लगाया नहीं जाता या लगाया जाता भी है तो वे आधुनिक नहीं बल्कि काम चलाऊ किस्म के ही होते हैं। एडवाइजरी के अनुसार सरकारी व निजी भवनों में भी वाटर स्टोरेज पंप होने जरूरी हैं, ये कहीं दिखाई ही नहीं देते।
ऐतिहासिक धरोहरें स्वाह
ऐतिहासिक धरोहरों को आग से सुरक्षा के प्लान नहीं हैं। यही वजह है कि राज्य में धरोहर इमारतें एक के बाद एक जलकर राख के ढेर में तबदील हो रही हैं। ऐतिहासिक इमारतों में से अधिकांश में अग्निशमन यंत्र तो लगाए गए हैं, लेकिन इनको चलाना किसी को नहीं आता। इससे ये यंत्र शोपीस बनकर रह जाते हैं। प्रदेश में दर्जनों ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो अधिकांश लकड़ी की बनी हुई हैं। मानवीय लापरवाही से ये इमारतें एक के बाद एक आग की भेंट चढ़ रही हैं। राजधानी शिमला में ही ऐसी कई इमारतें आग की भेंट चढ़ चुकी हैं। साल 2014 में शिमला के एजी आफिस में ऐसी भयानक आग लग गई थी। 110 साल पुराने धरोहर भवन गॉर्टन कैसल की ऊपरी दो मंजिलें राख हो गईं थीं। आग को बुझाने के लिए दमकल विभाग को पानी भी उपलब्ध नहीं हो पाया था। साल 2015 में शिमला का ऐतिहासिक मिंटो कोर्ट आग से राख हो गया था। मिंटो कोर्ट बिल्डिंग 1904 में बनी थी। यहां महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे के केस की सुनवाई हुई थी और उसको फांसी की सजा सुनाई गई थी। इससे पहले यहां स्नोडन, सेना अस्पताल, कैनेडी हाउस सहित कई अन्य इमारतें राख हो गईं, यदि इसी तरह से इन इमारतों को आग से बचाने के इंतजाम नहीं किए गए,तो ये इतिहास को संजो कर रखने वाली इमारतें खुद इतिहास बनकर रह जाएंगी। ऐतिहासिक इमारतों में एक शिमला की रेलवे बोर्ड बिल्डिंग है, जो कि आगरोधी है। इस भवन में 10 फरवरी 2001 को आग लग गई थी बावजूद यह आग से प्रभावित नहीं हुई। दरअसल इसकी संरचना आग रोधी बनाई गई है।
एनओसी तक नहीं लेते
रेस्तरां, ढाबे, होटल आदि का निर्माण करने पर दमकल विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना जरूरी होता है। पहले ऐसी व्यवस्था थी, लेकिन समय के साथ अब कोई भी दमकल विभाग से एनओसी नहीं लेता। इस व्यवस्था को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है, जिसपर सरकार भी ध्यान नहीं देती है। अब घरों का मामला केवल नक्शे पास करवाने तक ही सीमित रह गया है या फिर नगर नियोजन विभाग व नगर निगम, पंचायतों की एनओसी तक ही सीमित है।
स्टाफ की कमी
प्रदेश दमकल विभाग में स्टाफ की कमी चल रही है। विभाग में सबसे ज्यादा कमी मिनिस्ट्रियल स्टाफ की चल रही है। विभाग में वर्तमान में इस वर्ग के 45 पदों से मात्र 12 पद भरे हुए हैं, जबकि बाकी 33 पद खाली चल रहे हैं। ऐसे में विभाग में तकनीकी कर्मचारी लिपिक का काम कर रहे हैं। विभाग के पास तकनीकी कर्मचारियों के करीब 130 पद खाली चल रहे हैं। मौजूदा समय में डिवीजनल फायर आफिसर के दो पद, विभाग स्टेशन फायर आफिसर के तीन पद, सब फायर आफिसर के चार पद, लीडिंग फायरमैन के आठ पद, फायरमैन के 65 पद और ड्राइवर कम पंप आपरेटर के 51 पद खाली चल रहे हैं। वर्तमान में विभाग के पास करीब 250 होमगार्ड्स तैनात किए गए हैं, जो कि आग बुझाने का काम कर रहे हैं।
दूसरे विभागों से बनाए जाते रहे हैं चीफ
दमकल विभाग एक अहम विभाग ह, जो कि आग बुझाने से लेकर दुर्घटनाओं में राहत कार्य का भी काम करता है, लेकिन इस विभाग की दुर्गति यह रही है कि विभाग में दूसरे विभागों पर डेपुटेशन पर चीफ फायर आफिसर भेजे जाते रहे हैं। 1963 से अब तक विभाग में कुल 15 चीफ फायर आफिसर बने हैं और मजे की बात है कि इनमें से 7 अफसर दूसरे विभागों के रहे हैं।
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