आज भी रुला देती है बिलासपुर की मोहणा गाथा

By: Feb 22nd, 2017 12:05 am

मोहणा बिलासपुर के गीतों में अपना अलग स्थान रखता है। इस घटना प्रधान गाथा को गाते समय अब भी लोग प्रायः रो पड़ते हैं। बिलासपुर के राजा विजय चंद के पास मोहन का भाई नौकर था। ये लोग मोरसिंगी गांव के रहने वाले थे…

प्रसिद्ध लोक गाथा गीत

कुंजू ने जाकर अपनी प्रेयसी के दर्शन किए और चंचलों ने मानसिक उद्वेग में अपने बाजू में पहने चांदी के चूड़े तोड़ दिए। कुंजू ने चंचलों को चांदी का चूड़ा प्रेम उपहार स्वरूप स्मृति चिन्ह दिया और उसकी आंखों से ओझल हो गया। उपर्युक्त लोक गाथा से आज भी उस प्रेमी युगल के मार्मिक प्रणय संबंधों की स्मृति ताजा हो जाती है और चंबा जनपद में आज भी अमर है।

फुलमू और रांझू की लोकगाथा : इस लोक गाथा के नायक और नायिका भी चंबा के  लोक गीतों में गाए जाने वाले रांझू और फुलमू हैं। बाल्यावस्था का स्नेह क्रमशः परिपक्वता की चरम सीमा पर पहुंच जाता है, किंतु इस हृदयहीन समाज में इतनी सहिष्णुता कहां कि किसी युवा के प्रेम को सफल होने दे। फुलमू चंबा के बधेरन क्षेत्र के एक ग्राम की सुंदर बाला थी और रांझू साथ वाले एक गांव के एक नंबरदार का पुत्र था। रांझू  फुलमू के सौंदर्य पर मोहित था और बांसुरी की मधुर धुनों से फुलमू के मन को आंदोलित करता रहता था। आखिर गांव में फुलमू और रांझू के प्रेम की चर्चा आरंभ हो गई। नंबरदार ने अपने पुत्र को समझाने की कोशिश की कि फुलमू से विवाह करना खानदान को धब्बा लगाने वाली बात होगी। किंतु फुलमू और रांंझू दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे। इसलिए रांझू ने पिता के परामर्श को नहीं स्वीकारा। तब रांझू के लिए उसने एक अन्य कन्या का रिश्ता करके विवाह करने की तैयारियां आरंभ कर दीं। पड़ोसिन ‘संतों’ ने फुलमू को जाकर जब यह समाचार सुनाया कि रांझू ने फुलमू से भी उबटन लगाने का आग्रह किया, किंतु फुलमू अपने पिता के घर वापस जाकर अपने प्रेमी के निमित्त सदा के लिए विदा हो गई। दूसरे दिन एक ओर जब रांझू की बारात जा रही थी, तो दूसरे और फुलमू की अर्थी के जा रही थी। रांझू को जब पता चला कि यह फुलमू की अर्थी है, तो रांझू अपनी पालकी से उतर कर अर्थी के साथ हो लिया। रांझू ने अपने हाथों फुलमू  की चिता बनाई और अग्नि दी। इस प्रकार फुलमू की काया को राख में परिवर्तित होते ही यथार्थ स्नेह का अंत हुआ। यह स्नेह गाथा आज भी चंबा के इतिहास में अमर है। यह गीत 14 की मात्र की चाचर ताल में निबद्ध है। इसमें राग पहाड़ी के स्वरावलियों का बड़ी सुंदरता से प्रयोग किया गया है।

मोहणा गाथा : मोहणा बिलासपुर के गीतों में अपना अलग स्थान रखता है। इस घटना प्रधान गाथा को गाते समय अब भी लोग प्रायः रो पड़ते हैं। बिलासपुर के राजा विजय चंद के पास मोहन का भाई नौकर था। ये लोग मोरसिंगी गांव के रहने वाले थे। किसी कारण से अपने गांव में झगड़ा हो जाने के कारण मोहन के भाइयों ने अपने पड़ोसी की हत्या कर दी। भाइयों ने मोहन को कहा कि तुम मान लेना कि खून तुम ने किया है।


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