महासू देवता के नाम से पड़ा महासू जिले का नाम

By: Feb 22nd, 2017 12:05 am

हो सकता है कि महासू, सिरमौर, जौनसार-बाबर और गढ़वाल में पूजा जाने वाला देवता सिंधु सभ्यता वालों का महेश, महाशिव और महायोगी रहा हो। इसी महासू देवता के नाम पर महासू जिला का नाम भी पड़ा है…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

सर जॉन मार्शल, जिन्होंने इस सभ्यता का पता सबसे पहले 1921-22 में लगाया था, का मत है कि यह मूर्ति शिव की है। उसे ‘महायोगी’ कहा गया है, क्योंकि वह योग मुद्रा में हैं। उसे पशुपति नाम से भी पुकारा गया है क्योंकि उसके चारों ओर पशु दिखाए गए हैं। आज भी  हिमाचल में ऐसे देवता हैं, जिन्हें गाय-बैल, भेड़-बकरी आदि पशुओं का देवता माना जाता है। गाय के जब-जब बछड़ा जन्मता है तो उस गाय का स्वामी उसके तीन-चार दिन पहले के दूध और घी को पशु देवता या ग्राम देवता को इस भावना के साथ चढ़ाता है कि उसका पशु सुरक्षित रहे और उसे पशुधन का सुख हो। मोहनजोदड़ों की एक मुंह में जो दो सींग पुरुष शिव के मुकुट पर दिखाए गए हैं, उसकी प्रथा किसी सीमा तक आज भी हिमाचल प्रदेश में प्रचलित है। अपने आराध्य देवता की मनौती करने वाले व्यक्ति, कस्तूरी मृग, हिरन, बारहसिंगा आदि जंगली जानवरों के सींग मंदिरों के मुख्य द्वारों पर लगाते हैं। संभवतः यह प्रथा सिंधु सभ्यता वालों ने इन्हीं आदि-हिमाचल निवासियों से ग्रहण की होगी। सिंधु सभ्यता की जो शिव रूप आकृतियां मिली हैं, उनका अर्थ विशेषज्ञों ने शिव के अनेक नामों जैसे महेश, महायोगी आदि से लगाया है। यहां पर भी शिव की प्रतिमाएं बनाकर उसे माना जाता था और अब तक माना जाता है। हो सकता है कि महासू, सिरमौर, जौनसार-बाबर और गढ़वाल में पूजा जाने वाला देवता सिंधु सभ्यता वालों का महेश, महाशिव और महायोगी रहा हो। इसी महासू देवता के नाम पर महासू जिला का नाम भी पड़ा है। कुल्लू, मंडी, महासू आदि में पूजे जाने वाले अनेकों देवता सिंधु सभ्यता के शैव धर्म के ही अवशेष हो सकते हैं, जिनकी प्रतिमाएं लोग पालकियों में रखकर शिवरात्रि आदि जैसे उत्सवों में मंदिरों से बाहर लाकर उनके साथ नाचते और गाते हैं। शिव की पूजा के साथ-साथ लिंग तथा योनि की पूजा भी प्रचलित थी। जैसा कि इन दोनों की पाषाण-निर्मित असंदिग्ध असल जैसी मूर्तियों तथा लिंगों से ज्ञात होता है जो कि कश्मीर से लेकर नेपाल तक बहुसंख्यक मूर्तियों के साथ पाई जाती हैं। इसके स्पष्ट उदाहरण चंबा के मणिमहेश, सिमरौर के चूड़ शिखिर (11892 फुट) पर स्थित शिरगुल मंदिर, किन्नर कैलाश और जुब्बल में शाशन गुफा के भीतर प्राकृतिक ढंग से बने शिवलिंग में मिलते हैं। जंगलों और घाटियों में ऐसे बहुत स्थान हैं, जहां ये शिवलिंग मिलते हैं। ऐसे में शिवलिंग और योनियांं सिंधु घाटी सभ्यता से भी प्राप्त हुए हैं। उपर्युक्त उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में यहां के आदिवासियों का लोक धर्म ‘शैव धर्म’ रहा होगा। खशों और आर्यों ने भी यह धर्म ग्रहण किया होगा।


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