अपराध की गली तक हिमाचल

By: Feb 26th, 2017 12:05 am

देवभूमि हिमाचल भी अपराधों का प्रदेश बनता जा रहा है। यहां भी अन्य राज्यों की तरह आपराधिक वारदातें बढ़ रही हैं। हिमाचल में हर साल 17 हजार के करीब मामले थानों में दर्ज हो रहे हैं, यानी हर रोज करीब 46 मामले थानों तक पहुंचते हैं। हत्या, बलात्कार, डकैती, लूट जैसी वारदातें हिमाचल में भी हो रही हैं। हालांकि हिमाचल में संगठित अपराध को पुलिस नकार रही है, लेकिन राज्य में चोरी व लूटपाट में  शामिल गिरोहों  से इनकार नहीं किया जा सकता…

हिमाचल भी हत्या जैसे संगीन अपराधों का गवाह बनता जा रहा है। राज्य में हर साल एक सौ से ज्यादा हत्याओं के मामले सामने आ रहे हैं। इसके अलावा 60-70 मामले हत्या के प्रयास के दर्ज हो रहे हैं। पुलिस विभाग के आंकड़े  बता रहे हैं कि प्रदेश में बीते एक  साल में हत्या के 101 मामले दर्ज  किए गए हैं। वहीं हत्याओं के मामलों को देखें तो कांगड़ा जिला 21 हत्याओं   के साथ पहले व शिमला जिला 17  मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है। ऊना में इस दौरान 10, सोलन व मंडी में नौ-नौ हत्याएं हुई हैं। वहीं, बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 8 और सिरमौर में सात मामले दर्ज किए गए हैं। कुल्लू जिला में हत्या के छह  मामले,  हमीरपुर व  किन्नौर जिला में भी चार-चार हत्याएं हुई हैं। चंबा व बिलासपुर में इस दौरान तीन-तीन मामले दर्ज किए गए हैं। हालांकि सुखद यह रहा है जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में इस दौरान एक भी मामला हत्या का दर्ज नहीं हुआ है।

अपनों का ही बह रहा खून

हिमाचल में भी लोग रिश्तों को भूलकर अपनों का ही कत्ल कर रहे हैं। हालांकि ऐसे मामले अभी कम हैं, लेकिन जो हो रहे हैं वे  हिमाचल को कलंकित कर रहे हैं।  हाल ही में रोहड़ू में शराब के नशे में धुत्त एक बेटे ने बेरहमी से अपनी मां को मौत के घाट उतारा। इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। इससे पहले भी कुछ ऐसी ही वारदातें हुई हैं। प्रदेश में जिस तरह नशे में युवाओं की संलिप्तता सामने आ रही है, वे अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं।

साइबर अपराधियों ने फैलाया फन

हिमाचल में भी एक नए किस्म का अपराध पनपने लगा है। वह है साइबर अपराध। हिमाचल के भोले-भाले लोग इन अपराधों के शिकार हो रहे हैं। राज्य में बीते एक साल में ही साइबर अपराध के 383 मामले पुलिस साइबर सैल के पास पहुंचे हैं। साइबर सैल के पास पहुंचे इन मामलों में सबसे ज्यादा आनलाइन ठगी के हैं।  बाहरी राज्यों में बैठे  शातिर हिमाचल के लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं। इनके बड़े नेटवर्क काम कर रहे हैं जो कभी बैंक आफिसर तो कभी बीमा एजेंट बनकर लोगों के साथ लाखों की ठगी कर रहे हैं।  प्रदेश के साइबर सैल तक पहुंची 383 शिकायतों में से 110 ऑनलाइन ठगी की थीं। वहीं सोशल नेटवर्किंग का अपराध भी हिमाचल में तेजी से बढ़ा है। इसमें फेसबुक पर लड़कियों की झूठी प्रोफाइल बनाना या उनका फेसबुक पर पीछा करना,  व्हाट्सऐप पर परेशान करना या गलत मैसेज करने के अलावा ई-मेल व वेबसाइट आदि हैक करने जैसे मामले शामिल हैं।  इन अपराधों में ज्यादातर लड़कियों को परेशान करने के मामले हैं। इस तरह के करीब 101 मामले साइबर सैल को मिले हैं।

बढ़ती नशाखोरी चिंताजनक

पूर्व डीजीपी भंडारी का कहना है कि हालांकि हिमाचल में अपराध में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन नशे का प्रसार जरूर चिंताजनक है। श्री भंडारी की मानें तो नशे को रोकने के लिए पंचायतों, कृषि व बागबानी विभाग, पुलिस और शिक्षा विभाग को मिलकर कदम उठाने की जरूरत है। स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों पर भी ध्यान देना जरुरी है। वहीं नशे को कंट्रोल करने के लिए पुलिस को छोटी मात्रा में ड्रग्ज पकड़ने की बजाय बड़े स्मगलरों को पकड़ना चाहिए । नशे में संलिप्त लोगों को पकड़ने के लिए आधुनिक तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अपराधों की सूचना लेने के लिए नए गैजेट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं इसके लिए पुलिस मुख्यालय व जिला स्तर पर स्पेशल सैल हो ऐसे पुलिस जवानों को तैनात किया जाए,जो जनता से बेहतर संवाद कर सके।

बेरोजगारी भी बढ़ा रही अपराध

एक कहावत है कि खाली बैठे शैतानी सूझे, हिमाचल पर भी यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। हिमाचल में  बेरोजगारी का आंकड़ा आठ लाख से पार कर गया है। काम न होने से युवा निठल्ले बैठ रहे हैं और वह आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने लगे हैं। नशे के कारोबार में  बेरोजगार युवा भी संलिप्त पाए जा रहे हैं जो कि कमाई करने की चाहत में नशे के धंधे में शामिल हो रहे हैं। वहीं नशे के सौदागार भी इन युवाओं को ही अपना माध्यम बना रहे हैं। शहरी इलाकों में सिंथेटिक ड्रग्ज की सप्लाई भी इन युवाओं के माध्यम से हो रही है हिमाचल में युवाओं को कौशल प्रशिक्षण बड़े पैमाने पर देने की जरूरत है। युवाओं को गुणवत्तापूर्वक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे रोजगार कमाने के लायक हों और अपना छोटा-मोटा कारोबार भी कर सके। खेल गतिविधियों को भी बढ़ावा  देने की जरूरत है। स्कूलों, कालेजों के अलावा अन्य युवा संगठनों के माध्यम से इन गतिविधियों को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाया जा सके।

चोरी-सेंधमारी की 991 वारदातें

हिमाचल  के ग्रामीण इलाकों में कभी घरों में ताले नहीं लगाए जाते थे, इसकी वजह यह थी कि यहां कभी चोरियां नहीं होती थीं, लेकिन अब तो चोर घरों की चाक चौबंद सुरक्षा को भी तोड़ रहे हैं।  हिमाचल में बीते  एक साल में ही चोरी व सेंधमारी की 991 वारदातें दर्ज हुई हैं। यानी हर रोज करीब तीन वारदातें राज्य में सामने आई हैं। चोरी व सेंधमारी के मामले में कांगड़ा जिला सबसे आगे है, यहां बीते एक साल में कुल 201 वारदातें हुई हैं। कुल्लू में 164, शिमला में 127, मंडी में 104  और सोलन में 105 वारदातें पुलिस में दर्ज हुई हैं। वहीं बिलासपुर जिला में इस दौरान 65, चंबा में 32,  हमीरपुर में 29, ऊना में 84 और बीबीएन में 63 मामले चोरी व सेंधमारी के दर्ज हुए हैं।

डकैती-लूट के 14 केस

डकैती की बात करें तो राज्य में बीते एक साल में तीन मामले सामने आए हैं। ये मामले बीबीएन, मंडी व ऊना में दर्ज हुए हैं।  लूट की इस दौरान प्रदेश में 11 वारदातें हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा चार वारदातें सिरमौर में पेश आई हैं। बिलासपुर में दो वारदातें, बीबीएन, मंडी, सोलन, ऊना में एक-एक वारदात इस दौरान हुई।

खनन माफिया भी सक्रिय

खनन माफिया भी सीमावर्ती इलाकों में बहुत सक्रिय है। इन इलाकों में खनन भारी मात्रा में हो रहा है। इसके अलावा वन संपदा का कटान भी इन इलाकों में  बाहरी लोगों द्वारा देखा गया है। वहीं इन इलाकों में पुलिस अपनी सुरक्षा चाक -चौबंद नहीं कर पाई है। सीमावर्ती इलाकों में सीसीटीवी कैमरों और पैट्रोलिंग की ज्यादा जरूरत है,जबकि मौजूदा समय में इसकी पुख्ता व्यवस्था नहीं है। इन इलाकों में जवानों को भी आधुनिक हथियारों से लैस किए जाने की जरूरत है

प्रवासी लगा रहे साख को बट्टा

हिमाचल आम तौर पर शांत राज्य माना जाता था, लेकिन अब यहां भी अपराधों  का ग्राफ भी बढ़ रहा है और इस अपराध को बढ़ाने में बाहरी राज्यों के लोगों का भी हाथ है। प्रदेश में बाहरी राज्यों के लोग मजदूरी के काम से आते हैं और यहां कई बार बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं। राज्य के शहरी इलाकों में हो रही चोरी व सेंधमारी की वारदातों में प्रवासी मजदूरों का हाथ अधिकतर देखा गया है। वहीं नेपाली मूल के कुछ लोग भी अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। हिमाचल में बड़ी संख्या में  नेपाली मूल के लोग शिमला जिला के अलावा कुल्लू व अन्य सेब बहुल इलाकों में काम करते हैं।

महफूज नहीं महिलाएं 253 रेप

देवभूमि जो कभी महिलाओं के लिए सुरक्षित मानी जाती थी, वहीं अब बलात्कार, छेड़छाड़ जैसी घटनाएं हो रही हैं। हिमाचल में हर साल 250 के ज्यादा बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं। हिमाचल में दुष्कर्म की सबसे ज्यादा वारादातें कांगड़ा, सिरमौर, शिमला, मंडी व चंबा में हो रही हैं। पुलिस विभाग के आंकड़ों के अनुसार बीते एक साल में राज्य में दुष्कर्म की 253 वारदातें सामने आई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 41 मामले कांगड़ा जिला में दर्ज हुए हैं। वहीं सिरमौर 34 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर, मंडी 30 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर और शिमला 28 मामलों के साथ पर चौथे स्थान पर रहा है। चंबा में 25, कुल्लू में17, ऊना व बिलासपुर में 15-15 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं हमीरपुर व सोलन में 13-13, बीबीएन में 12 व किन्नौर में भी नौ मामले दर्ज हुए हैं जबकि लाहुल-स्पीति में एक मात्र मामला दर्ज हुआ है।

अपने ही लूट रहे अस्मत

महिलाओं की इज्जत लूटने वालों  में अपने ही लोग सबसे ज्यादा देखे गए हैं। पुलिस की मानें तो राज्य में दुष्कर्म की अधिकतर वारदातें उन लोगों द्वारा की गई हैं,जो कि पीडि़ताओं के करीबी हैं या जान-पहचान के हैं।

पर्यटन स्थलों पर देह व्यापार

हिमाचल में पर्यटन स्थलों पर देह व्यापार भी पनप रहा है। कई होटलों में यह धंधा  किया जाता है और पुलिस ने कई बार रंगे हाथों सेक्स रैकेट को पकड़ा है। होटलों में इस कारोबार को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरों की सहायता ली जा सकती है। यदि सभी होटलों में सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाएं तो वहां आने जाने वाले लोगों की जांच की जा सकती है, लेकिन देखने में आया है कि हिमाचल में अधिकांश होटलों में सीसीटीवी कैमरे ही नहीं हैं। ऐसे में यहां देह व्यापार की संभावना ज्यादा रहती है। वहीं यह भी देखा गया है कि इस तरह के रैकेट हिमाचल में बाहरी राज्यों से सक्रिय होते हैं।

नशे के चक्रव्यूह में युवा

हिमाचल में नशा तस्करों का जाल तेजी से फैल रहा है। चरस, अफीम के साथ-साथ अब सिंथेटिक ड्रग्ज भी हिमाचल में खूब बिक रही है।   नशे के इस कारोबार का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इसकी चपेट में युवा वर्ग आ रहा है। राज्य में सबसे ज्यादा 266 मामले कांगड़ा जिला में इस दौरान दर्ज हुए। शिमला जिला में 139 मामले, मंडी में 125 मामले, कुल्लू जिला में 122 मामले इस दौरान दर्ज किए गए। वहीं बीबीएन के तहत 40 मामले, बिलासपुर में 26, चंबा में 57, हमीरपुर में 22, सिरमौर में 43,  सोलन में 25 और ऊना में 44 मामले बीते एक साल में सामने आए हैं। हालांकि हिमाचल के कबायली जिला किन्नौर और लाहुल-स्पीति अभी भी मादक द्रव्यों के कारोबार से ज्यादा प्रभावित नहीं है। किन्नौर में इस दौरान मात्र आठ मामले और लाहुल-स्पीति में दो ही मामले दर्ज किए गए। हिमाचल में चरस, अफीम का कारोबार जोरों पर है। चरस हिमाचल में  प्रदेश के दुर्गम इलाकों में बड़ी मात्रा में तैयार की जा रही है। वहीं अफीम भी कुछ  जगह पाई जा रही है, लेकिन बाहरी राज्यों से भी यहां अफीम की खेप पहुंच रही है। अब तो स्मैक, हेरोइन, ब्राउन शुगर, कोकीन की तस्करी भी हिमाचल में होने लगी है। आंकड़ों के अनुसार 2016 में हिमाचल में 377 किलोग्राम चरस और 26.93 किलोग्राम अफीम पकड़ी गई है। यही नहीं इस दौरान पुलिस ने 209.36 ग्राम स्मैक, 634.65 ग्राम हेरोइन, 66.10 ग्राम ब्राउन शुगर, 4 ग्राम कोकीन भी पकड़ी है। इनके अलावा इस दौरान राज्य में 55 हजार नशीली गोलियां, 77 हजार कैप्सूल, तीन हजार प्रतिबंधित सिरप की शीशियां और 471 नशीले इंजेक्शन बरामद किए गए। हिमाचल की सीमाएं पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर के साथ लगती हैं। यही वजह है कि प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में अपराध भी तेजी से बढ़ रहा है। पंजाब से साथ लगते ऊना व कांगड़ा के क्षेत्र अपराध संभावित क्षेत्र हैं। इसी तरह सोलन का बद्दी, सिरमौर का हरियाणा व उत्तराखंड के साथ लगता इलाका भी आपराधिक गतिविधियां का गढ़ बनता जा रहा है।  इन इलाकों में सबसे ज्यादा कारोबार ड्रग्ज का हो रहा है। खासकर पंजाब के साथ लगते हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रो में नशे  की सप्लाई तेजी से बढ़ी है।

एक लाख लोगों के लिए 23१ जवान

कानून व्यवस्था बनाए रखने और अपराध रोकने में पुलिस की भूमिका अहम होती है। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल की जरूरत रहती है। हिमाचल की बात करें तो यहां पुलिस की स्थिति संतोषजक नहीं है। पुलिस और जनसंख्या का अनुपात देखा जाए तो यह बेहद कम है। प्रदेश में अपराध तो तेजी से बढ़ रहा है,  लेकिन पुलिस की तादाद इस अनुपात में नहीं बढ़ी। मौजूदा समय में हिमाचल की एक लाख की आबादी पर मात्र 231 पुलिस जवान हैं। हालांकि यह अनुपात राष्ट्रीय अनुपात 182 से अधिक है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। राज्य पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक विभाग में आईपीएस से लेकर पुलिस कांस्टेबल तक के स्वीकृत 17119 पदों में से 2648 खाली हैं और करीब 14471 भरे हुए हैं। इनमें आईपीएस अधिकारियों के स्वीकृत 89 पदों में से 71 पद भरे गए हैं और एचपीएस के 172 पदों में से 159 भरे हैं। इस तरह हिमाचल में अफसरों और जवानों की कुल तादाद 14471 है। हिमाचल में कानून व्यवस्था से लेकर अपराधों से निपटने की जिम्मेदारी इन अधिकारियों व  जवानों पर है। इसके विपरीत राज्य में अपराध का ग्राफ भी बढ़ रहा है। यहां हर साल औसतन 17 हजार मामले थानों में दर्ज हो रहे हैं। वहीं अन्य राज्यों की बात करें तो हिमाचल आबादी और पुलिस के अनुपात के मामले में कई राज्यों से पीछे है। मणिपुर में प्रति लाख पर 1265 जवान, मिजोरम में 1084 जवान, अरुणांचल में 994 जवान, सिक्किम में 966 जवान, नागालैंड में 929 जवान, मेघालय में 547 जवान, गोवा में 422 जवान हैं। हिमाचल के पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर में 659 जवान, पंजाब में 264, हरियाणा में 213 जवान हैं, जबकि उत्तराखंड में 201 जवान हैं। हिमाचल में औसतन एक लाख जनसंख्या पर मात्र 231 जवान सेवाए दे रहे हैं। इन जवानों पर कानून व्यवस्था बनाए रखने, ट्रैफिक रेगुलेट करने और वीआईपी की आवभगत करने की ज्यादा जिम्मेदारी रहती है। वहीं हालात ये हैं कि केसों की जांच के लिए भी पुलिस के पास पर्याप्त जांच अधिकारी नहीं हंै। पुलिस अफसरों को छोड़ दें तो किसी भी केस की जांच इंस्पेक्टर से लेकर हैड कांस्टेबल स्तर के कर्मचारी करते हैं। इंस्पेक्टर से लेकर हैड कांस्टेबल स्तर के जवानों की तादाद देखें तो यह करीब 4032 है। इन जांच अधिकारियों पर केसों का बहुत ज्यादा बोझ है। ऐसे में ये अधिकारी किस तरह केसों की जांच करते हैं, इससे सहज ही समझा जा सकता है। ऐसे हालात में पुलिस भी छोटे केस दर्ज करने से बचती है। वहीं, दर्ज होने वाले केसों की जांच भी सही तरीके से कर नहीं पाती।

खुफिया तंत्र हाईटेक नहीं

प्रदेश का खुफिया तंत्र अभी भी प्रोफेशनल नहीं है। पूरा सीआईडी यानी क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट पुराने ढर्रे पर चला हुआ है। विभाग में न केवल स्टाफ की कमी है, बल्कि इसमें तैनाती भी ज्यादातर सिफारिशों से की जाती है। वहीं विभाग में स्टाफ की भी भारी कमी है। सीआईडी में करीब 650 पदों में से करीब 100 पद खाली चल रहे हैं। कोई भी अपराध रोकने के लिए सूचना तंत्र को मजबूत बनाया जाना चाहिए। सीआईडी के क्राइम विंग को बेहद मजबूत करने की जरूरत है।

नई चुनौतियों से निपटने को तैयार नहीं खाकी

हिमाचल में पुलिस अभी भी अपराध की नई चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं दिख रही। अपराधों की जांच के तौर-तरीकों को और भी वैज्ञानिक बनाने की जरूरत है, लेकिन प्रदेश में फोरेंसिक जांच की व्यापक सुविधा नहीं हैं। यही वजह है कि अधिकतर आपराधिक वारदातों के सबूत पूरी तरह से एकत्र नहीं हो पाते। कई बार यह भी देखने में आया है चोरी की वारदातों की फोरेंसिक जांच नहीं हो पाती। इसकी वजह यह है कि फोरेंसिक की सुविधा अभी केवल कुछ ही जगहों तक सीमित है। राज्य में अभी शिमला, मंडी और धर्मशाला में फोरेंसिक लैब हैं, जबकि इनको जिला स्तर पर बनाने की जरूरत है। अभी भी पुलिस अपराधों का पता लगाने के लिए व्यापक तौर पर सीसीटीवी कैमरे नहीं लगा पा रही। पैट्रोलिंग के लिए पुलिस के पास वाहनों की कमी है। प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह-जगह न केवल सीसीटीवी लगाने की जरूरत है, बल्कि यह भी जरूरी है कि ये नई तकनीकों के हों। यह भी देखा गया है कि न केवल सीसीटीवी कैमरे कम हैं , बल्कि जो अभी सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, वे एनपीआर (नंबर प्लेट रीडर) नहीं हैं। ऐसे में रात को जब इन कैमरों पर लाइट पड़ती है तो ये कैमरे गाडि़यों के नंबर भी पहचान नहीं पाते। ऐसे में इन जगहों पर लूटपाट की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं और पुलिस जब पहुंचती है, तब तक अपराधी मौके से फरार हो जाते हैं। पुलिस को आधुनिक हथियारों से भी लैस करने की जरूरत है। राज्य में पुलिस के पास अभी भी पुराने हथियार हैं, जिनको नए व आधुनिक हथियारों से बदला जाना जरूरी है।

सूत्रधार खुशहाल सिंह


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