बेहतर राजधानी के लिए

By: Feb 23rd, 2017 12:01 am

राजनीतिक अखाड़े में दूसरी राजधानी का भौगोलिक या राजनीतिक अर्थ जो भी निकाला जाए, लेकिन शिमला को बेहतर राजधानी बनाने का औचित्य स्वीकार करना होगा। हिमाचल की पूर्णता का एक विशाल चेहरा अगर शिमला है, तो इसकी विराटता का स्वरूप भी तय होना चाहिए। क्या शिमला का मौजूदा दौर अपनी गरिमा का एहसास है या इसकी वक्रता बढ़ रही है। जाहिर है शिमला ने अपने दर्पण को पिछले कुछ सालों में निराश किया है, तो इससे विकल्पों की शक्ल भी दिखाई दी। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एक रास्ता चुना या दूसरी ओर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शिमला के मानवीय दबाव को समझने की आवश्यकता बताई, लेकिन हकीकत यह है कि राजधानी महज आबादी नहीं, सलीका है और प्रबंधन का दस्तूर भी। किसी भी पर्वतीय प्रदेश की राजधानी अगर आसानी से मुकम्मल हो पाती तो उत्तराखंड अब तक अलग तंबू गाड़ चुका होता। इसलिए बहस यह नहीं है कि शिमला का विकल्प ढूंढा जाए, बल्कि यह है कि इस धरोहर शहर को कब्र बनने से रोका जाए। एनजीटी भी शिमला के अस्तित्व की खुरचनों से भविष्य की जरूरतों का हल निकालना चाहता है और कमोबेश यह राज्य की जिम्मेदारी भी है कि राजधानी के लहजे को दबने न दे। हम कतई दूसरी राजधानी के संदर्भों में दरबार मूव की वकालत नहीं करते, लेकिन शिमला के दबाव अगर राज्य भर में बंट जाते हैं, तो ऐसे समाधानों का रास्ता खुलना चाहिए। शिमला से बाहर विधानसभा का शीलकालीन सत्र अगर एक हकीकत बन सकता है, तो कई विभागों के मुख्यालय भी अन्यत्र भेजे जा सकते हैं। यही प्रयोग हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के दूसरे क्षेत्रीय अध्ययन के रूप में मंडी में हो रहा, तो नए प्रस्तावों में अन्य अनेक विकल्प सफल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए पालमपुर में कृषि विश्वविद्यालय की मौजूदगी से कृषि निदेशालय की स्थापना का विकल्प जुड़ता है। सोलन में बागबानी विश्वविद्यालय के साथ विभागीय निदेशालय का नाता संपूर्ण होगा। सुंदरनगर में ऊर्जा निदेशालय की स्थापना उसी तरह संभव है, जिस तरह तकनीकी शिक्षा निदेशालय का अस्तित्व यहां मजबूत हुआ। अगर मत्स्य विभाग का निदेशालय बिलासपुर में स्थापित किया जा सकता है, तो साहसिक खेलों के अलग निदेशालय का औचित्य मनाली में पूरा हो सकता है। इसी संतुलन के एक स्वाभाविक ठौर के रूप में धर्मशाला का निरूपण होता है, तो एक साथ शिक्षा, युवा एवं खेल, भाषा, कला एवं संस्कृति, सहकारिता व ग्रामीण विकास से जुड़े निदेशालय स्थापित किए जा सकते हैं। इसी तर्ज पर मेडिकल शिक्षा निदेशालय व विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मंडी तथा उद्योग निदेशालय को बीबीएन या ऊना में तर्कसंगत बनाया जा सकता है। कहना न होगा कि शिमला के वजूद की निशानी में ऐसी राजधानी का स्वरूप चाहिए, जो अपने इतिहास व धरोहर मूल्यों का संरक्षण कर सके। ऐसे मेें शिमला-सोलन के मध्य स्थल पर कर्मचारी नगर की परिकल्पना को साकार करते हुए, राजधानी का नया शक्ति स्थल बनाना होगा। अपने इतिहास से बाहर निकलकर शिमला जिसे प्रगति मान रहा है, दरअसल वहां राजधानी की परिक्रमा टूट रही है। शिमला में राजधानी का महत्त्व इसके इतिहास से कहीं अधिक जुड़ता है, इसलिए इसे महज शहर के बजाय इसकी परंपरा, शिष्टता, विशिष्टा, सादगी व सौहार्द से जुड़ता है। इसे हम किसी मैदानी राज्य की राजधानी की तुलना में विकसित नहीं कर पाएंगे, बल्कि एक अलग तहजीब व मिजाज का शहर रहने दें तो बेहतर होगा। ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न सरकार की गद्दी और सचिवालय की कार्यशैली का है। विडंबना यही है कि राज्य के हृदय के रूप में कई बार सचिवालय का दिल नहीं धड़कता या सरकार की आदतें शिमला से पूरे प्रदेश की नब्ज नहीं टटोल पातीं। अतः शिमला के अस्तित्व को गरिमापूर्ण बनाने तथा राजधानी के फर्ज को निभाने के लिए, कार्य संस्कृति को परिमार्जित करने की आवश्यकता को समझना होगा। शिमला को स्मार्ट सिटी बनाने की चाहत की पहली शर्त भी यही है कि यह स्थल वास्तव में प्रदेश की राजधानी की तरह नजर आए व अपना संचालन भी इसी खूबी के साथ करे।


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