हिमाचली पुरुषार्थ : असफलता की पगडंडियां बनीं सफलता की राह

By: Jan 18th, 2017 12:07 am

प्रदेश विश्वविद्यालय में दो साल का समय इनका जीवन में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। यहां उनमें  प्रशासनिक सेवा में जाने का जज्बा पैदा हुआ।  यहां वह अपने साथी छात्रों को प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करते और चयनित होते देखते तो उनके अंदर भी प्रशासनिक सेवा में जाने की तमन्ना हिलोरें लेने लगी…

cereerमनमोहन सिंह का सफर संघर्षों से भरा रहा है। साल  2006 में जब मनमोहन सिंह अपने करियर की नींव  रख रहे थे, तभी इनके सिर से मां का साया छिन्न गया। मां के देहांत के  बाद काफी संघर्ष से इनको और परिवार को गुजरना पड़ा। मां के देहात के बाद पिता और बहन के साथ उन पर घर की जिम्मेदारी आ गई। हालांकि इस बीच साल 2006 में उनका चयन नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) में बतौर स्टेटिस्किल इनवेस्टिगेटर हो गया था। इसके बाद नौकरी  के साथ-साथ तैयारियों को जारी करने की चुनौती इनके सामने थी। साल 2010 में इनका चयन प्रधान महालेखाकार कार्यालय शिमला में अस्सिटेंट ऑडिट आफिसर के पद पर हुआ।  इस बीच वह एचएएस की परीक्षा भी देते रहे। प्रदेश विश्वविद्यालय में दो साल का समय इनका जीवन में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। यहां उनमें  प्रशासनिक सेवा में जाने का जज्बा पैदा हुआ।  यहां वह अपने साथी छात्रों को प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करते और चयनित होते देखते तो उनके अंदर भी प्रशासनिक सेवा में जाने की तमन्ना हिलोरें लेने लगी। उनको लगने लगा कि जब और साथी लोग प्रशासनिक सेवा में जा सकते हैं, तो वह क्यों नहीं। हालांकि आत्मनिभर्र होने के लिए वह दूसरी परीक्षाएं भी देते रहे और दो- दो नौकरियां भी पहले की। इन पदों पर कार्यरत होते हुए भी वह हिमाचल प्रशासनिक सेवा की तैयारियां करते रहे। नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई के लिए भी समय निकालना आसान नहीं था। ऐसे में वह घर में सुबह- शाम इस परीक्षा की तैयारी करते। साल 2010 में उनका विवाह  हो गया। इसके बाद भी उन्होंने अपनी तैयारियां जारी रखीं। परिवार और पढ़ाई में किस तरह से तालमेल बनाया, इस सवाल पर वह कहते हैं कि  उनकी पत्नी ने उनको हमेशा परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरित किया। असफलता और कठिन हालात में पत्नी सपना उनके साथ चट्टान की तरह खड़ी रही और सेवानिवृत्त शिक्षक पिता भी लगातार प्रेरणा देते रहे। मां के दिए संस्कारों ने भी उनके अंदर संघर्ष का जज्बा दिया। यही वजह है कि  2008 से 2013 तक  उन्होंने कई बार हिमाचल प्रशासनिक सेवा परीक्षा दी, लेकिन असफलता हर बार हाथ लगी।  वह कहते हैं कि बार-बार   असफलता से 2014 में उनको एक बार ऐसा भी लगा कि अब शायद परीक्षा छोड़ देना उचित होगा, लेकिन फिर पिछले कई सालों के संघर्ष को याद किया और सोचा कि इतने साल तक मेहनत की और अब इसे छोड़ना उचित नहीं होगा। वहीं परिवार और मित्रों ने भी उनको प्रेरित किया। अपनी मेहनत की बदौलत साल  2014 में हिमाचल प्रशासनिक सेवा परीक्षा के माध्यम से इनका चयन जिला रोजगार अधिकारी के तौर पर हुआ और वर्तमान में वह रिकांगपिओ में इस पद पर तैनात हैं। मनमोहन सिंह कहते हैं कि हिमाचल प्रशासनिक सेवा की परीक्षा कई बार दी असफताओं का भी सामना हुआ। वहीं नौकरी  के साथ- साथ प्रशासनिक सेवा परीक्षा के लिए समय निकलना भी आसान नही था। ऐसे में जब भी उनको जितना समय मिला उन्होंने इसे परीक्षा की तैयारियों में लगा दिया। अंतत 2016 में एचएएस की परीक्षा में टॉप कर गए। हालांकि उन्होंने इस परीक्षा के लिए काफी मेहनत की थी, लेकिन इतनी टापर बनने जैसी बड़ी सफलता के बारे में कभी भी सोचा नहीं था। मनमोहन सिंह अपनी सफलता का श्रेय अपनी स्वर्गीय मां कलादेवी के अलावा अपनी पत्नी सपना कुमारी, सेवानिवृत शिक्षक पिता कृष्णदास और दोस्तों व  शिक्षकों को देते हैं। वह कहते हैं कि युवा अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत करें। लक्ष्य जरूर मिलेगा।

जब रू-ब-रू हुए…

cereerहिमाचली युवा को सही मार्गदर्शन की जरूरत…

जीवन को संकट और असफलता से क्या मिला?

जीवन में संकट और असफलता ने कई अनछुए पहलुओं से अवगत करवाया, लेकिन इन्होंने एक मूल मंत्र भी दिया कि कभी हार मत मानना। इन्हीं से तो मैं मजबूत होकर निकला हूं। वैसे भी संकट और असफलता जिंदगी का एक पड़ाव है, जो हमेशा नहीं रहता। संकट और असफलता में भगवान भी इनसान की परीक्षा लेता है

पहला लक्ष्य किस आयु में पहचाना?

कालेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा के दौरान। विश्वविद्यालय के दौरान मैने देखा कि कई सहपाठी प्रशासनिक सेवा में जा रहे हैं, तो मुझे लगा कि यदि मैं भी मेहनत करता हूं तो मैं भी प्रशानिक सेवा परीक्षाओं को पास कर सकता हूं।

क्या अब संतुष्ट हैं या अभी भी मंजिल के कुछ पायदान बाकी हैं?

मैं बिल्कुल संतुष्ट हूं।  मुझे जो अब तक मिला है उसके लिए ईश्वर का धन्यवादी हंू। मैं जिस प्रशासनिक सेवा में चयनित हुआ हूं, वहां बहुत कुछ करने का मौका है। अब एक ही सपना है कि एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर लोगों के लिए बेहतर से बेहतर कार्य करूं।

शिक्षा की जिन सीढि़यों से आप चढ़े, उनमें क्या खामियां-खूबियां रहीं?

देखिए हमारी शिक्षा व्यवस्था दरअसल व्यावहारिक नहीं है। यह युवाओं के लिए केवल डिग्री ही दिला सकती है। आज जरूरत है ऐसी शिक्षा की, जो जिंदगी में काम आ सके। ऐसी शिक्षा जिससे बेरोजगारों की संख्या न बढ़े बल्कि युवा आत्मनिर्भर हों। इसके लिए सभी को मिलकर काम करना है।

ग्रामीण परिवेश से बाहर निकलने की जद्दोजहद में खुद पर कैसे भरोसा हुआ?

मंैने मैट्रिक तक की पढ़ाई अपने गांव के स्कूल में की। इसके बाद मैं रामपुर बुशहर में 11वीं की पढ़ाई के लिए आया। यहां मैंने मेहनत की और 12वीं में अपनी कक्षा में टॉप किया। इससे मुझमें आत्मविश्वास बढ़ा। मुझे  लगा कि हम ग्रामीण परिवेश में पलने और बढ़ने वाले भी जिंदगी में बहुत कुछ कर सकते हैं।

कोई तीन सिद्धांत, जिनके आधार पर आज आप प्रशासनिक अधिकारी बनने का वाब पूरा कर रहे हैं?

कठिन परिश्रम, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और विनम्रता व सादगी। इन गुणों की बदौलत ही मैं आज यहां तक पहुंच पाया हूं।

पढ़ाई का दौर हर दिन कितना रहा और इसमें अध्ययन की भूमिका को किस तरह जोड़ा?

मैंने चूंकि प्रशासनिक सेवा की तैयारियां नौकरी के साथ की हैं, तो बहुत ज्यादा समय नहीं मिल पाता था। इसके बावजूद सुबह-शाम कुल मिलाकर 4-5 घंटे रोजाना पढ़ाई करता था। अवकाश वाले दिन तो काफी वक्त पढ़ाई में ही गुजरता था। इस परीक्षा में मनन करने के साथ-साथ अपने दोस्तों के साथ भी मैं अपने विषयों पर विचार विर्मश करता था।

एचएएस परीक्षा के शिखर पर मनमोहन सिंह इस उपलब्धि के मार्गदर्शक के रूप में किसे धन्यवाद देंगे?

मेरे माता-पिता, बहनें और पत्नी जिन्होंने मेरा हमेशा ही मार्गदशन किया। मेरे मित्रों और मेरे सहकर्मियों का भी मुझे सहयोग और मार्गदशन रहा है।

प्रशासनिक या राष्ट्रीय स्तर की सेवाओं में सफल होने में जुटे हिमाचली युवाओं को आपकी प्रमुख सलाह क्या होगी ?

कठिन परिश्रम निरंतर करें। कभी असफलता के आगे हार न मानें, बल्कि इससे सीखते मंजिल की ओर बढ़ें। सबसे बड़ी बात भगवान पर जरूर भरोसा रखें, लक्ष्य अवश्य मिलेगा।

हिमाचली प्रतिभा का ईमानदार मूल्यांकन संभव है या इस वर्ग को क्यों पिछड़ कर मायूस होना पड़ता है?

हिमाचल में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बल्कि उनको सही मार्गदर्शन और वह परिवेश नहीं मिल पाता, जिससे कि वे आगे अपनी प्रतिभा का प्रर्दशन कर सकें। हिमाचल में राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के लिए उच्च स्तरीय कोचिंग सेंटर भी नहीं है। यही वजह है कि हिमाचल के युवा राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में भी ज्यादा नहीं निकल पाते।

जिंदगी में किसकी शख्सियत से प्रभावित हुए?

अपनी स्व. माता कलादेवी से और सेवानिवृत्त शिक्षक पिता श्री कृष्णदास से। ये वास्तव में मेरे लिए आर्दश रहे हैं। इनके संस्कारों से में ही आज यहां तक पहुंचा हूं और आगे भी बेहतर करूंगा।

खुशी मनाने के लिए क्या ढूंढते हैं?

जब भी वक्त मिलता है तो मैं अपने मित्रों से जरूर मिलता हूं। मुझे उनके साथ खुशी मिलती है। वहीं मैं भगवान को भी याद करता हूं। खुशी हो तो जरूर मंदिर जाता हूं।

—खुशहाल सिंह, शिमला


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