टेलीपैथी का रहस्य

By: Feb 18th, 2017 12:05 am

मानव मस्तिष्क में छिपी हुई रहस्यमयी शक्तियों पर विश्वास करने वाले मानते हैं कि मनुष्य के अवचेतन  मन मे अलौकिक, अविश्वसनीय और अकल्पनीय शक्तियां विद्यमान हैं। यदि अवचेतन मन की उन शक्तियों को जागृत कर  लिया जाए तो अनेकानेक कौतुकमयी चमत्कार खुद-ब-खुद होने लगते हैं। जैसे-किसी व्यक्ति के जीवन के गुप्त रहस्यों का पता लगना, मन की बात जान लेना, किसी भी व्यक्ति से मिलते ही उस व्यक्ति के भूत, भविष्य तथा वर्तमान की जानकारी प्राप्त कर लेना या उसके साथ घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट देख लेना इत्यादि क्रियाएं साधक के जीवन में आकस्मिक होने लगती हैं। ऐसी चमत्कारिक घटनाओं को अतींद्रिय शक्ति का चमत्कार कहा जाता है। अमरीकी मनोवैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में उठ रही तरंगों पर काफी शोध किया। फलस्वरूप वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मन के अन्दर की अवचेतन मन को यदि क्रियाशील बनाया जाए तो बिना किसी आधुनिक उपकरणों तथा बिना किसी संचार माध्यमों के भी मन के तरंगों को पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन के रहस्यों को जाना जा सकता है, तथा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के मन पर अपना प्रभाव डाल सकता है और उसे अपने मनोनुकूल कार्य करने को बाध्य कर सकता है। इसी आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने अतींद्रिय शक्तियों से संपन्न व्यक्तियों पर परीक्षण कर पता लगाया कि मनुष्य के मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होते ही सारे आकाश मंडल में अल्फा तरंगों के रूप मे फैल जाती है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपने अंर्तमन को जाग्रत कर उन अल्फा तरंगो को पकड़ कर किस्ी भी व्यक्ति के मन मे उठ रहे विचारों को पढ़ सकता है अथवा हजारों किलोमीटर दूर घट रही घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है। भूतकाल की जानकारी तथा भविष्य में घटने वाली घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है। प्राचीन योग शास्त्रों के अनुसार ध्यान साधना के द्वारा अतींद्रिय शक्तियों को जगाकर मानसिक  शक्तियों के माध्यम से दूर दृष्टि, दूरबोध, विचार संप्रेषण एवं इत्यादि कार्य संपन्न किए जा सकते हैं। ध्यान का सीधा-सीधा संबंध मन से है। मनुष्य के अंदर दो प्रकार का मन होता है एक बाह्य मन तथा दूसरा अंतर्मन। अंर्तमन की अपेक्षा बाह्य मन का स्वभाव अत्यंत चंचल तथा कुटिल है। इसमें काम क्रोध, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, राग, द्वेष, छल, कपट इत्यादि विकार उत्पन्न होते रहते हैं। अंतर्मन का स्वभाव शांत, निर्मल और पवित्र है। यह मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करता है। इसी में  अलौकिक, दिव्य और चामत्कारिक शक्तियां निहित होती हैं। बाह्य मन जब सुप्तावस्था में होता है तब अंतर्मन सक्रिय होने लगता है और इसी अवस्था को ध्यान  कहा जाता है। मन को बेलगाम घोड़े की  संज्ञा दी गई है क्योंकि मन कभी एक जगह स्थिर नही रहता तथा शरीर की समस्त इद्रियों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश करता है। मन हर समय नई-नई इच्छाओं को उत्पन्न करता है। एक इच्छा पूरी नही हुई कि दूसरी इच्छा जागृत हो जाती है। और मनुष्य उन्हीं इच्छाओं की पूर्ति की चेष्टा करता रहता है। जिसके  लिए मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, पीड़ा इत्यादि से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद जब मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति नही हो पाती तब मन में क्लेश तथा दुख होने लगता है। यदि मन को किसी तरह अपने वश में कर एकाग्रचित्त कर लिया जाए तब मनुष्य की आत्मोन्नति होने लगती है। समस्त प्रकार के विषय विकारों से ऊपर उठने लगता है और अंतर्मन में छिपे हुए ऊर्जा के भंडार को जाग्रत कर अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। मन को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है परंतु कुछ प्रयासों के बाद मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मन को साधने के लिए शास्त्रों में अनेकों प्रकार के उपाय हैं, जिसमें से सबसे आसान तरीका है ध्यान साधना। ध्यान के माध्यम से कुछ ही दिनों या महीनों के प्रयास से साधक अपने मन पर  पूरी तरह नियंत्रण रखने में समर्थ हो सकता है।  ध्यान साधना से मन के सारे विकार धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं तथा अंतर्मन जागृत तथा चैतन्य होने लगता है। मन की एकाग्रता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। मनुष्य के शरीर की सुप्त शक्तियां जागृत होने से शरीर पूर्णतः पवित्र निर्मल तथा निरोग हो जाता है। सर्व प्रथम साधक ब्रह्ममुहूर्त मे उठकर स्नान आदि क्त्रियाओं से निवृत होकर अपने पूजा स्थान अथवा किसी निर्जन स्थान में पऽासन, सिध्दासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान लगाने  का प्रयास करे, ध्यान लगाते समय अपने सबसे पहले अपने आज्ञा चक्त्र पर ध्यान केद्रित करे तथा शरीर को अपने वश मे रखने का प्रयास करें बिल्कुल शांत निश्चल और स्थीर रहें, श्रीर को हिलाना डूलना खुजलाना इत्यादि न करें। तथा नियम पुर्वक ध्यान लगाने का प्रयास करें।

ध्यान साधना के तीन आयाम 

 सर्वप्रथम साधक जब ध्यान लगाने की चेष्टा करता है तब मन अत्यधिक चंचल हो जाता है तथा मन में अनेकों प्रकार के ख्याल उभरने लगते हैं। साधक विचार को जितना ही एकाग्र करना चाहता है उतनी ही तिव्रता से मन विचलित होने लगता है तथा मन में दबे हुए अनेकों विचार उभर कर सामने आने लगते हैं इस लिए ध्यान साधना को तीन आयामों में विभक्त किया गया है।

 1 विचार दर्शन

 2 विचार सर्जन

 3 विचार विसर्जन।

विचार दर्शन- साधक को चाहिए कि जब ध्यान लगाने बैठे तब मन में जो विचार उत्पन्न हो उसे होने दें विचारो को आने से न रोकें न ही विचारो को दबाने की चेष्टा करे। मन में विचार लाना नही है और न ही विचारों को आने से रोकना है, केवल दृष्टा बन कर विचारों को देखते रहना है।  मन एक विचार से दुसरा विचार दुसरे से तीसरा इस तरह से अनेको प्रकार के विचार घटना, दुर्घटना, वास्तविक तथा काल्पनीक अनेकों विचार मन में उत्पन्न होते रहेंगे परंतु आपको उन विचारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने की जरूरत नही केवल दृष्टा बनकर आप देखते जाइये कि मन किस प्रकार कल्पना लोक में उड़ान भर रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे आपके विचारों में कमी आने लगेगी और विचार स्थीर होने लगेंगे।

विचार सर्जन- इस क्त्रिया में  साधक को अपनी आँखे बंद कर मन को आज्ञाचक्त्र पर कुछ देर तक केद्रित करने का प्रयास करना चाहिए तत्पश्चात मन मे कोई विचार लाए और कुछ देर तक उस पर ध्यान को केद्रित करें और उस विचार को मन से हटा दें तथा पुनः दुसरा विचार लाएं और उस पर भी कुछ देर तक ध्यान केंद्रित कर उसे भी मन सें हटा दें। इस तरह मन में अलग-अलग विचारों को लाते रहें तथा कुछ देर तक उसपर अपना ध्यान केंद्रित कर उसें हटाते जायें। इस तरह करते रहने से धीरे-धीरे मन थकान अनुभव करने लगेगा और कुछ देर के लिए कुछ सोंचना बंद कर देगा, आपको ऐसा लगेगा कि मन आराम करना चाह रहा है।धीरे-धीरे  आप देखेगे कि मन आपके काबु मे हो ने लगेगा तथा विचार शुन्य होने लगेगा।

विचार विर्सजन- साधक अपनी आँखे बंद कर धीरे-धीरे गहरी श्वांस ले और धीरे-धीरे छोड़े कुछ देर बाद मन में कोइ विचार आने दें। जैसे ही मन में कोइ विचार आता है उसे तुरंत अपने मन से हटा दें, फिर मन में कोइ विचार आये उसे भी हटा दें, इस तरह मन मे उठने वाले सभी विचारो को मन से हटाते जाएं ऐसी क्त्रिया को हि विचार विर्सजन कहा जाता है।  इस क्त्रिया मे साधक को चाहिए कि मन मे उठने वाले विचारों को न रोकें बल्कि उन विचारों को मन से हटाने का प्रयास करते रहना चाहिए। इस प्रकार से अभ्यास करते रहने से मन निर्विकार तथा निर्विचार होने लगता है और विचार शुन्य की स्थिती बनने लगती है तथा अर्तमन के जागृत होने से अलौकिक एवं चमत्कारिक दृष्य तथा घटनाएं ध्यान की अवस्था में दिखाई देने लगते हैं।

ध्यान की अवस्था में टेलिपैथी

 जब साधक का मन एकाग्रचिश्र होने लगे तब टेलीपैथी का प्रयोग प्रारंभ करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले अपने गुरू या इष्ट से प्रत्यक्ष अथवा ध्यानावस्था में मानसिक अनुमति ले कर प्रयोग करना चाहिए। सर्वप्रथम अपने इष्ट या गुरू की प्रतिमा अथवा चित्र को अपने पूजा स्थान में इस प्रकार रखें ताकि वह आँखों के ठीक सीध में तथा ढाई फीट की दुरी में रहे। फिर उसपर अलपक दृष्टि से देखने का प्रयास करें। इस प्रक्त्रिया को त्राटक कहा जाता है। त्राटक का अभ्यास किसी बिंदु, शक्ति चक्त्र, क्त्रिसटल बाल, दीपक की लौ, चंद्रमा, तारा अथवा सुर्य पर बारी-बारी से अभ्यास किया जाता है। जिसके द्वारा साधक के आँखों में अद्भुत सम्मोहन शक्ति आने लगती है, तथा साधक को सम्मोहन के क्षेत्र में पूर्णं सफलता प्राप्त हो जाती है।  परंतु टेलिपैथी के लिए अपने इष्ट अथवा गुरू के चित्र पर त्राटक का अभ्यास करना चाहिए। प्रारंभ में त्राटक का अभ्यास करने पर ज्यादा देर तक अपलक टकटकी लगाकर देख पाना संभव नही इसलिए धीर धीरे प्रयास करते हुए समय को बढ़ाते जाएं।  जब आँखों में आंसु आने लगे तब कुछ देर के लिए आंखों को विश्राम दें तथा आंखों पर ठन्डे पानी का छिटा मारें फिर अभ्यास करें इस तरह जब 10-15 मिनट का अभ्यास होने लगे तब उस तस्वीर में आपको अजीब सा नीला प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देगा जिसकी रोशनी आखों में समाहित होती हुई नजर आएगी। जब इस तरह के दृष्य नजर आने लगें तब समझ लीजिए कि  आप सफलता के काफी करीब हैं। फिर अपनी आँखों को बंद कर लें ऐसा करने के बाद भी आपको वह चित्र दिखाई देती रहेगी।  अब आप उस चित्र के मस्तिष्क में अपना ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ऐसा करते ही आपको अहसास होगा कि आप अपने गुरू के मानसिक तरंगों को भलीभांति देख पा रहे हैं, तथा उनसे वार्तालाप करने का प्रयास करने लगे हैं। जब अपने गुरू या इष्ट से किसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होने लगे तब किसी भी व्यक्ति के चित्र पर त्राटक करते हुए अपनी आँखों को बंद कर उसका प्रतिबिम्ब अपने आँखों मे उतार लें फिर ध्यान करते हुए उसके मस्तिष्क में उठने वाली तरंगों को पकड़ने का प्रयास करें इस तरह धीरे-धीरे आप  लोगों के मस्तिष्क के तंरंगों को अपने मस्तिष्क के तरंगों से जोड़ने में सक्षम हो पायेंगे। जब आप मन के तरंगों को पकड़ने में अभ्यस्त हो जाएंगे तब आपको किसी भी व्यक्ति का चित्र अथवा मूति की आवस्यकता नही पड़ेगी। आप स्वतंत्र रूप से किसी भी व्यक्ति के मन के तरंगों को पढ़ पाने में सक्षम हो जायेंगे चाहे वह मनुष्य आपके पास हो अथवा कितना भी दुर हो


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