करियर की फांस में हिमाचली बच्चे
रुचि जाने बिना हिमाचली अपने बच्चों को जबरन डाक्टर-इंजीनियर बनाने पर उतारू हैं। आर्ट्स-कॉमर्स से बच्चों को दूर रखकर जहां हजारों पेरेंट्स उन्हें मानसिक रूप से कमजोर कर रहे हैं, वहीं उनके सुनहरे करियर में भी रोड़ा बन रहे हैं। इसी गंभीर मसले पर हिमाचल को भेड़चाल से आगाह करता इस बार का दखल…
दसवीं कक्षा के बाद अकसर अभिभावक बच्चों को मेडिकल, नॉन मेडिकल में एडमिशन दिलाना चाहते हैं। तीसरे विकल्प के तौर पर बच्चों के सामने कॉमर्स का विकल्प दिया जाता है। आर्ट्स केवल उन्हीं बच्चों के अभिभावक पढ़ाना चाहते हैं, जिनके बच्चे या तो 55 फीसदी की शर्त पूरी नहीं कर पाते या जिनके अभिभावक मेडिकल की पढ़ाई का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं। इसके अलावा हिंदी स्कूलों के छात्रों द्वारा मेडिकल या नॉन मेडिकल में आगे न बढ़ पाने की बड़ी वजह सरकारी स्कूलों में हिंदी मीडियम भी रहता है। कुछेक छात्र-छात्राओं के अलावा अधिकतर बच्चे गणित, विज्ञान और अंग्रेजी में कमजोर होते हैं। अन्य विषयों में अच्छे नंबर लेकर वह 55 फीसदी की शर्त पूरी कर लेते हैं, लेकिन अंग्रेजी में बेहतर पकड़ न होने के कारण वे मेडिकल या नॉन मेडिकल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते, जबकि अभिभावक हमेशा बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बनाए रखते है।मेडिकल या नॉन मेडिकल पढ़ने के लिए अभिभावक द्वारा दबाव का बड़ा कारण चिकित्सा के क्षेत्र व अन्य सरकारी विभागों में नौकरी की उम्मीद है। निजी क्षेत्र में जो भी संस्थान हैं, उनमें वेतन कम है। इसके अलावा अन्य लाभ भी निजी संस्थानों द्वारा नहीं दिए जाते। मेडिकल, नॉन मेडिकल और कॉमर्स पढ़ने वालों के लिए सरकारी नौकरियों, साक्षात्कारों में प्राथमिकता की धारणा अभिभावकों में हमेशा बनी रहती है। ऐसा नहीं है कि आर्ट्स पढ़ने वालों केलिए यहां संभावनाएं कम हैं। प्रदेश में हिंदी का ज्यादा प्रचलन है। हाल ही में प्रशासनिक सेवाओं में अभ्यर्थियों कोहिंदी में साक्षात्कार का विकल्प भी दिया गया। इसके चलते इन सेवाओं में हिंदी मीडियम वाले छात्रों के लिए आकर्षण भी बढ़ा है।
और भी कई विकल्प
अध्यापक, लिपिक, पर्यटन, होटल प्रबंधन, लॉ, पत्रकारिता, ब्यूटीशियन समेत कई अन्य विकल्प हैं, जिनमें छात्र अपने भविष्य को बेहतर दिशा दे सकते हैं। इनमें वेतन के तौर पर 10 से 80 हजार तक की आय अभ्यर्थी को उसकी क्षमता के आधार पर मिल सकती है।
दबाव न डालें, बच्चों को खुद चुनने दें फील्ड
भारती विद्यापीठ पब्लिक सीनियरी सेकेंडरी स्कूल बैजनाथ की दसवीं की छात्रा मुस्कान सहगल ने मार्च 2016 की परीक्षा में मैरिट में चौथा स्थान प्राप्त किया। मुस्कान सहगल के पिता चेतन सहगल ने बताया कि उनकी बेटी, जिस भी कार्य क्षेत्र में अपनी इच्छा से आगे बढ़ना चाहती थी, उसके लिए पूरा तरह से सहयोग किया है। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने मैट्रिक में टॉप करने के बाद जमा एक में मेडिकल विषय को चुना है। उन्होंने बताया कि मुस्कान डाक्टर बनना चाहती है, जिसके चलते उन्होंने उसी विषय को चुनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि बच्चों की दिलचस्पी के अनुसार ही बच्चों को आगे बढ़ने का मौका प्रदान करना चाहिए, इसके चलते ही उन्होंने विषय को चुनने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया। चेतन सहगल ने बताया कि बच्चे के सूझबूझ के साथ उठाए गए कदम में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। भविष्य के बारे में निर्णय लेते समय हालांकि परेशानी थी, लेकिन मुस्कान का लक्ष्य पहले से ही निर्धारित होने से कोई अधिक मुश्किल नहीं हुई। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी अपनी पसंद के विषय में अध्ययन कर रही हैं, ऐसे में भविष्य का उज्ज्वल होना स्वभाविक ही है।
मेडिकल छोड़ आर्ट्स को अपनाया
डीएवी सुंदरनगर स्कूल से मेडिकल की छात्रा रही अनुभा गुप्ता पुत्री सुतेंद्र गुप्ता नार्थ जोन में सीबीएससी से मेडिकल की टॉपर रही। बाबजूद इसके मेडिकल व इंजनिरिंग फील्ड में जाने की बजाय आर्ट्स स्ट्रीम में हाल ही में स्नातक की टॉप ग्रेड में उपाधि ग्रहण की। आईएएस की परीक्षा में पांच अंकों से चूक गई, लेकिन आर्ट्स विषय आसान होने के चलते इस स्ट्रीम को चुना। माता उर्मिल गुप्ता का कहना है की मेडिकल साइंस का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही जमा दो तक शिक्षा ग्रहण की, जिसके आगे आर्ट्स विषय में पढ़ाई करने में सहजता प्राप्त की।
निजी स्कूल दे रहे टक्कर
प्रदेश में निजी स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही है। सरकारी स्कूलों को निजी स्कूल लगातार टक्कर दे रहे हैं। यूएसआईडी रिपोर्ट 2015-16 के मुताबिक प्रदेश में 2652 निजी स्कूल हैं, जो सरकार की ग्रांट इन एड के बिना चल रहे हैं। इनमें केवल प्राथमिक स्तर के 610, प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्तर के 793, प्राइमरी, अपर प्राइमरी, सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी 541 व केवल अपर प्राइमरी स्तर के एक, अपर प्राइमरी, सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी स्तर के 11, प्राइमरी, अपर प्राइमरी व सेकेंडरी स्तर के 677, अपर प्राइमरी व सेकेंडरी स्तर के चार, केवल सेकेंडरी स्तर के दो, केवल हायर सेकेंडरी स्तर के चार व अन्य श्रेणी के नौ स्कूल हैं। निजी स्कूल में जो भी हायर सेकेंडरी स्तर के स्कूल हैं, उनमें 90 फीसदी में आर्ट्स, कॉमर्स, मेडिकल व नॉन मेडिकल स्ट्रीम उपलब्ध है।
15 हजार से ज्यादा स्कूल
शिक्षा विभाग के अधीन 15327 स्कूल हैं। इनमें केवल प्राइमरी स्तर के 10710, केवल अपर प्राइमरी स्तर 2130, अपर प्राइमरी, सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी के 1608, अपर प्राइमरी व सेकेंडरी स्तर के 879 स्कूल हैं।
973 स्कूलों में वोकेशनल कोर्स
प्रदेश में पहले केवल 500 स्कूलों में वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जा रहे थे, लेकिन अगस्त 2016 से प्रदेश के 473 और नए स्कूलों में वोकेशनल एजुकेशन शुरू की गई। अब कुल 973 स्कूलों में वोकेशनल विषय पढ़ाए जा रहे हैं। हर कोर्स में 20 से 25 छात्रों की संख्या निर्धारित है। हालांकि कुछ कालेजों में भी वोकेशनल कोर्स शुरू किए गए थे, लेकिन उनमें छात्रों ने रुचि नहीं दिखाई। स्कूलों में नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क के तहत राज्य के वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में नौवीं से 12वीं कक्षा तक के छात्रों को ये कोर्स करवाए जा रहे हैं। इसमें छात्रों को एग्रीकल्चर, टूरिज्म, रिटेल, सिक्योरिटी, हैल्थ केयर, टेलीकाम, आईटीईएस. के साथ इस बार मीडिया एंड एंटरटेनमेंट और बीएफएसआई टे्रड शामिल हैं। टे्रड के तहत प्रशिक्षण देने के लिए कंपनी के माध्यम से इन ट्रेनर की नियुक्ति की जाती है। प्रदेश में 19 कंपनियों के माध्यम से 710 ट्रेनरों को कुछ समय पहले तैनाती दी गई, जबकि 1200 ट्रेनर पहले से कार्यरत हैं।
शिक्षकों की भी कमी
हिमाचल प्रदेश में सुमन रावत, समरेश जंग, दीपक ठाकुर, सीता गोसाईं, पद्मश्री प्राप्त विजय सरीखे खिलाड़ी सरकारी स्कूलों की ही पैदावार हैं। प्रदेश के अनेकों प्राथमिक विद्यालयों में एक या दो अध्यापक ही नियुक्त हैं, जो कि वर्ष भर शैक्षिक एवं अन्य गैर शैक्षिक कायक्रमों में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में वे पाठ्यक्रम के अलावा खेल गतिविधियों की ओर ध्यान नहीं दे पाते। प्रदेश में कई माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों में भी शारीरिक शिक्षकों के पद खाली हैं, जिस कारण बच्चे प्राथमिक विद्यालय स्तर की भांति ही माध्यमिक स्तर पर भी शारीरिक शिक्षा से वंचित हैं।
802 स्कूल, सभी में पढ़ाया जा रहा आर्ट्स
प्रदेश के 802 स्कूलों में केवल आर्ट्स, 144 में आर्ट्स व साइंस, 190 स्कूलों में आर्ट्स व कॉमर्स तथा 578 स्कूलों में तीनों स्ट्रीम आर्ट्स, कॉमर्स व साइंस स्ट्रीम उपलब्ध हैं। इस तरह आर्ट्स सभी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है, जबकि साइंस 722 और कॉमर्स 768 सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में उपलब्ध है।
किस स्ट्रीम में, कितने छात्र
सर्व शिक्षा अभियान के तहत विभिन्न स्कूलों में कुल 226597 छात्र-छात्राएं हैं। इनमें शिक्षा विभाग के अधीन आने वाले स्कूलों में182815 छात्र-छात्राएं हैं। इनमें 93681 छात्र और 89134 छात्राएं हैं। साइंस में 20952 व कॉमर्स में 13939 छात्र हैं। इसी तरह 12वीं में आर्ट्स में 55277, साइंस में 20274 और कॉमर्स में 13263 छात्र-छात्राएं हैं।
बिना वाद्य यंत्रों के बिगड़े सुर
हिमाचल के स्कूलों में म्यूजिक की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए खास प्रयास होते नहीं दिख रहे। अभी 11वीं और 12वीं में संगीत विषय पढ़ाने का प्रावधान है, लेकिन कई स्कूलों में हालात ये हैं कि म्यूजिक के अध्यापक ही नहीं हैं, तो कई सरकारी स्कूलों में म्यूजिक सिखाने को विभिन्न वाद्य यंत्रों का अभाव है। कई स्कूलों के बच्चे केवल थ्योरी पढ़कर ही गुजारा कर रहे हैं। वाद्य यंत्रों के अभाव में म्यूजिक विषय के प्रैक्टिकल करने से बच्चे महरूम रह जाते हैं। प्रदेश के अधिकांश स्कूलों में हर साल संगीत से संबंधित प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। ऐसे में जज की भूमिका दूसरे विषय के शिक्षक निभाते हैं, जिन्हें म्यूजिक का बिलकुल भी ज्ञान नहीं होता। प्रदेश के निजी स्कूलों के हजारों छात्र-छात्राएं भी म्यूजिक का अध्ययन करने से महरूम हैं।
खेल के लिए सुविधाएं कम
फुटबाल को लेकर भी शिक्षा विभाग की ओर से विशेष निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी खिलाडि़यों को काफी खलती है। बैडमिंटन, बॉक्सिंग, टेनिस, मार्शल आर्ट जैसे इनडोर खेलों के लिए स्कूलों में अभी भी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। आउटडोर खेलों के लिए मैदानों की आवयश्यकता होती है और प्रदेश में इस मामले में सेकेंडरी स्कूलों की स्थिति बेहतर कही जा सकती है।
कहां, कितने खेल के मैदान
बिलासपुर 96
चंबा 117
हमीरपुर 93
कांगड़ा 290
किन्नौर 31
कुल्लू 75
लाहुल-स्पीति 16
मंडी 255
शिमला 231
सिरमौर 124
सोलन 88
ऊना 116
कंसल्टेंसी की व्यवस्था नहीं
दसवीं के बाद छात्रों को करियर कंसल्टेंसी की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है, लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से समय-समय पर निजी संस्थाओं के माध्यम से कोचिंग की व्यवस्था छात्रों के लिए की जाती है। आरक्षित वर्ग के छात्रों को इनमें प्राथमिकता दी जाती है। शारीरिक शिक्षा को स्कूलों में अनिवार्य विषय के रूप में न शामिल कर ऐच्छिक विषय के रूप में स्कूली पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है।
प्रदेश में 11वीं कक्षा के आंकड़े
आर्ट्स साइंस कॉमर्स
जिला लड़के लड़कियां कुल लड़के लड़कियां कुल लड़के लड़कियां कुल
बिलासपुर 1418 1529 2947 649 696 1345 602 307 909
चंबा 3235 3035 6270 611 462 1073 301 170 471
हमीरपुर 1336 1377 2713 1235 1055 2290 834 539 1373
कांगड़ा 5985 6063 12048 2984 2265 5249 2180 1479 3659
किन्नौर 232 271 503 57 76 133 53 48 101
कुल्लू 2282 2344 4626 450 425 875 370 284 654
लाहुल-स्पीति67 93 160 34 49 83 10 11 21
मंडी 4278 4419 8697 1933 1828 3761 954 699 1653
शिमला 3331 3537 6868 1029 899 1928 924 749 1673
सिरमौर 2564 2928 5492 541 445 986 345 251 596
सोलन 2340 2228 4568 716 620 1336 812 686 1498
ऊना 2114 1895 4009 976 917 1893 828 503 1331
कुल 29182 29719 58901 11215 9737 20952 8213 5726 13939
12 वीं कक्षा के विधार्थियों की संख्या
आर्ट्स साइंस कॉमर्स
जिला लड़के लड़कियां कुल लड़के लड़कियां कुल लड़के लड़कियां कुल
बिलासपुर 1263 1556 2819 675 699 1374 639 310 949
चंबा 2928 2819 5747 667 458 1125 256 130 386
हमीरपुर 1193 1430 2623 1114 1024 2138 819 569 1388
कांगड़ा 5503 6273 11776 3236 2242 5478 2222 1571 3793
किन्नौर 230 251 481 57 57 114 50 36 86
कुल्लू 1745 1808 3553 379 359 738 264 192 456
लाहुल स्पीति77 78 155 22 38 60 12 11 23
मंडी 4306 4921 9227 1953 1660 3613 1006 643 1649
शिमला 3207 3549 6756 968 844 1812 738 676 1414
सिरमौर 2058 2484 4542 523 400 923 329 238 567
सोलन 1609 2107 3716 709 538 1247 688 592 1280
ऊना 1876 2006 3882 852 800 1652 816 456 1272
कुल 25995 29282 55277 11155 9119 20274 7839 5424 13263
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