गुंडागर्दी का सदन!

By: Feb 20th, 2017 12:01 am

बेशक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी 122 वोट हासिल कर विश्वास मत जीतने में कामयाब रहे, बेशक उनकी ‘कुर्सी’ फिलहाल सलामत रहेगी, बेशक पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम के पक्ष में मात्र 11 वोट ही पड़े, लेकिन विधानसभा के भीतर जो हंगामा हुआ, उसे स्पष्ट शब्दों में गुंडागर्दी, जंगलीपन, कमीजफाड़ और कुर्सीतोड़ राजनीति ही कहेंगे। यह लोकतंत्र पर एक और कलंकित धब्बा है। सदन के भीतर ही स्पीकर की कमीज फाड़ दी गई, उनसे धक्का-मुक्की की गई, स्पीकर के आसन पर द्रमुक के दो विधायक बैठ गए। कुर्सियां फेंकी गईं, मेजें तोड़ी गईं,माइक उखाड़ दिए गए। इस परिदृश्य पर देश के पूर्व एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की इतनी प्रतिक्रिया ही पर्याप्त है-हंगामाखेज विधायकों को सदन की सदस्यता से ही बर्खास्त कर देना चाहिए। तमिलनाडु की विधानसभा में जो हंगामा किया गया, वह अक्षम्य है। और यह सब कुछ द्रमुक विधायकों ने किया। आखिर उनकी भूमिका क्या थी? उन्होंने हुड़दंग क्यों मचाया? क्या उनका मुख्यमंत्री तय होना था? यदि द्रमुक के 88 विधायक पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम को समर्थन देते, तो भी उनकी संख्या 100 का आंकड़ा नहीं छू सकती थी। यह अन्नाद्रमुक के भीतर का राजनीतिक टकराव था कि मुख्यमंत्री पद के दो-दो दावेदार सामने आए। लेकिन द्रमुक के विधायक गुप्त मतदान पर ही क्यों अड़े थे? वह मांग तो पन्नीरसेल्वम ने की थी और स्पीकर उसे खारिज कर चुके थे। सदन के भीतर यह स्पीकर का विशेषाधिकार है कि वह कार्यवाही कैसे चलाएं। जब स्पीकर ने मांग खारिज कर दी, तो द्रमुक विधायक ‘गुंडई’ पर क्यों उतर आए? क्या उन्हें गुंडागर्दी के लिए ही जनता ने चुनकर विधानसभा में भेजा है? कमोबेश नहीं…लिहाजा ये हरकतें लोकतंत्र को लीर-लीर कर गईं। उन लम्हों को भी ताजा कर गईं,जब उप्र, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र की विधानसभाओं में भी हमें ऐसी ही गुंडागर्दी देखनी पड़ी थी। कुछ प्रयोग संसद में भी दिखे थे। लेकिन तमिलनाडु की ‘गुंडई’ पराकाष्ठा है। स्पीकर को सदन में पुलिस तक बुलानी पड़ी। रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिस के करीब 2000 जवानों को सदन के बाहर भी तैनात करना पड़ा। द्रमुक के गुंडे विधायक कोई तार्किक कारण तो बताएं। वैसे आम अवधारणा यह है कि जब सदन में पूरी तरह व्यवस्था हो, अमन-चैन हो, उसी स्थिति में विश्वास मत जैसा प्रस्ताव पेश किया और उस पर मत विभाजन किया जाना चाहिए। उस अवधारणा के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने जो विश्वास मत हासिल किया है, क्या वह असंवैधानिक माना जाएगा? द्रमुक विधायकों ने राज्यपाल विद्यासागर राव को अपनी शिकायत दे दी है। करीब 29 साल पहले भी ऐसी अराजकता तमिलनाडु विधानसभा में ही देखने को मिली थी। तब अन्नाद्रमुक प्रमुख एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ था। पार्टी के 95 विधायक उनकी पत्नी जानकी के साथ और 35 विधायक जयललिता के साथ थे। 7 जनवरी,1988 को संख्या के आधार पर राज्यपाल ने जानकी को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी, लेकिन विश्वास मत के दौरान जबरदस्त हंगामा हुआ। तब पुलिस को सदन में ही लाठीचार्ज करना पड़ा था। जिस तरह अब पलानीसामी जीत गए, उसी तरह जानकी को ‘विजेता’ घोषित कर दिया गया। राज्यपाल ने अपनी रपट राजीव गांधी सरकार को भेजी और 23 दिन बाद ही जानकी सरकार बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन चस्पां कर दिया गया। अब भी यह हो सकता है, क्योंकि सदन बंद था और अन्नाद्रमुक के ही विधायक मौजूद थे। इसे संपूर्ण विश्वास मत नहीं कहा जा सकता। द्रमुक और पन्नीरसेल्वम सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर भी जा सकते हैं और मत परीक्षण की वैधता को चुनौती दे सकते हैं। अन्नाद्रमुक के भीतर से ही ऐसी आवाजें सुनने को मिली हैं कि कुछ अंतराल के बाद पलानीसामी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर पार्टी के कथित उप महासचिव दिनाकरन को मुख्यमंत्री बनाने की शशिकला की योजना है, लेकिन अन्नाद्रमुक के नेतृत्व को लेकर एक केस चुनाव आयोग के सामने भी विचाराधीन है। अन्नाद्रमुक और उसकी सरकार में सब कुछ अस्थिर और अस्थायी लगता है, तो तमिलनाडु और उसकी जनता का क्या हाल होगा???


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