सेना भर्ती आयोजन का मानवीय पक्ष

By: Jan 16th, 2017 12:02 am

( कुलदीप चंदेल लेखक, बिलासपुर से हैं )

इस भर्ती कुंभ से एक बात तो सामने आई कि जहां समाज ने मानवीय मूल्यों की पवित्रता बनाए रखी, वहीं बहुत से युवक स्वच्छता अभियान को अंगूठा दिखाते देखे गए। युवा पीढ़ी से तो देश व समाज को बहुत उम्मीद होती है। नारे लगाए जाते हैं कि जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है…

एक सप्ताह तक बिलासपुर में चली भारतीय सेना की भर्ती के दौरान उमड़ा युवकों का जनसैलाब जहां कई यादों को छोड़ गया, वहीं इस दौरान मानवीय मूल्यों की सर्वश्रेष्ठ झलक भी देखने को मिली है, जिससे इस बात का संतोष तो किया ही जा सकता है कि संवेदनशीलता और परोपकार की भावना भारतीय समाज से लुप्त नहीं हुई है। कम से कम देवभूमि हिमाचल में तो यह सब देखा व भोगा ही जा सकता है। असल में सेना की भर्ती के दौरान बिलासपुर जिला मुख्यालय के कहलूर खेल स्टेडियम में बिलासपुर, हमीरपुर, ऊना, मंडी, कुल्लू, लाहुल- स्पीति जिलों के हजारों युवकों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। यूं लगा जैसे शहर की सड़कों पर युवाओं का जनसैलाब उमड़ आया हो। एकसाथ सैकड़ों युवक सड़कों पर भर्ती के लिए अपने गंतव्य की तरफ जाते हुए देखे जाते रहे, लेकिन जब नवंबर की ठंडी रातों में इन भर्ती होने आए युवकों को कहीं ठौर ठिकाना न मिला तो वो जहां जगह मिली, वहीं सो गए। यहां तक कि श्मशानघाट में, जहां शव दहन होते हैं, वहां भी थके-हारे युवक रात को सोते देखे गए। कई लोगों ने युवकों को अपने घरों के कमरों व बरामदों में दरी बिछा कर सुलाया।

लूहणू के गोपाल गौतम तो इस पुनीत कार्य को अंजाम देने के लिए नई दरी खरीद कर लाए। उसे बड़े कमरे में बिछाया और युवकों को सुलाया। वहीं पदमदेव के घर के दो कमरों व एक बरामदे में बावन लड़कों ने रात बिताई। इब्राहिम व उनकी पत्नी जीमा ने अपने घर से बिस्तर, दरियां देकर लगभग 20 युवकों को समीप के बास्केटबाल स्टेडियम के साथ शिक्षा विभाग के एक भवन के बरामदे में सुलाने में मदद की। आचार्य मोहल्ले में कई घरों में ये लड़के सोए रहे। गुरुद्वारे व मंदिरों में भी युवकों को आसरा मिला। निर्माणाधीन गुरु रविदास मंदिर हाल में भी कोई डेढ़ सौ युवक जैसे-तैसे रातें बिताते रहे। कई लोगों ने एक सौ रुपए प्रति युवक से किराया लेकर एक कमरे में 20-20 लड़कों को सुलाया। यही नहीं, भर्ती के इस कुंभ में कई दानवीरों ने आगे आकर मुफ्त लंगर लगाए। ट्रांसपोर्टर नंद प्रकाश बोेहरा और विजय कुमार ने लंगर लगाया, तो विश्वकर्मा मंदिर में वहां के आसपास के लोगों ने इकट्ठे होकर लंगर लगाए रखा। थोक विक्रेताओं ने श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में, तो रौड़ा सेक्टर के दुर्गा मंदिर परिसर में भी वहां समीप के लोगों ने लंगर लगाए रखा। सेवानिवृत्त बास्केटबाल कोच श्याम शर्मा ने सुबह की चाय के साथ भर्ती होने आए युवकों को हलवा परोसा। यानी सेना की भर्ती के इस महाकुंभ में समाज ने अपना उत्तरादित्व निभाया।

मानवता जाग उठी, लेकिन नौकरशाही तो आराम फरमाती रही। जिस शहर में अचानक एकसाथ इस  तरह 15 हजार युवक भर्ती होने आ जाएं, उनके लिए इंतजाम करना भी तो प्रशासन की जिम्मेदारी होनी चाहिए थी, जो पूरी नहीं हुई। युवक इधर-उधर सड़कों, गलियों के किनारे शौचनिवृत्त होते रहे। नगर परिषद विश्राम गृह इतना गंदा कर दिया कि यहां होने वाले एक शादी समारोह के आयोजकों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इस भर्ती कुंभ से एक बात तो सामने आई कि जहां समाज ने मानवीय मूल्यों की पवित्रता बनाए रखी, वहीं बहुत से युवक स्वच्छता अभियान को अंगूठा दिखाते देखे गए। युवा पीढ़ी से तो देश व समाज को बहुत उम्मीद होती है। नारे लगाए जाते हैं कि जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश भर में शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान की धज्जियां यदि युवा वर्ग उड़ाए, तो वह राष्ट्रहित में तो कहा नहीं जा सकता है। इब्राहिम और जीमा के मुताबिक जिन युवकों को उन्होंने अपने घर से ओढ़ने बिछाने के कपड़े, चादरें व कंबल आदि दिए, उनमें से सुबह दो लड़के वापस करने आए और शेष वहीं छोड़ कर चले गए। लिहाजा जीमा को खुद जाकर वहां से वे सब लाने पड़े। मानवीयों मूल्यों को बनाए रखना अच्छी बात है। मानवता इनसानियत के भावों की लौ समाज में जगती रहनी चाहिए। तभी अच्छे समाज व उन्नत राष्ट्र का मस्तिष्क गर्व से ऊंचा होता है। युवा वर्ग में अनुशासन की भावना हर कीमत पर रहनी चाहिए। अनुशासन व्यक्ति को मर्यादित जीवन जीने का मार्ग बताता है।

कुछ साल पहले भी बिलासपुर में सेना की भर्ती हुई थी। तब प्रो. प्रेम कुमार धूमल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। तब भी बिलासपुर शहर में इसी तरह से गंदगी पसरी थी। इस लेखक ने तब सीएम साहब को एक निजी पत्र लिख कर बताया था कि सफाई के मामले में प्रशासन फेल रहा है। डीसी को इस समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए, लेकिन सीएम चाहे कोई हो। ऐसे पत्रों की परवाह कौन करता है? डीसी को अपने आलीशान आफिस से उठकर फील्ड रिपोर्ट देखनी समझनी चाहिए, जब डीसी परवाह नहीं करेगा तो नीचे के अधिकारियों को क्या पड़ी है। सेना की भर्ती तो चलती रहती है। यह बिलासपुर की ही समस्या नहीं है। कहीं भी किसी भी शहर में एकाएक दस-पंद्रह हजार लोग आ जाएं तो वहां मुश्किल तो होगी ही, लेकिन सेना की भर्ती का ढिंढोरा तो काफी पहले पिट चुका था। अस्थायी इंतजाम हो सकते थे, जो नहीं हुए। समाज ने अपना उत्तरादायित्व निभाया। मुफ्त लंगर लगे। कई परोपकारी लोगों ने घरों में भी लड़कों को ठहराया न उनका धर्म पूछा न जात पूछी। यही तो इस समाज की विशेषता है। समाज की भारतीय सेना के प्रति श्रद्धा है। बस अब प्रशासन से अपेक्षा है कि वह इस से सबक ले और भविष्य में होने वाली इस तरह के आयोजनों के लिए पूरी करे, ताकि न तो युवा परेशान हों और स्वच्छता भी बनी रहे।


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