ग्रामोद्योग को रोजगार दे बजट

By: Feb 22nd, 2017 12:05 am

( रविंद्र सिंह भड़वाल लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं )

सरकार को अब यह समझना चाहिए कि  केवल बड़ी मशीनें स्थापित करना ही औद्योगिकीकरण नहीं है। लघु एवं मध्यम ग्रामोद्योग भी औद्योगिकीकरण  का हिस्सा हैं। इन्हें  बजट में उचित स्थान मिलना ही चाहिए, क्योंकि इनके जरिए उत्पादन और रोजगार दोनों हित सधते हैं…

 रविंद्र सिंह भड़वालकिसी भी क्षेत्र के आर्थिक-सामाजिक विकास में प्राकृतिक व मानव संसाधन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिमाचल प्रदेश इन दोनों ही संसाधनों के लिहाज से संपन्न है। प्रकृति से जहां हिमाचल को पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन मिले, वहीं कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश को श्रमदान देने को तैयार बैठा है। प्रदेश की एक और बड़ी खासियत यह है कि आज भी करीब 90 फीसदी आबादी गांवों में बसती है। गांवों की इस आबादी को यदि उपलब्ध संसाधनों के कुशलतम उपयोग में यदि हिमाचल सफल होता है, तो निश्चित तौर पर इससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था को भी संबल मिलेगा। प्रदेश के इन संसाधनों का समुचित उपयोग आर्थिक-सामाजिक विकास को एक मजबूत आधार प्रदान कर सकता है, बशर्ते हमारा शासन-प्रशासन ग्रामोद्योगों के विकास की स्पष्ट नीति व नीयत विकसित कर पाएं।

ग्रामोद्योगों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके लिए किसी भारी भरकम निवेश की जरूरत नहीं होगी। हर गांव में यदि दस-बीस लोग मिलकर किसी ग्रामीण उद्योग में पैसा लगाएं और उन्हें इसके लिए सरकार की तरफ से कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती है, तो यह उद्योग चल निकलेगा। इसके लिए ज्यादा पूंजीगत व्यय की भी जरूरत नहीं होगी। वहीं हर गांव में इसके जरिए बड़ी संख्या में बेरोजगारों के लिए रोजगार के द्वार खुल जाएंगे।

ग्रामोद्योगों का दूसरा लाभ यह कि इसमें हर वर्ग के लोगों से सेवाएं ली जा सकती हैं। पुरुष श्रमिकों के अलावा महिलाएं व बुजुर्ग भी इसमें रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि कार्यस्थल पर किसी तरह का कोई भारी खतरा नहीं होता। थोड़े से प्रशिक्षण के पश्चात महिलाएं और बुजुर्ग भी अन्य श्रमिकों की तरह काम करने की महारत हासिल कर लेंगे। वहीं बुजुर्ग अपने गहरे अनुभव के बूते प्रबंधन सरीखे कार्यों को बखूबी कर सकते हैं। इसके जरिए हम अपने मानव संसाधन का अधिकतम लाभ ले पाएंगे। हिमाचल सरीखे पहाड़ी व प्राकृतिक रूप से नाजुक राज्य में मैदानी इलाकों को छोड़कर शेष हिस्सों में बड़े उद्योग लगाना खतरे से खाली नहीं है। इस लिहाज से घरेलू व ग्रामोद्योगों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। महात्मा गांधी स्वयं ग्रामोद्योगों के जबरदस्त पैरोकार रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया था कि अपने संसाधनां का समुचित उपयोग करके न केवल स्वावलंबी बनें, बल्कि वे शहरों की जरूरतें पूरी करें। यदि ग्रामोद्योगों के विकास पर बल दिया जाए, तो कोई वजह नहीं बचती कि गांधी जी की इच्छा को मूर्त रूप दिया जा सके। इसके लिए सरकार-प्रशासन को सर्वसामान्य जनता के सहयोग से ग्रामोद्योगों की रूपरेखा तैयार करनी होगी।

इस संदर्भ में सर्वप्रथम प्रदेश सरकार को उन संभावनाओं की पड़ताल करनी होगी, जिन्हें ग्रामोद्योगों की परिकल्पना की जमीन पर उतारा जा सकता है। हिमाचल में सेब, आम, संतरा आदि फलों की अच्छी-खासी पैदावार होती है। इसके साथ एक पक्ष यह जुड़ा हुआ है कि इन फसलों के बागबानों को उचित दाम नहीं मिल पाते। इसकी वजह से कई बागबान तो फलों को मंडी तक ले जाना भी मुनासिब नहीं समझते। हम चाहें तो आम या सेब का मुरब्बा या चटनी बनाने में छोटे उद्योग गांवों में लगाकर इन फलों को सद्गति दे सकते हैं। उद्योगों में अचार उत्पादन का काम शुरू किया जा सकता है। ऐसा करके हम एक साथ तीन लक्ष्य साथ ले सकते हैं। बेकार जाने वाले फलों का सदुपयोग होगा, बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा व उत्पादन बढ़ने से अर्थव्यवस्था बढ़ेगी। दूसरी ओर कई हिमाचली गांव ऐसे भी हैं, जहां जरूरत से ज्यादा दूध उत्पादन होता है।

इसके अतिरिक्त दूध के साथ भी यही समस्या है कि इसे कहां खपाया जाए। इन गांवों में यदि दूध से बने उत्पादों के उत्पादन संबंधी उद्योग लगाए जाते हैं, तो इससे बाजार की मांग को तो पूरा किया ही जाएगा, दूध में मिलावटखोरी से भी कुछ राहत मिलेगी। इसके अलावा हमारे कई अन्य परंपरागत उद्योग भी हैं, जो हमारी अस्मिता से जुड़े हुए हैं। खड्डियां, चंबा रूमाल, गर्म ऊनी कपड़े, पहाड़ी टोपी व परिधान, ऊनी पट्टू आदि को भी ग्रामोद्योगों के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित किया जा सकता है। ढूंढने निकलें तो ग्रामीण परिवेश से जुड़े कितने ही काम-धंधे निकल आएंगे, जो प्रदेश को स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी इजाफा करने का माद्दा रखते हैं। मगर ये तमाम संभावनाएं तभी साकार हो सकती हैं, जब शासन-प्रशासन के साथ प्रदेश की जनता इस दिशा में बढ़ने को तैयार हो। महज एक ग्रामोद्योग को अपना कर हम रोजगार, नारी शक्तिकरण, आर्थिक विकास, संसाधनों का समुचित उपयोग सरीखे कई लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

 अगर गहराई से आकलन किया जाए, तो रोजगार में समूची अर्थव्यवस्था का दर्शन छिपा हुआ है। आज जबकि हर युवा को सरकारी नौकरी या निजी क्षेत्र में सम्मानजनक नौकरी दिला पाना संभव नहीं दिखता, वहां स्वरोजगार का विकल्प एक साथ कई चुनौतियां से पार पाने का मार्ग बन सकता है। हिमाचली परिस्थितियां तो स्वरोजगार के लिए हर लिहाज से अनुकूल माहौल उपलब्ध करवाती हैं। ग्रामोद्योग की सरल सी डगर पर बढ़ते हुए यदि इतने परिणाम हासिल हो सकते हैं, तो इस राह में बढ़ने पर हर्ज ही क्या है? सरकार को अब यह समझना चाहिए कि केवल बड़ी मशीनें स्थापित करना ही औद्योगिकीकरण नहीं है। लघु एवं मध्यम ग्रामोद्योग भी औद्योगिकीकरण का हिस्सा हैं। इन्हें बजट में उचित स्थान मिलना ही चाहिए, क्योंकि इनके जरिए उत्पादन और रोजगार दोनों हित सधते हैं।

ई-मेल : luckybhadwal.dh@gmail.com


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