उनके झोले में हर वक्त मिलती है साहित्यिक पत्रिकाएं

By: Feb 27th, 2017 12:04 am

आपको नई पत्रिका चाहिए क्या? मंडी शहर में पहुंचते ही अपने मिलने वाले परिचितों से चर्चित कवि सुरेश सेन निशांत यही सवाल पूछते हैं। उनके झोले में हर वक्त कोई न कोई साहित्यिक पत्रिका का ताजा अंक मौजूद रहता है। मतलब वह मंडी तभी आते हैं, जब दो-चार साहित्यिक पत्रिकाओं के  नए अकं उनके पास पहुंच जाते हैं। उन्हें अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए वे घर से निकल पड़ते हैं। आज भले ही साहित्य की पत्रिकाएं आम आदमी की पहुंच से दूर हो गई हैं। अच्छा और गंभीर साहित्य पाठकों तक नहीं पहुंच पा रहा है। मगर इसके बावजूद साहित्य को लेकर प्रदेश के दो साहित्यकार जुनून की हद तक  समर्पित हैं। दोनों ही हिमाचल के चर्चित साहित्यकार हैं। इनमें वरिष्ठ कथाकार एसआर हरनोट शिमला और चर्चित कवि सुरेश सेन निशांत का नाम लिया जा सकता है। जो इस संक्रमण काल में भी साहित्य को लेखकों और पाठकांे तक पहुंचाने की जिद पाले हुए है। एसआर हरनोट जहां शिमला में  अपनी इस मुहिम को चलाए हुए हंै, तो मंडी में सुरेश सेन निशांत इस समय करीब एक दर्जन से अधिक साहित्यिक पत्रिकाओं का वितरण कर रहे हैं। इन दोनों ही साहित्यकारों का झोला साहित्य की चलती- फिरती दुकान है। जिसमें पहल से लेकर नया ज्ञानोदय, कथादेश, वसुधा, तद्भव, वागर्थ, परिचय, समयांतर, जनपथ , आधारशिला समेत कई पत्रिकाओं को वे नियमित रूप से पाठकों तक पहुंचाते हैं। कधें पर लैदर का झोला और झोले में पत्रिकाएं, यह सब जैसे उनकी पहचान बन गई है। सुरेश सेन निशांत हर महीने तीन सौ से अधिक पत्रिकाएं पाठकों तक पहुंचाते हैं, जिनमें लेखक कम दूसरे लोग ज्यादा हैं। निशांत का कहना है कि पहल पत्रिका पढ़ने के बाद वे कविता लेखन में सक्रिय हुए। इतनी अच्छी कविताएं और लोग भी पढ़ें इसलिए पहल की पांच प्रतियां मंगवानी शुरू कर दी। इसके बाद डिमांड बढ़ती गई तो और पत्रिकाएं भी मंगवाईं ताकि इससे समाज को भी लाभ मिले  । उनका कहना है कि उनके पाठक लेखक कम मगर आम आदमी ज्यादा हैं। वह साहित्य को जन तक पहुंचा रहे हैं।


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