ऐसे स्मार्ट बनेगा शिमला

By: Feb 5th, 2017 12:10 am

हिमाचल की शान शिमला महज अपनी खूबसूरती के कारण स्मार्ट नहीं बन सकता। राजधानी को स्मार्ट सिटी का चोला पहनाने के लिए कई दिक्कतों से पार पाना होगा। मसलन, ट्रैफिक, ट्रांसपोर्ट सिस्टम, 24 घंटे बिजली-पानी, नई टाउनशिप व डे्रनेज सिस्टम से लेकर ऐसे कई आधुनिक तौर-तरीके अपनाने होंगे, जो असल में शिमला को स्मार्ट बना दें। किन जंजीरों को तोड़कर स्मार्ट सिटी का ताज पहनेगा शिमला, देखें इस बार का दखल..

पहाड़ों की रानी शिमला स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल है। प्रदेश की राजधानी होने और पूर्व में इकलौता नगर निगम होने के बावजूद स्मार्ट सिटी के लिए शिमला का नाम न भेजे जाने का मलाल सभी को था, लेकिन अब शिमला इस दौड़ में शामिल है और स्मार्ट सिटी की फेहरिस्त में शिमला का नाम पक्का करने के लिए नगर निगम शिमला इन दिनों दिन-रात प्रयास कर रहा है। अभी निगम प्रोपोजल तैयार करने में जुटा है। यह प्रोपोजल 31 मार्च को केंद्र को भेजा जाना है और अगर प्रोपोजल दमदार रहा, तो शिमला भी स्मार्ट सिटी की श्रेणी में आ जाएगा। इससे पहले हिमाचल से धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में जगह मिल चुकी है।  हालांकि धर्मशाला को भी दूसरी बार प्रोपोजल भेजना पड़ा था, लेकिन धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में शामिल करने की डगर इतनी कठिन नहीं थी, जितनी शिमला के लिए है। राजनीतिक विरोध को छोड़ दिया जाए, तो धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सरकार को ज्यादा मुश्किलें नहीं झेलनी पड़ी, लेकिन शिमला के लिए यह राह आसान नहीं है। कभी करीब 25 हजार लोगों के लिए बसाए गए शिमला शहर की आबादी आज करीब पौने दो लाख है। इसके अलावा यहां आने वाले पर्यटक अलग हैं।  शिमला में पेयजल की किल्लत से निपटना आज सबसे बड़ी चुनौती है। शिमला में पानी की जो पाइपलाइन बिछाई गई है,वह अंग्रेजों के जमाने की है। शिमला के लिए वर्ष 1875 में पानी की परियोजना शुरू की गई थी। इसके बाद 1889, 1914, 1923, 1974,1982,1992 और 2008 में इसे और विकसित किया गया। वर्तमान में शिमला के लिए गिरि, गुम्मा, चुरूट, चैहड़ और अश्विनी खड्ड पानी के मुख्य स्रोत हैं।  इन सभी स्रोतों से शिमला को चालीस से पैंतालीस एमएलडी पानी ही मिल पाता है। इन योजनाओं में से भी अश्विनी खड्ड की मुख्य परियोजना से पानी की सप्लाई पिछले करीब एक साल से बंद है। इस समस्या से निपटने के लिए कुछ समय पहले ही कोटी बरांडी योजना शुरू की गई, लेकिन जिन पाइपों के सहारे कोटी-बरांडी से पानी सप्लाई किया जा रहा है, वे नब्बे के दशक में बिछाई गई थीं। इसके कारण आए दिन पानी की पाइपें फट जाती हैं। पुरानी पाइपों से होने वाली लीकेज के कारण करीब 15 एमएलडी पानी सड़कों पर ही बह जाता है ।

कोल डैम से आस

शिमला को 24 घंटे पानी उपलब्ध कराने का सपना कोल डैम प्रोजेक्ट से पूरा होने की उम्मीद है। इस सिलसिले में हाल ही में वर्ल्ड बैंक की टीम भी शिमला का दौरा कर चुकी है। अगर यह प्रोजेक्ट सिरे चढ़ता है तो 65 एमएलडी पानी शिमला को मिलेगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ने में अभी समय लगेगा।

प्राइमेट पार्क बढ़ाएंगे शान

लंबे इंतजार के बाद सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा शिमला के प्राइमेट पार्कों को मंजूरी प्रदान करने के बाद आगामी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। ये दोनों पार्क चरणबद्ध तरीके से शिमला के शोघी व टुटीकंडी में स्थापित किए जाएंगे।  इससे पहले सीजेडए ने कुछ आपत्तियां लगाई थी, जिन्हें दुरुस्त करके भेजा गया था।  इससे पहले जो प्रस्ताव सीजेडए को भेजा गया था इसमें कहा गया था कि प्राइमेट पार्क के लिए वित्तीय सहायता राज्य सरकार देने के लिए रजामंद है, लिहाजा सीजेडए जल्द इसकी अनुमति प्रदान करें, ताकि तारादेवी के समीप चिन्हित स्थान पर हिमाचल का पहला प्राइमेट पार्क स्थापित किया जा सके।  इसमें यह भी कहा गया था कि वानरों के हैबिट्स व हैबीटेट का पूरा ख्याल रखा जाएगा। वानरों को चिकित्सीय संबंधी सुविधाएं भी यहां पर उपलब्ध करवाई जाएंगी।  इससे पहले सिंबलवाड़ा में भी ऐसे ही प्रोजेक्ट की तैयारी थी, मगर इसकी अनुमति नहीं मिल सकी थी। अब जो प्राइमेट पार्क तारादेवी के समीप स्थापित किया जा रहा है, वह एक सेंक्चुरी की शक्ल का होगा, जिसमें वानरों को बंधक बनाने जैसी कोई भी कवायद नहीं होगी। उन्हें न केवल दो वक्त का खाना मुहैया करवाया जाएगा, बल्कि नियमित आधार पर उनका मेडिकल चैकअप भी होगा। दूसरे चरणा में सोलन, हमीरपुर व कांगड़ा में भी ऐसे प्रयास किए जाएंगे।

फिर जगी रैपिड मास ट्रांसपोर्ट सिस्टम की आस

दक्षिण कोरिया करेगा शिमला का सर्वे

दक्षिण कोरिया ने शिमला ही नहीं धर्मशाला में भी अरसे से लंबित रैपिड मास ट्रांसपोर्ट सिस्टम की फिर से उम्मीद जगा दी है। इसके विशेषज्ञों ने दोनों ही पर्यटन स्थलों में इस क्षेत्र में भी निवेश की इच्छा जाहिर की है।  विभागीय उच्चाधिकारियों के मुताबिक दक्षिण कोरिया में यातायात की समस्या शिमला व धर्मशाला से भी विकराल है। वहां के विशेषज्ञों ने सर्वे के बाद इन दोनों ही पर्यटन स्थलों में अत्याधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित करने की इच्छा जताई है। इसमें पॉड कार व एरियल ट्रांसपोर्ट सिस्टम शामिल होगा।  महकमे के अधिकारी जल्द दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान वहां इस सिस्टम को परख सकते हैं। इसके बाद शिमला में एक संयुक्त उच्च स्तरीय बैठक होगी और प्रस्ताव केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को भेजा जाएगा। केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद दोनों ही स्थलों में इस अत्याधुनिक सिस्टम को स्थापित करने के लिए समझौता हस्ताक्षर हो सकते हैं।

हर दिन ट्रैफिक का दबाव

शिमला में डेढ़ लाख से भी ज्यादा वाहन आम दिनों में आवाजाही करते हैं। पर्यटन सीजन के दौरान यह संख्या अढ़़ाई लाख तक पहुंच जाती है। इसी दौरान यातायात संबंधी दिक्कतें भी बढ़ जाती हैं। इससे न केवल वायु प्रदूषण की दर में बढ़ोतरी होती है, बल्कि स्थानीय लोगों को भी पार्किंग समस्या से जूझना पड़ता है।  धर्मशाला से लेकर मकलोडगंज तक लंबे ट्रैफिक जाम अब आम हो चले हैं। शिमला के सर्कुलर रोड की बात हो या फिर ढली, संजौली जैसे उपनगरों की। ट्रैफिक जाम अब आम समस्या बन चुका है।

कोरिया सात हजार करोड़ के निवेश को तैयार

एरियल ट्रांसपोर्ट सिस्टम से इन दिक्कतों से पार पाया जा सकता है। इस क्षेत्र में दक्षिण कोरिया सात हजार करोड़ के पूंजी निवेश को भी तैयार है। इसमें अत्याधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा से इसे लेकर दक्षिण कोरिया से आए विशेषज्ञों की अलग-अलग बैठकें हो चुकी हैं। बहरहाल, दोनों ही टूरिस्ट स्टेशनों पर यदि ऐसी अत्याधुनिक योजनाएं सिरे चढ़ जाती हैं, तो यहां आने वाले सैलानियों के लिए भी जहां एक बड़ा आकर्षण होगा, वहीं उनको बड़ी राहत भी मिल सकेगी।

तीन बड़े सुरंग प्रोजेक्ट अधर में

राजधानी शिमला में तीन बड़े सुरंग प्रोजेक्ट फंडिंग के अभाव में वर्षों से लटके हैं। इनमें से एक प्रोजेक्ट आईजीएमसी से सर्कुलर रोड, दूसरा हिमफेड पेट्रोल पंप के पास से आईजीएमसी के लिए ही निर्धारित था। यही नहीं , एस्केलेटर्ज का भी सर्वेक्षण हुआ था, जिन्हें लक्कड़ बाजार बस स्टैंड से रिज, लोअर बाजार से मालरोड व अन्य क्षेत्रों के लिए स्थापित किया जाना था, मगर इनकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट ही एडीबी प्रोजेक्ट के तहत सही नहीं पाई गई, लिहाजा इन पर आगामी कार्रवाई नहीं हो सकी।  हालांकि जाखू रोप-वे टुटीकंडी से माल रोड जैसे रोप-वे प्रोजेक्ट्स के जरिए शिमला में पर्यटकों व स्थानीय लोगों को आवाजाही के लिए सरल सुविधा जुटाने की कवायद है। ड्रेनेज सिस्टम में सुधार के लिए नगर निगम शिमला ने बड़ा प्रोजेक्ट तैयार किया है।  स्मार्ट सिटी बनाने के लिए शिमला में लोगों से राय ली जा रही है। अत्याधुनिक ढर्रे की सुविधाएं जुटाने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी तैयार हो रही है।

जाठिया देवी का शृंगार करेगा सिंगापुर

हिमाचल सरकार ने शिमला के समीप जाठिया देवी में एक स्मार्ट इंटेग्रेटिड टाउनशिप विकसित करने के लिए सिंगापुर सरकार के साथ एक शुरुआती समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।  राज्य की राजधानी के समीप स्मार्ट एकीकृत टाउनशिप का विकास सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जो इस भारी जनसंख्या वाले शहर पर दबाव को कम करने में मददगार साबित होगा। भौतिक व आर्थिक बुनियादी सुविधायुक्त स्मार्ट एकीकृत टाउनशिप विकसित करने के लिए यह उपयुक्त समय है। जाठिया देवी में इस नगर के विकास के लिए हिमुडा ने पहले ही 32 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण कर लिया है।

आवारा कुत्तों की समस्या से निपटना चुनौती

शिमला शहर में आवारा कुत्तों का खासा आतंक है। हालांकि नगर निगम की ओर से एनिमल बर्थ कंट्रोल के तहत बर्थ कंट्रोल के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, लेकिन कुत्तों की संख्या में कोई खासी कमी नहीं है। सड़कों और चौराहों पर झुंड में बनाकर ये आवारा कुत्ते अकसर राहगीरों पर झपट पड़ते हैं। रिपन और आईजीएमसी में रोजाना ही डॉग बाइट के औसतन तीन से चार केस पहुंचते हैं।

निगम के पास आंकड़ा तक नहीं

नगर निगम चाहकर भी इस समस्या का हल नहीं पा सकता। वहीं निगम के पास इस बात की जानकारी ही नहीं है कि शहर में इस समय कितने स्ट्रीट डॉग्स हैं। करीब एक साल पहले  पश्ु कल्याण बोर्ड की ओर से इस बारे में नगर निगम को पत्र भेजकर कमेटी का गठन करने के आदेश दिए गए थे। बोर्ड ने नगर निगम आयुक्त को पत्र लिखकर एनिमल बर्थ कंट्रोल 2001 नियम के तहत स्ट्रीट डॉग की संख्या और उनके बर्थ कंट्रोल को लेकर निगम की ओर से चलाई जा रही योजनाओं का स्टेटस भी पूछा था। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में पिछले पांच सालों से एबीसी योजना चल रही है,उन क्षेत्रों में इसे बंद करने को कहा गया है और ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने को कहा गया था,जहां पर पिछले पांच सालों से एबीसी प्रोग्राम नहीं चलाया गया।

शिमला को डॉग फ्री करने में कानूनी पेंच

मार्च 2013 में प्रदेश हाई कोर्ट ने आवारा कुत्तों की समस्या पर कड़ा संज्ञान लेते हुए नगर निगम शिमला को तीन महीने के अंदर शहर को आवारा कुत्तों से मुक्त करने के आदेश जारी किए थे। इसके लिए हाई कोर्ट ने निगम आयुक्त को जिम्मेदारी सौंपी थी।  आदेशों में कोर्ट ने भी साफ तौर पर कहा था कि आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए एमसी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कुत्तों के साथ दया दिखाई जाए और उन्हें इस दौरान किसी भी तरह का शारीरिक कष्ट न हो। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि आवारा कुत्तों की उपस्थिति ठीक नहीं दिखती और महिलाओं और बच्चों के लिए भी परेशानी का सबब बनती हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक संस्था ने याचिका दायर की जिसके चलते हाई कोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया था।

शिमला को स्मार्ट बनाने के लिए सुझाव

* शहर को आसपास के क्षेत्रों से जोड़ने वाली सड़कें दुरुस्त हों

* शहर में सीवरेज व्यवस्था दुरुस्त हो और जो क्षेत्र सीवरेज लाइन से नहीं जुडे़ हैं,उन्हें सीवरेज लाइन से जोड़ा जाए

* बिजली की तारों को अंडरग्राउंड किया जाना चाहिए, ताकि बर्फ के मौसम में बिजली की आपूर्ति बाधित न हो

* शिमला में बच्चों के पार्क विकसित किए जाने चाहिए और साइंस पार्क बनाए जाने चाहिएं

— एसएन जोशी, सेवानिवृत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी

* शिमला में अधिकतर भवन हेरिटेज हैं, लेकिन लगातार हो रहे निर्माण से यहां काफी भीड़ हो गई है, इसलिए डिसेंट्रलाइनजेशन एक विकल्प हो सकता है

* पूरे शिमला के लिए एक रीजनल प्लान होना चाहिए

* शिमला शहर पर बढ़ते आबादी के बोझ को कम करने के लिए एक नई टाउनशिप विकसित की जानी चाहिए

* कार्ट रोड को वन-वे किया जाना चाहिए, ताकि यातायात सुचारू रहे

* पानी की कमी दूर करने के लिए सटीक योजना हो

— एएन गौतम पूर्व स्टेट टाउन प्लानर

अंडरग्राउंड विद्युत व्यवस्था की जरूरत

इस वर्ष हुई भारी बर्फबारी ने फिर से यह सोचने को मजबूर किया है कि शिमला जैसे शहरों में अंडरग्राउंड विद्युत व्यवस्था क्यों नहीं तैयार कर दी जाती। हालांकि यह खर्चीली है, मगर हर साल करोड़ों का जो खर्च रेस्टोरेशन कार्यों पर किया जाता है, उससे भी बचा जा सकेगा। ऐसा नहीं है कि ऐसी सिफारिशें पूर्व सरकारों के पास न गई हों, मगर उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। शिमला प्रदेश की राजधानी है। यहां जो घटता है वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित होता है। जानकारों के मुताबिक यदि ऐसे क्षेत्रों में अंडरग्राउंड व्यवस्था को लेकर नए सिरे से तैयारी की जाए तो बड़ी से बड़ी आपदा विद्युत आपूर्ति को बाधित नहीं कर पाएगी। हालांकि कुछ समय पहले शिमला में सिंगल केबल के जरिए बिजली की तारों के मकड़जाल को कम करने का प्रयास किया गया था, मगर इसके लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता न मिल पाने के कारण यह प्रोजेक्ट ठप कर दिया गया। शिमला के लोअर बाजार में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया गया था। यही नहीं, 33 किलोवाट लाइनों को बिछाने से पहले क्या सर्वे सटीक होते हैं, इस पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि ये उन क्षेत्रों में बिछी हैं, जहां या तो अत्यधिक पेड़ हैं या वे इलाके संवेदनशील माने जाते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील इलाकों में वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि लोग व यहां आने वाले पर्यटक निराश न हों। सौर ऊर्जा इसकी एक मिसाल हो सकती है।

शिमला में अंडरग्राउंड विद्युत व्यवस्था

स्थापित की जा सकती है, मगर यह काफी खर्चीली होगी। शिमला अव्यवस्थित तरीके से फैल चुका है। जगह-जगह अतिक्रमण है। ऐसे में अब इस व्यवस्था को लागू करना काफी मुश्किल होगा। सही यही रहेगा कि सभी महकमे समन्वय बिठाकर कार्य करें

— अरुण कुमार शर्मा पूर्व सदस्य, बिजली बोर्ड


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