लैंगिक समानता के लिए

By: Feb 28th, 2017 12:01 am

( जावेद अनीस (ई-मेल के मार्फत) )

तकनीकी रूप से बंगलूर को भारत का सबसे आधुनिक शहर माना जाता है, लेकिन बीते साल की आखिरी रात में भारत की सिलिकॉन वैली ने खुद को शर्मसार होते देखा। रोशनी से चमचमाते इस शहर की गलियां उस रात लड़कियों के लिए अंधेरी गुफा साबित हुईं, जब भीड़ द्वारा महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई। आर्थिक रूप से हमने भले ही तरक्की कर ली हो, लेकिन सामाजिक रूप से हम अब भी पिछड़े हुए हैं। गैर बराबरी के मूल्यों और यौन कुंठाओं से लबालब नई परिस्थतियों में यह स्थिति विकराल रूप लेती जा रही है। वैसे तो शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ी है और आज कोई  ऐसा काम नहीं बचा है, जिसे वे न कर रही हों। जहां कहीं भी मौका मिला है, महिलाओं ने अपने आपको साबित किया है, लेकिन इन सबके बावजूद हमारे सामाजिक ढांचे में लड़कियों और महिलाओं की हैसियत में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया है। असली चुनौती इसी ढांचे को बदलने की है, जो कि आसान नहीं है। अब यह विचार स्वीकार किया जाने लगा है कि लैंगिक समानता केवल महिलाओं का ही मुद्दा नहीं है। इस गैर बराबरी और हिंसा को केवल महिलाएं खत्म नहीं कर सकतीं। लैंगिक न्याय व समानता को स्थापित करने में महिलाओं के साथ पुरुषों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका बनती है। व्यापक बदलाव के लिए जरूरी है कि पुरुष अपने परिवार और आसपास की महिलाओं के प्रति अपनी अपेक्षाओं में बदलाव लाएं। इससे न केवल समाज में हिंसा और भेदभाव कम होगा, बल्कि समता आधारित नए मानवीय संबंध भी बनेंगे।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App