बिगड़े न गुरु-शिष्य परंपरा

By: Feb 25th, 2017 12:01 am

( देव गुलेरिया, योल कैंप, धर्मशाला )

हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण, गौरवमय और गरिमापूर्ण स्थान रहा है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में इसका वर्णन किया गया है कि किस तरह गुरु को शिष्य का और शिष्य को गुरु का सम्मान करना चाहिए। किस तरह इस गरिमा और रिश्ते को देखा जाना व निभाना चाहिए। दोनों को एक-दूसरे को कितना-कैसे सम्मान देना चाहिए, इसकी भी सीमा निर्धारित है। आज शिक्षा संस्थानों में इस रिश्ते की पवित्रता-गरिमा किस दिशा में मोड़ ले रही है।  जिस तरह बच्चियों की स्कर्ट उतार बाहर मैदान में खड़ा कर शिक्षकों द्वारा प्रताडि़त-दंडित किए जाने का समाचार हाल ही में एक दूरदर्शन चैनल पर दर्शाया गया था, वह कितने खेद की बात है। इसी तरह एक शिक्षक ने 76 बच्चों का एक वीडिया बना अश्लीलता का एक नया उदाहरण पेश किया। इसी तरह के कई उदाहरण शिक्षा संस्थानों में सुनने-पढ़ने को हर रोज मिल रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र के ये प्रकरण हमारे और शिक्षा पद्धति के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। अतः शिक्षकों को इसके प्रति अपनी मनोवृति में बदलाव लाना होगा। हमारी संस्कृति का अध्ययन अवश्य कर गुरु-शिष्य के रिश्ते को समझना होगा। शिक्षा संस्थान संचालकों को ऐसी घटनाओं के प्रति सख्त कदम उठाने होंगे। सरकार-शिक्षा विभाग को कठोर नियम तय कर उन्हें सभी शिक्षा संस्थानों, सरकारी एवं निजी, में कठोरता से लागू करने की व्यवस्था करनी होगी। जो संस्थान तय नियमों का पालन नहीं करते हैं, उनकी मान्यता रद्द करनी होगी। तभी इस घिनौनी परंपरा पर रोक लग पाएगी।

 


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