हिमाचली पहचान की यात्रा

By: Jan 16th, 2017 12:05 am

हिमाचल की स्थापना 1948 में हुई। देश की आजादी की घोषणा के आठ महीनों बाद इस कार्य में तत्कालीन केंद्रीय नेताओं, प्रशासकों और स्थानीय नेताओं के योगदान को भुला नहीं सकते। उन्होंने पर्वतीय लोगों की अक्षुण्ण स्वायत्तता को तरजीह दी और इसे भारतीय परिसंघ का एक विशिष्ट पहाड़ी प्रांत बना दिया। एक पृथक आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई के रूप में वजूद में आने से  पिछड़े ग्राम्यजनों को सदियों बंद रहे पहाड़ों को मुक्ति की राह प्राप्त हुई…

हिमाचल प्रदेश के रूप में हमने एक कामयाब पहाड़ी राज्य की संरचना की है। इसके लिए संकेत हमने अपने राष्ट्रीय गणराज्य की स्थापना के समय ही चुन लिए थे। हमारे प्रजातंत्र के रहबरों ने हमारी क्षमताओं और ऐषणाओं को पहचान लिया था। उत्तर-पश्चिम हिमालय का यह प्रांत एक साथ मुरबंर होकर अपनी प्रकृति के अनुरूप विकास नीति अपनाने के लिए मनोयोग से कर्मरत हुआ है। अपनी पात्रताओं को उपयोग में लाने के लए राज्य में कोई सबल व सुचारू अर्थतंत्र नहीं था, फिर भी अटूट आस्था और मनोबल के साथ हमारी कर्मठ पीढि़यां अपने स्वप्नलोक के साथ आगे बढ़ती रहीं। हिमाचल की स्थापना 1948 में हुई। देश की आजादी की घोषणा के आठ महीनों बाद इस कार्य में तत्त्कालीन केंद्रीय नेताओं, प्रशासकों और स्थानीय नेताओं के योगदान को भुला नहीं सकते। उन्होंने पर्वतीय लोगों की अक्षुण्ण स्वायत्तता को तरजीह दी और इसे भारतीय परिसंघ का एक विशिष्ट पहाड़ी प्रांत बना दिया। एक पृथक आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई के रूप में वजूद में आने से कालांतर से पिछड़े ग्राम्यजनों को सदियों बंद रहे पहाड़ों को मुक्ति की राह प्राप्त हुई। अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक के भारत के इस अठारहवें राज्य ने जो उपलब्धियां अर्जित की हैं, वह भारतीय गणराज्य के लिए और हम सबके लिए एक गौरवमय बात है।  इसमें न केवल दूरदर्शी आइडियोलॉजिस्ट वर्ग का मार्गदर्शन रहा अपितु तत्कालीन योजनाकारों की कोशिश रही कि हमें कार्यान्वयन के लिए एक विकास मूलक विशिष्ट पर्वतीय नीति प्राप्त हो सकी। कहना न होगा कि इसके लिए केंद्र का समर्थन भी हमें प्राप्त रहा। केंद्र प्रशासित इकाई के रूप में इसे तत्कालीन राजनीतिज्ञों का नैतिक व आर्थिक समर्थन भी किया जाना अपरिहार्य था। इस भूखंड का वास्तविक आर्थिक सामाजिक उत्थान का दौर तब शुरू हुआ जब इसे बहुत देर बाद 1971 में पूर्ण राज्यत्व का दर्जा प्राप्त हुआ और एक सक्षम पर्वतीय राज्य के रूप में यह अपनी पात्रता प्रमाणित कर सका।  यह सुदीर्घ कालखंड इस भू-खंड के लिए एक निरंतर संघर्ष का कार्यकाल रहा है। हिमाचल समय के आर्थिक राजनीतिक-सामाजिक बदलावों के रू-ब-रू चर्चित दौर में एक प्रतीक राज्य के रूप में सामने आया है। इसने अपनी महत्ती क्षमताओं को दिग्दर्शित और प्रमाणित किया है, जिससे प्ररेणा प्राप्त कर देश के अन्य पर्वतीय खंडों ने भी स्वयं को गतिशील बनाया है। हिमाचल ने अपने अस्तित्त्व के इन 68 वर्षों में अपनी क्षमताओं को पहचाना है और उन क्षमताओं का भरसक उपयोग किया है। विकास को महज नीतियां दे देना ही काफी नहीं, उनका मर्यादित ढंग से कार्यान्वयन भी  जरूरी है। समय-समय पर परिस्थितियों के अनुरूप नीतियों में फेरबदल भी किए गए हैं। कोई भी इतिहास एक दिन में नहीं बन जाता, उसको अनुकूल और क्षमताओं के अनुरूप समय चाहिए।  हिमाचल ने यदि केंद्रीय स्तर पर देश की सरकारों से समय-समय पर लिया भी है तो अपने साधनों के अनुरूप सेवा और कार्य के रूप में देश के उत्थान में सहयोग भी किया है। इस पर्वतीय राज्य ने भारतीय सशस्त्र सेनाओं को जांबाज जवान दिए हैं। विशेषकर कठिन पर्वतीय ढलानों पर लड़ने के लिए जिन्होंने अपने वीरगाथाएं भी रची हैं। हर बार हर युद्ध में। केंद्र से उन्हें सम्मान और प्रशस्तियां भी प्राप्त होती रही हैं। इन महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक वर्षों में अपनी युद्धवीरता के लिए। कृषि और विशेषकर फल व सब्जियों की बागबानी में हिमाचल ने अपना विशेष स्थान बनाया है। उसका फल उत्पादन देश भर की सुदूर व निकटस्थ मंडियों में विपणन के लिए भेजा जाता है। देश के फल और शाक उपभोक्ताओं में यहां के कृषि उत्पादों ने अपना नाम बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप पर्वतीय किसानों व किसानों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है। हिमाचल के सेब, गुठलीदार फल, खुंबियां हर वर्ष राज्य की राजस्व आय में सहयोग देती हैं। सेब राज्य का तमगा हासिल करने के बाद आज हिमाचल राज्य से बाहर एक फल राज्य के रूप में जाना जाता है। बेहतरीन प्रजाति के फल और सब्जियों पैदा करने की दिशा में भी न केवल देश के भीतर अपितु देशांतरों में भी सम्मान प्राप्त है। प्रशंस्कृत किए गए फल के निर्मित उत्पाद भी देश के एकाधिक नगरों व महानगरों में विशेष रूप से लोकप्रिय हुए हैं अैर उपभोग्य माने जाते हैं। राज्य ने अपनी स्थलीयता और पारिस्थितिकी व प्राकृतिक संसाधनों के उपयुक्त बहुमुखी विकास का मानक बनाया है, जो देश के पर्वतीय राज्यों के लिए एक उपयोगी प्रमेय के समान है। पन ऊर्जा के क्षेत्र में राज्य स्तर पर अपना एक महत्त्वपूर्ण मुकाम बनाया है। हिमाचल एक ऊर्जा सरप्लस प्रदेश है जो उत्तरी ग्रिड के राज्यों को फालतू बिजली बिक्री कर आमदनी अर्जित कर रहा है। उक्त राजस्व राज्य के अंदर की योजनाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायता देता है। उद्यमों के क्षेत्र में भी राज्य अग्रगामी है।    यहां की उद्योग बस्तियां नामतः परवाणू, बद्दी, कालाअंब, मैहतपुर इत्यादि न केवल लाभकर स्थिति में हैं अपितु उत्पादन भी स्तर का है। बिजली कद्रतन अन्य जगहों से सस्ती होने के कारण बड़े-बड़े उद्योग घरानों में भी इन बस्तियों की ओर अपनी शाखाओं की स्थापना के लिए आकर्षित हुए हैं।  फलों व सब्जियों के आधार पर भी यहां उत्पादक उद्योग कार्यरत हैं, जिनमें प्रोसेसिंग ग्रेड का फल उत्पाद बनता है। हिमाचल ने अपने औद्योगिक उत्पादनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों को लागू किया है और पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में हिमाचल प्रगतिगामी है। यहां चूना पत्थर और इतर खनिजों पर आधारित उद्योग भी हैं। प्रशासन की यह कोशिश रहती है कि कच्चे माल के ज्यादा दोहन अथवा कारखानों के संचालन से पर्यावरण को कोई क्षति न पहुंचे। परिस्थितिकी का लाभ-हानि का पूरा जायजा लिया जा रहा है। पर्यटन पर्वतीय वादियों में रहने वाले लोगों के लिए एक आयकारी व्यवसाय है। इसमें राज्य सरकार अधिकृत पर्यटन इकाइयों एवं राज्य पोषित संगठनों का सहभाग ज्यादा है। निजी क्षेत्र में भी पर्यटन व्यवसाय प्र्र्रगति पर है। कुछेक घाटी क्षेत्रों में घरेलू पर्यटन लघु स्तर पर विस्तार पा रहा है। हिमाचल के कुछ शहर और ग्राम्य क्षेत्र देश भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार की महत्त्वाकांक्षी होम स्टे योजना इस दिशा में महत्ती मददगार साबित हो रही है। जिन क्षेत्रों में मौसम खुशनुमा और वर्ष में ज्यादातर संतुलित बना रहता है, वहां उक्त व्यवसाय की गतिविधियां ज्यादा दिखाई देती हैं। हिमाचल एक शांतिप्रिय राज्य है। एक औसत पर्यटक को भी न केवल यहां के सुंदर प्राकृतिक दृश्य अपितु सुसंस्कृत-संस्कृति बरबस आकर्षित करती है। भारतीय परिसंघ का यह अठारहवां राज्य एक महत्त्वाकांक्षी भू-राजनीतिक इकाई है जो हिमालय के भव्य मुकुट पर एक मूल्यवान नग की तरह जड़ा है। उसके हृदय में पहाड़ी जीवन की क्षमशीलता के साथ-साथ समेकित राष्ट्र की प्रतिध्वनि भी गूंजती है।

                     -श्रीनिवास श्रीकांत


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App