खशों से ही अपनाई पांडवों ने बहुपति प्रथा

By: Feb 8th, 2017 12:15 am

ऐसा माना जा सकता है कि संभवतः पांडवों ने भी बहुपति प्रथा खशों से ही ली हो। अब यह प्रथा लगभग बंद हो गई है। द्रोपदी द्वारा पांच पांडवों को पति रूप में स्वीकारना इतिहास की एक दुर्घटना मानी जा सकती है…             

प्रागैतिहासिक हिमाचल

इस जाति का दर्जा राजपूतों से कुछ कम समझा जाता था। नेपाल की भाषा पर्वती तथा उसकी पश्चिम की भाषा खश कहलाती है। क्रोक के अनुसार खश लोग आर्य जाति के हैं और बाद में आए आर्यों ने आकर उनको पहाड़ों में धकेल दिया। उपर्युक्त विवरण इस तथ्य को स्वीकार करता है कि खश जाति एक सजीव तथा शक्तिशाली जाति थी। महाभारत काल में वे बहुत सभ्य समझे जाते थे। यह पता नहीं कि वे लोग किस प्रकार अपने राज्य को खो बैठे। खशों के पूर्वज स्वतंत्र धर्म का पालन करने वाले थे। इनमें जात-पात का कोई भेदभाव नहीं था। सामाजिक संगठन धर्म तंत्र के आधार  पर था, जो लोकतंत्रीय भावनाओं से भी प्रभावित था और जो पंचायत के प्रकार की स्वशासन की प्रणाली थी, परंतु कुलदेवता कुल का बंधन माना जाता था। कुल का वृद्ध पुरुष कुल देवता का प्रतिनिधि माना जाता था, और वही सारे कुल का मुखिया भी होता था। शायद वह पंचायत का भी सरपंच होता होगा। कालांतर में इन्हीं मुखियाओं में से कई शक्तिशाली पुरुष निकल आए, जिन्होंने छोटे-छोटे राज्य संघ बनाए। इन्हें ‘मावी’ या ‘मावणा’ कहते थे। बहुत समय बीतने पर इन्हीं मावी या मावणों ने हिमाचल के विभिन्न भागों में बड़े राज्यों की नींव रखी थी। खश जाति, भाग्य के अनेक उतार-चढ़ाव के बाद इन भागों में आकर बस गई और जगह-जगह अपनी बस्तियां स्थापित कर दीं। दूसरे आक्रमणकारियों की भांति इनके पास भी शुरू में बहुत थोड़ी स्त्रियां थीं और कुछ समय जब तक वे समूह के पुरुष सदस्यों की वैवाहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त स्त्रियां नहीं पैदा कर सके, उन्होंने शायद स्थानीय स्त्रियों को अपनाया जो कोल, किन्नर, किरात और नाग नस्ल की थीं, लेकिन उनके पड़ोसियों में स्त्री-पुरुष की संख्या का अनुपात ऐसा था कि बड़े पैमाने पर रक्त मिश्रण होना संभव नहीं हुआ। इस क्षेत्र की कोल, किन्नर, किरात आदि जातियों में खश लोगों के यहां आने से पहले स्त्रियों के अनेक पति होने की प्रथा प्रचलित थी। संभवतः खशों ने भी स्त्रियों के विवाह की यह बहुपति प्रथा अपने पड़ोसियों से ली हो। ऐसा भी अनुमान लगाया जाता है कि उस समय खश पुरुषों की संख्या अधिक होने तथा स्त्रियों की संख्या कम होने के कारण बहुपति प्रथा का जन्म हुआ। इस प्रथा के विरुद्ध कोई आपत्ति न उठाई जा सके, इस दृष्टि से उसके संबंध में कुछ दंतकथाएं जोड़ दी हैं। ऐसा माना जा सकता है कि संभवतः पांडवों ने भी बहुपति प्रथा खशों से ही ली हो। अब यह प्रथा लगभग बंद हो गई है। द्रोपदी द्वारा पांच पांडवों को पति रूप में स्वीकारना इतिहास की एक दुर्घटना मानी जा सकती है।


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