कृषि हेल्पलाइन

By: Feb 21st, 2017 12:05 am

ठंड में न दें पौधों को ज्यादा पानी

सब्जियों के सफलतापूर्वक उत्पादन के लिए बीज और पौध का बीमारी तथा कीट रहित होना अनिवार्य है। अधिकांश सब्जियों की आमतौर पर सीधी बुआई की जाती है, परंतु कुछ सब्जियां जैसे कि टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, मिर्च, फूलगोभी, बंदगोभी, प्याज के लिए सर्वप्रथम पौधशाला तैयारी की जाती है। तत्पश्चात उन्हें खेत में प्रत्यारोपित किया जाता है। पौध तैयार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पौध बीमारी व कीट रहित हो, क्योंकि यह बीमारी व कीट को खेत में पहुंचाने का मुख्य स्रोत है। पौधशाला में सर्वाधिक लगने वाली बीमारी डैंपिंग ऑफ है, जिससे 20 से 70 प्रतिशत पौध पौधशाला में ही मर जाती है।

पौधशाला में पौध तैयार करने के लाभः-

1 पौधशाला में नई उगी कोमल पौध की देखरेख करना आसान होता है।

2 पौधशाला में पौध को कुछ समय तक प्रतिकूल परिस्थिति से बचाया जा सकता है।

3 इससे अगेती बुआई करने में सुविधा रहती है।

4 बीज व भूमि दोनों की बचत होती है।

5 धीमी गति से उगने वाले पौधों की उचित देखभाल हो जाती है।

6 पौधशाला में अनुकूल वातावरण बनाना संभव है।

7 प्रतिरोपण के बाद मुख्य खेत में रोगों व कीटों की रोकथाम करना सरल है।

पौधशाला निर्माण की विधिः- सब्जियों की पौध बक्सों, मिट्टी के पात्रों तथा गमलों   या छोटी क्यारियों में उगाई जा सकती है। पौधशाला की मिट्टी हल्की भुरभुरी व रोगरहित होनी चाहिए। बीज बुआई से लगभग दस दिन पूर्व दो क्विंटल प्रति 40 वर्गमीटर की दर से अच्छी तरह कंपोस्ट खाद डालकर जुताई करनी चाहिए, उसके बाद एक से 1.25 मीटर चौड़ी व 15 सेमी. ऊंची क्यारियां तैयार कर सिंचाई करनी चाहिए। पौधशाला तैयार करने वाले स्थान पर पर्याप्त मात्र में सूर्य का प्रकाश, सिंचाई के लिए पानी एवं जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। पौधशाला के लिए पूर्व पश्चिम दिशा का चुनाव उचित है।

बीज की दरः- सामान्यतः क्यारियों में बीज बिखेरकर बुआई की जाती है। बीजों को एक से दो सेटीमीटर गहरा व कतारों में बोना चाहिए। ज्यादा गहराई में बुआई करने से बीज उचित प्रकार से अंकुरित नहीं हो पाते हैं। बीज बोने के बाद क्यारियों की अच्छी तरह से तैयार कंपोस्ट खाद की पतली तह से ढक लेना चाहिए व तुरंत हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

बुआई का समयः- शरद ऋतु में या ठंडी जगहों में पौधशाला की क्यारियों को बीज अंकुरण तक प्लास्टिक से ढकना चाहिए। गर्मियों में हल्की सिंचाई दो बार (सुबह शाम) व शरद ऋतु में एक बार करनी चाहिए। यदि बीज बहुत छोटा है तो बीज में बालू मिला लेनी चाहिए।

बुआई के बाद पौध प्रबंधनः- बीज के अंकुरित होने के पश्चात ठंड के मौसम में एक बार सिंचाई करनी चाहिए, ताकि पौध को पाले से बचाया जा सके। अंकुरण के लगभग एक सप्ताह बाद कैप्टान या थीरम (0.4 प्रतिशत) से तर कर देना चाहिए। 7 से 10 दिन के बाद इस प्रक्रिया की फिर से दोहराना चाहिए। क्यारियों में पौध की मात्रा अधिक होने पर छंटाई कर देनी चाहिए, ताकि प्रत्येक पौध की वृद्धि उचित प्रकार से हो सके। पौधशाला में पानी देने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा निर्माण पानी के समीप होना चाहिए। यदि आरंभिक अवस्था में धूप में बहुत तेजी हो तो दिन में पौध को हल्की पत्तियों से या फूल से ढक कर बचाना चाहिए।


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