बजट में पुलिस की भी हो पैरवी

By: Feb 28th, 2017 12:02 am

( सुरेश कुमार लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं )

सरकार ने गत वर्ष से पुलिस में भी अनुबंध पर भर्ती करना शुरू कर दी है, जो पुलिस सेवा के प्रति युवाओं के आकर्षण को कम कर सकती है। अनुबंध आधार पर पुलिस में भर्ती हुआ युवा भला 8000 रुपए में अपनी ड्यूटी के प्रति कितना समर्पित होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है…

कोई भी देश, प्रदेश और समाज तब तक समृद्ध नहीं हो सकता, जब तक वह सुरक्षित न हो। बिना सुरक्षा के समृद्धि कोई मायने नहीं रखती है। देश को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जहां सेना अहम भूमिका निभाती है, वहीं प्रदेश और समाज को सुरक्षित रखने में पुलिस महत्त्वपूर्ण किरदार अदा करती है। हम बात हिमाचल पुलिस की ही करेंगे। समय के साथ बहुत कुछ बदला है, पर अभी भी हिमाचल पुलिस में कई कमियां देखने को मिलती हैं। सबसे पहली कमी तो यही है कि जितना पुलिस बल प्रदेश को चाहिए, उतनी संख्या में पुलिस जवान नहीं हैं। बाकी कमियां तो बाद की बात है, सबसे पहले पुलिस में रिक्त पदों को भरना निहायत ही जरूरी है। वर्तमान में हिमाचल पुलिस में 17119 पदों में से 14471 पद ही भरे गए हैं। यानी 2648 पद खाली चल रहे हैं। आईपीएस के स्वीकृत 89 पदों में से 71 पद भरे गए हैं और एचपीएस के 172 पदों में से 159 पद ही भरे गए हैं। अगर प्रदेश की जनसंख्या के हिसाब से पुलिस का अनुपात देखें, तो एक लाख आबादी पर 232 पुलिस जवान ही हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की लगभग 70 लाख की आबादी कितनी सुरक्षित होगी। अभी हाल ही में पांच राज्यों में चुनावों के चलते हिमाचल से भी पुलिस जवानों को चुनावी ड्यूटी पर भेजा गया है, तो पीछे प्रदेश किस के हवाले है। हिमाचल देवभूमि जरूर है, पर अपराध का आंकड़ा यूपी-बिहार से कम भी नहीं है। आए दिन समाचार पत्रों में चोरी, तस्करी, बलात्कार और हत्या की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार को बजट में पुलिस भर्ती के लिए उपाय करते हुए पैसे का प्रावधान करना चाहिए। प्रदेश पुलिस के पास डॉग स्क्वायड की बात करें, तो महज 20 कुत्ते ही पुलिस के खुफिया तंत्र के पास हैं और नाम के लिए पुलिस के पास एकमात्र बुलेट प्रूफ गाड़ी है। कोई वीआईपी प्रदेश में आता है, तो इसी गाड़ी का सहारा है और अगर यह गाड़ी ऐन टाइम पर जवाब दे जाए तब क्या हो।

पुलिस को हर एंगल से चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत है। पुलिस को सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए भी फंड की जरूरत होती है। वर्तमान में पुलिस ने हाई-वेज पर जो सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, वे हाई क्वालिटी के नहीं और एनपीआर (नंबर प्लेट रीडर)भी नहीं हैं। उनसे गाड़ी की नंबर प्लेट तक नहीं पढ़ी जाती, तो पुलिस कैसे पकड़ेगी अपराध कर के भागने वाले लोगों को। दूसरी कमी यह कि पुलिस का मनोबल ऊंचा रखने के लिए सरकार को पुलिस जवान के वेतन-भत्तों में सम्मानजनक बढ़ोतरी करनी चाहिए ताकि वे अपनी आर्थिक विषमताओं में ही न उलझे रहें। और तो और सरकार ने गत वर्ष से पुलिस में भी अनुबंध पर भर्ती करना शुरू कर दी है, जो पुलिस सेवा के प्रति युवाओं के आकर्षण को कम कर सकती है। अनुबंध आधार पर पुलिस में भर्ती हुआ युवा भला 8000 रुपए में अपनी ड्यूटी के प्रति कितना समर्पित होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए सरकार को पुलिस की भर्ती अनुबंध पर न कर के नियमित आधार पर करनी चाहिए। सिर्फ वेतन-भत्ते बढ़ा देने से ही पुलिस का मनोबल नहीं बढ़ेगा, बल्कि उनके रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाकर भी उनके मनोबल में सुधार किया जा सकता है। पुलिस जवानों के लिए रहने कि लिए कई जगह ऐसे भवन हैं, जहां अंदर रहते हुए भी डर लगता है कि ये अब गिरे कि तब। पुलिस जवानों के लिए अच्छे दर्जे की रहने की व्यवस्था की जाए और उनके खाने की व्यवस्था में भी सुधार हो। इन सब कामों के लिए पैसे की जरूरत होगी और सरकार को यह पैसा बजट में उपलब्ध करवाना चाहिए। हम यदि हिमाचल पुलिस को स्मार्ट पुलिस देखना चाहते हैं, तो उसे सुविधाएं और सहूलियतें देना जरूरी हैं। पुलिस की नौकरी दूसरी सरकारी नौकरियों से ज्यादा जोखिम भरी और चुनौतीपूर्ण होती है। जहां बाकी नौकरीपेशा लोग दिन-त्योहार पर अपने परिवार के साथ होते हैं, वहीं पुलिस वाले चौक-चौराहों पर ड्यूटी दे रहे होते हैं।

उनके लिए ड्यूटी ही त्योहार है। प्रदेश में पुलिस बल कम होने के कारण रिक्त पदों का काम भी दूसरे जवानों को करना पड़ता है। लगातार तो मशीन भी जवाब दे जाती है और पुलिस वाले तो फिर भी इनसान हैं, कैसे इतना तनाव सहेंगे। सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिएं कि पुलिस वाले भी अपने मनोरंजन के लिए कुछ समय निकाल सकें। साल में या कम से कम दो साल में एक बार उन्हें परिवार के साथ कहीं घूमने का प्रबंध सरकारी तौर पर सरकारी खर्चे से किया जाए। और वर्तमान हालात तो ये हैं कि पुलिस जवान को छुट्टी भी जब ज्यादा जरूरी हो, तब ही मिलती है। इस समस्या का हल यही है कि पुलिस में जरूरत के मुताबिक संख्या बल हो। अब बात करते हैं पुलिस के पास हथियारों की। तो ज्ञात सूत्रों के अनुसार पुलिस के पास अभी भी पुराने ढर्रे के ही हथियार हैं और वे भी बहुत कम मात्रा में। ज्यादातर पुलिस वालों को हाथ में डंडा लिए ही ड्यूटी करते देखा जाता है। आज अपराध जगत में एक से एक आधुनिक हथियार हैं, तो पुलिस को भी उस हिसाब से खुद को हथियारों के मामले में अपडेट करना चाहिए। बात गाडि़यों की करें , तो पुलिस के पास  गाडि़या कम हैं और जो हैं, वे धक्का स्टार्ट हैं। पुलिस के पास साधन-संसाधन उम्दा होने पर ही वह अपनी ड्यूटी बेहतर ढंग से निभा सकती है। अगर हम चाहते हैं कि हिमाचल में सिर्फ नाम के लिए पुलिस न हो, तो पुलिस की इन खामियों को इस बजट में पैसे का प्रावधान कर दूर करना पड़ेगा वरना बजट तो हर साल आएगा और पुलिस भी जैसे- तैसे अपनी ड्यूटी करती ही रहेगी, पर अपराध के आंकड़े को बढ़ने से रोकना मुश्किल होगा और तब हिमाचल को दिल से ‘देवभूमि’ कहने में हिचकिचाहट महसूस होगी।

ई-मेल : sureshakrosh@gmail.com


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