भावानगर में है भूमिगत जलविद्युत परियोजना

By: Feb 8th, 2017 12:15 am

यहां से हम सतलुज का दृश्य देख सकते हैं तथा पूर्व अनुमति से भूमिगत जल विद्युत परियोजना जिसे संजय विद्युत परियोजना के नाम से जाना जाता है तथा जो एशिया से अपनी तरह की योजना, को देख सकते हैं। इससे पांच किलोमीटर आगे वांगतू नामक स्थान है…

बैंटनी

विरासत से मिला यह भवन तब के सिरमौर के महाराजा का गर्मियों का निवास महल था, जिसका निर्माण 1880 ई. में हुआ था। इसका नाम गवर्नर जनरल लॉर्ड  बैंटिक के नाम से लिया गया है, जो समीपवर्ती ग्रैंड होटल के संकुल में रहता था। इसलिए सारी पहाड़ी को ही बैंटनी नाम से जाना जाता है। इससे पूर्व वहां कैप्टन गार्डन के स्वामित्व की एक जीर्ण-शीर्ण झोंपड़ी थी, जो उस स्थान पर खड़ी है। यह सुंदर भवन, शिखर शिल्प शैली का एक रोचक मिश्रण है जो कि डयोड़ी के ऊपर पैगोडा रूपी रचना और लकड़ी के भरपूर प्रयोग को दर्शाता है। भवन की चारदीवारी ढले हुए लोहे की आड़ द्वारा की गई है, जिसे नाहन के प्रसिद्ध ढलाई के कारखाने (नाहन फाउंडरी) में तैयार किया गया था। सरकार ने 26 जुलाई, 2011 ई. को माल स्थित 130 वर्ष पुराने ऐतिहासिक बैंटनी भवन के अभिग्रहण के आदेश दिए, जिससे किसी भी ऐसे अभियान को विराम लग गया। इसका परिणाम इस बहुमूल्य ब्रिटिश धरोहर को व्यावसायिक उद्यम के लिए खो देना था।

भंगाणी

यह वह स्थान है, जहां सिखों के गुरु गोबिंद सिंह ने गढ़वाल के राजा फतेहशाह और 22 पहाड़ी शासकों की सेनाओं को हराया था। यह स्मारक उन शासकों  की याद में बनाया गया है, जो वहां मारे गए थे तथा वे रानियां जिन्होंने उस समय परंपरा का निर्वहन करते हुए आत्मदाह कर लिया था। यह स्थान सिरमौर जिले में स्थित है। यह पौंटा से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह हिंदू और सिख दोनों की धार्मिक रुचियों का स्थान है। यहां एक गुरुद्वारा और भद्रकाली को समर्पित दो मंदिर हैं। यह दोनों धर्मों के लोगों के लिए पूजनीय है।

भावानगर

यह किन्नौर जिला में स्थित है। यहां से हम सतलुज का दृश्य देख सकते हैं तथा पूर्व अनुमति से भूमिगत जल विद्युत परियोजना जिसे संजय विद्युत परियोजना के नाम से जाना जाता है तथा जो एशिया से अपनी तरह की योजना, को देख सकते हैं। इससे पांच किलोमीटर आगे वांगतू नामक स्थान है, जो जनजातीय क्षेत्र किन्नौर का प्रवेश द्वार है।

देवी कोठी

चंबा में यह छोटा सा गांव देवी चामुंडा के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर 1754 ई. में बनाया गया था। इस मंदिर में लकड़ी की नक्काशी का सुंदर कार्य हुआ है। यद्यपि कालांतर में यह मुस्लिम प्रभाव को भी दर्शाता प्रतीत होता है।


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