भारतीय आईटी का अमरीकी भविष्य

By: Feb 24th, 2017 12:01 am

प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार प्रत्यक्ष और सार्वजनिक तौर पर एच1बी वीजा का मुद्दा उठाया है। 26 अमरीकी सांसदों के साथ संवाद के दौरान उन्होंने भारत और उसके सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) पेशेवरों के मुद्दे पर सरोकार जताया। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप अप्रवासी वीजा में संशोधन करना चाहते हैं। अवैध अप्रवासियों को तो देश से तुरंत निकालने का आदेश दे दिया गया है। उसके मद्देनजर भी करीब पांच लाख भारतीयों पर अमरीका से निकाले जाने का संकट है। दरअसल अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की दृष्टि है कि अमरीकी नौजवानों को ही नौकरियां दी जाएं। अमरीका को दोबारा महान बनाने के मद्देनजर ट्रंप अमरीकीपन की ही बात करना चाहते हैं और उसे लागू भी करना चाहते हैं। अमरीका के लिए यह एक अजीब द्वंद्व की स्थिति हो सकती है, क्योंकि बीते कुछ अंतराल से भारत के साथ उसके हर तरह के रिश्ते मजबूत हुए हैं और दोनों आपस में ‘स्वाभाविक मित्र’ होने का भी दावा करते रहे हैं। सामरिक स्तर पर और हथियारों के थोक खरीदार के तौर पर भी भारत अमरीका का खजाना माना जाता है, लिहाजा महज एक वीजा के मुद्दे पर दरारें डालने के पक्ष में दोनों ही देश नहीं होंगे। हमारे नौजवान पेशेवरों ने अमरीका में ‘आईटी क्रांति’ का सूत्रपात किया है, नतीजतन अमरीका की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों ही समृद्ध हुए हैं। यदि ट्रंप की वीजा नीति के मद्देनजर एच1बी हासिल करना मुश्किल होगा या कंपनियों द्वारा वेतन और भत्तों को अमरीकी मानकों के मुताबिक बढ़ाना व्यावहारिक नहीं होगा, तो नुकसान अमरीका और भारत दोनों का ही होगा। करीब 80 देशों में भारतीय आईटी का बाजार है। उसमें 60 फीसदी से ज्यादा निर्यात हम अमरीका को करते हैं और पेशेवरों की सेवाएं भी मुहैया कराते हैं। कहा जाता है कि अमरीका की ‘सिलिकॉन वैली’ भारतीय आईटी पेशेवरों के दम पर ही टिकी है। यह कुछ अतिशयोक्ति भी हो सकती है, लेकिन अमरीका में आईटी का यथार्थ कमोबेश यही है। भारत आईटी के क्षेत्र में 10 लाख करोड़ रुपए का कारोबार करता है। टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस आदि हमारी प्रमुख आईटी कंपनियां हैं। अमरीकी सांसदों ने भी प्रधानमंत्री मोदी को आश्वस्त किया है कि वे भी गंभीरता से विधेयक को पढ़ेंगे कि आखिर ट्रंप प्रशासन चाहता क्या है? हालांकि भारतीयों के लिए आस्टे्रलिया और कनाडा के आंगन भी खुले हैं। वे दोनों देश हमारे आईटी उद्योग और पेशेवरों को न्योता दे रहे हैं। भारत के दौरे पर आए यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने भी कहा है कि वह भारतीय आईटी पेशेवरों को काम देने की अनुमति के लिए तैयार है। दल ने अमरीकी सरकार के संरक्षणवादी रवैये की आलोचना भी की है। यूरोपीय दल का मानना है कि उनके यहां भारतीय पेशेवरों की काफी मांग है, लेकिन 60 फीसदी से ज्यादा के बाजार वाले देश को छोड़कर एकदम किसी अन्य देश की ओर कूच करना भी संभव और व्यावहारिक नहीं है। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने फोन पर बातचीत की है और दोनों ही पक्ष उसे ‘सकारात्मक संवाद’ करार देते रहे हैं, लिहाजा लगता है कि अमरीकी प्रशासन भारत के संदर्भ में एच1बी वीजा पर एकदम ढक्कन नहीं लगाना चाहेगा। इस वर्ग के 65-70 फीसदी वीजा भारतीय ही प्राप्त करते रहे हैं। दूसरे स्थान पर चीन है, जो सिर्फ आठ फीसदी ही ऐसे वीजा मांगता रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन वे यह भी मान रहे हैं कि अप्रवासी नीति में बदलाव का असर भारतीय आईटी उद्योग और पेशेवरों पर भी पड़ना तय है। अलबत्ता अमरीकी अर्थव्यवस्था की एक खास बुनियाद भारतीय आईटी बाजार को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकेगा।


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