खश जाति को नष्ट करना चाहता था राजा सगर

By: Feb 1st, 2017 12:05 am

कल्कि पुराण में भी खश जाति का वर्णन मिलता है। वायु  पुराण में कहा गया है कि खश एक जाति थी, जिसे राजा सगर नष्ट करना चाहते थे, पर वशिष्ठ की कृपा से वह बच गई। विष्णु पुराण में भी खशों का वर्णन आया है…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

खशों का वर्णन मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। मनु ने खशों को क्षत्रिय से शूद्र होने का धार्मिक आदेश दिया है। महाभारत में भी इस जाति का बार-बार उल्लेख आता है। सभा पर्व में खशों और कुलिंदों के बारे में लिखा है कि मेरु और मंदर (दोनों पर्वत) के बीच शेलोदा नदी के किनारे कीचक नामक बांसों की रम्य छाया में खश, एकासन, अर्ह, प्रदर, दीर्घवेणु, पारद, कुलिंद, तंगण, परतंगण लोग बसते हैं। वे राजा युधिष्ठिर के यज्ञ में पिपीलिकाओं (चीटियों) द्वारा निकाले पिपीलक नामक सुवर्ण को द्रोण-द्रोण भर और काले तथा लाल रंग के चंवर और शुक्ल आदि मणि, जिनका प्रकाश चंद्रमा के समान था और हिमालय पहाड़ के पुष्पों का मधु, उत्तर की ओर की बड़ी बलवर्द्धक औषधियां लेकर शत्रुहीन राजा युधिष्ठिर के द्वार को घेरे थे। द्रोण पर्व में खश जाति का दुर्योधन की ओर से लड़ने संबंधी संकेत भी मिलता है। कुलिंद खशों की एक श्रेणी थी। वन पर्व के अनुसार जब पांडव हिमालय की ओर जाने लगे तो उन्हें कुलिंदराज सुबाहू का विशाल राज्य दिखाई दिया, जहां हाथी, घोड़े बहुतायत में थे और सैकड़ों किरात, तंगम एवं कुलिंद आदि वन जातियों के लोग निवास करते थे। वे देवताओं से सेवित देश हिमालय के समीप थे। वहां अनेक प्रकार की आश्चर्यजनक वस्तुएं दिखाई देती थी। सुबाहु का राज्य देखकर उन सबको बड़ी प्रसन्नता हुई। कुलिंदों के राजा सुबाहु को जब पता लगा कि उसके राज्य के पांडव आए हैं, तब वह अपने राज्य की सीमा पर जाकर उन्हें बड़े आदर सत्कार के साथ अपनी राजधानी में ले गया। महाभारत में भी खशों द्वारा मध्य देश विजय का वर्णन भी मिलता है। खश जाति का उल्लेख पुराणों में भी आता है। कल्कि पुराण में भी इस जाति का वर्णन मिलता है। वायु  पुराण में कहा गया है कि खश एक जाति थी, जिसे राजा सगर नष्ट करना चाहते थे, पर वशिष्ठ की कृपा से वह बच गई। विष्णु पुराण में भी खशों का वर्णन आया है। रोम के इतिहासकार प्लिनी (79 ई.) के खशों के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि सिंधु और यमुना के बीच जंगलों में निवास करने वाली पहाड़ी जातियां खश और क्षत्रिय (खत्री) हैं। प्लिनी के अनुसार उस समय खश लोग कुमाऊं से पश्चिम की ओर रहते थे और ‘तौंस’ तथा ‘शारदा’ (काली) नदियों के बीच की भूमि गढ़वाल व कुमाऊं में तंगण और किरात रहते थे। टोलमी (81-165 ई.) ने लिखा है कि नदी सिंधु के उद्गम के पास कैस्पैराई, रावी और चिनाब के उद्गमों के पास रहते हैं। फ्रांसिस हैमिल्टन ने भी खश देश के उद्गमों के बारे में अपने विचार प्रकट किए।

 


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