कठिन कहानी बनती किसानी

By: Feb 11th, 2017 12:02 am

( कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं )

बेशक मुख्यमंत्री पशुओं को लावारिस छोड़ने वालों को पकड़ने या उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन समाज के मन में पैदा हो चुका खोट कब खत्म होगा? कब तक लोग किसी काम के न रहे गोवंश को गोशाला से बाहर का रास्ता दिखाते रहेंगे…

प्रदेश की हर गली, हर चौराहे पर लावारिस पशुओं तथा बंदरों का आतंक लोगों के लिए मुसीबत बन चुका है। उत्पाती बंदर की नजर जब किसी लहलहाते खेत पर पड़ती है, तो किसानों की कई महीनों की मेहनत पल भर में मिट्टी में जाती है। सड़कों पर गाय, बैल, कुत्ते व बंदर दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। लावारिस पशुओं के आतंक से पूरा हिमाचल प्रभावित हो रहा है। प्राचीन समय में कृषि चक्र में पशु, गोबर, किसान का विशेष महत्त्व था। आधुनिकता की अंधी दौड़ ने मानव को इस कद्र अंधा बना दिया है कि वह अपने हितों को साधने के लिए किसी भी हद तक जा रहा है। कहना न होगा कि आज इस लालची प्रवृत्ति के दुष्परिणाम कई रूपों में हमें देखने को मिल रहे हैं। प्रदेश की अधिकतर जनसंख्या का निर्वाह कृषि व्यवस्था पर ही निर्भर रहा है। पहाड़ी प्रदेश होने के नाते किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वहीं मौसम की अनिश्चितता के बीच किसान हमेशा कई मनहूस शंकाओं से घिरा रहा है। तिस पर तेजी से बढ़ते लावारिस पशुओं ने किसानों की मुसीबत को और भी बढ़ा दिया है। कड़कड़ाती सर्दी, तो कभी झुलसा देनी वाली गर्मी में किसान अपने परिवार के साथ रात-दिन मेहनत करता है तथा प्रदेश की जनसंख्या के भरण-पोषण का कार्य करता है। यदि किसान की फसल सुरक्षित नहीं होगी तो किसान के मनोबल के टूटने के साथ-साथ इसका प्रभाव प्रदेश की आर्थिकी पर पड़ना भी लाजिमी है।

पिछले कुछ समय में राजधानी के साथ-साथ मशोवरा पर्यटन स्थल, मंडी की सलापड़ पंचायत में करीब 400 लावारिस पशुओं ने पर्यटकों तथा किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाया। इसके अतिरिक्त बल्ह घाटी, जो कि प्रदेश की सबसे उपजाऊ घाटी मानी जाती है, वहां के किसानों को लावारिस पशुओं ने बहुत से किसानों को खेती व्यवसाय छोड़ने के लिए विवश कर दिया है। यही हाल बल्ह घाटी के साथ के उपजाऊ क्षेत्र गिरिनाल, आरनकोठी, जदरौन, चाह का डोहरा, कांगू, बाल्ट, जडोल, लुहणू तग वाइला क्षेत्रों का है। इन क्षेत्रों के किसानों से रू-ब-रू होकर जब वास्तविकता का पता लगाया गया, तो हकीकत हैरान करने वाली थी। अधिकतर परिवारों का व्यवसाय कृषि है, जो कई पीढि़यों से चला हुआ है, लेकिन बहुत से किसान अपनी भूमि को खाली छोड़ने को विवश हैं। इसका एक नुकसान यह हुआ कि कृषि आधारित रोजगार आज पतन की ओर है। युवाओं ने तो करीब-करीब अपना रुख कृषि से हटा ही लिया है। मुझे इन क्षेत्रों में एक भी युवा कृषि करता हुआ नहीं मिला। क्या हमारे सियासतदानों के लिए यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। विकास की रट लगाए रखने वाले नेताओं को समझना होगा कि यदि लावारिस पशुओं की समस्या यूं ही भयानक होती रही, तो विकास के लक्ष्य हमसे दूर होते जाएंगे। भारत के अन्य राज्यों में युवा आधुनिक कृषि व्यवस्था को अपनाकर स्वरोजगार के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, जबकि प्रदेश के युवा कृषि को हाय-तौबा कहकर निजी कंपनियों में महज चंद हजार रुपए तक कि न्यूनतम वेतन पर नौकरी करने को विवश हो रहे हैं।

इसके वास्तविक कारणों की समीक्षा की जाए, तो प्रमुख कारण है लावारिस पशुओं का बढ़ता आतंक। हैरानी यह कि समितियों के गठन या गोवंश संवर्द्धन बोर्ड की बैठकें तो होती हैं, लेकिन राहत की कहीं कोई आस फिलहाल नहीं दिखती। इसके अलावा मौसम में लगातार आ रहा बदलाव, कृषि विभाग का भाई-भतीजावाद व लचीलापन कृषि व्यवस्था को नष्ट कर रहा है। लोग पशुओं को बेझिझक सड़कों के किनारे छोड़ देते हैं। इस संदर्भ में कोई सख्त कानून व जुर्माने का प्रावधान भी नहीं है। बेशक मुख्यमंत्री पशुओं को लावारिस छोड़ने वालों को पकड़ने या उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन समाज के मन में पैदा हो चुका खोट कब खत्म होगा? कब तक लोग किसी काम के न रहे गोवंश को गोशाला से बाहर का रास्ता दिखाते रहेंगे? पिछले बजट में प्रदेश सरकार ने पशुओं को लावारिस छोड़ने पर जुर्माना राशि को 300 रुपए से बढ़ाकर 500 रुपए कर दिया था, लेकिन यह नाममात्र का जुर्माना लावारिस पशुओं की बढ़ती संख्या को रोकने में सफल नहीं हो पाया है। इस संदर्भ में सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे तथा जुर्माना राशि में इजाफा करके दोषियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान भी करना होगा। समय रहते ही उचित व कठोर कदम प्रदेश के अन्नदाता की फसल को संरक्षण दे सकते हैं। गत वर्ष माननीय उच्च न्यायालय शिमला द्वारा प्रदेश सरकार को लावारिस पशुओं के लिए गोशाला के निर्माण के आदेश दिए थे। इन आदेशों का कड़ाई से पालन होना चाहिए। अतिशीघ्र लावारिस पशुओं से किसानों की फसल व सड़क दुर्घटनाओं पर लगाम कसना जरूरी हो गया है।

ई-मेल: ksthakur25@gmail.com


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