लोक गाथाओं में देवाख्यान

By: Feb 20th, 2017 12:05 am

सतलुज घाटी देवभूमि है। यहां क्षेत्र अधिष्ठात्री भीमाकाली, अंबिका देवी, परशुराम, कोटेश्वर महादेव, मानणेश्वर महादेव, पंदोई देव, देव कुरगण, ममलेश्वर महादेव, शमशरी महादेव, माहूंनाग और चिखड़ेश्वर महादेव जैसे देवी-देव मंदिर पुरातन काल से संस्कृति व परंपराओं के संरक्षक रहे हैं। देवाख्यान वस्तुतः गोपनीय होता है। मान्यता है कि देवाख्यान जिसे स्थानीय बोली में भारथ अथवा घटसाणी कहते हैं, इसका तभी वाचन-गायन होता है जब देवोत्थान की आवश्यकता होती है। अतः देवी-देवताओं के आख्यान अधिकतर कथा रूप में लोकगाथाओं से सार-संक्षेप रूप में उपलब्ध हैं। देवोत्सव जैसे जन्मोत्सव, संक्रांति, शांद, दिवाली, जागरा जैसे अवसरों पर भारथ (देवोत्थानपरक गाथा) का गायन होता है। इसके अतिरिक्त तीर्थ यात्रा से लौटे देवी-देवता अपनी यात्रा का वृतांत गूर या माली के माध्यम से करता है।

बाहरी सिराज (कुल्लू) में पौष मास को अंधेरा महीना कहा जाता है। अतः यहां का देव समाज इस मास में इंद्रलोक, शिवलोक अथवा यक्ष-राक्षस से प्रजारक्षण के निमित्त युद्ध करते हैं। तदोपरांत फाल्गुन मास की संक्रांति में गड़ाई उत्सव में देवी-देवताओं द्वारा अपनी यात्रा व युद्ध का आख्यान किया जाता है और उसी आधार पर भविष्यवाणी भी उद्घोषित होती है। करसोग घाटी के आराध्य नाग माहूंनाग गलेओग की गाथा में माहूंनाग की कर्ण रूप की उत्पत्ति का वर्णन है। इस गाथा में दानवीर कर्ण ने दरिद्र ब्राह्मण पुत्र को पिता की अंत्येष्टि के लिए अपने सिंहासन को तुड़वाकर चंदन लकड़ी का दान दिया था :

करण राजे किया बचार, कहड़े कियो ब्राह्मण धवार।

भराड़े रीतिये चानण सीना, द्वारे न छाढि़ये कोई परीना।।

मेरा संघासण असको सुका, संघासण सैगु नऊआ नरांगा।

संघासणे टुकिया सहड़ बणाये, द्वारा का जाओ न कीही नरासा।

22 देवगाथाओं के अतिरिक्त गोरखानाथ परंपरा के राजा भर्तृहरि (भरथरी) की गाथा सर्वप्रचलित है जिन्होंने मिथ्या संसार को छोड़ संन्यास धारण कियाः

अजबे री पूजा ढाई दा ग राजेआ आम्मे दित्ता छातिए न लाई।

पिंगले देख दो सबे आजो मुल्कअ आम्मे दिती पोरी आरती लाई।

सतघाटी में वैदिक, पौराणिक, सिद्धनाथ, नाग एवं लौकिक महान आत्माओं की जीवन चरित एवं शौर्य गाथाओं का वाचन-गायन यहां की आदि संस्कृति को चिर जीवन प्रदान करता है। गाथाओं में छिपी शिक्षाएं यहां के जनमानस में मानवीय मूल्यों का चिरकाल से संरक्षण करती आई है। वस्तुतः यहां प्रचलित लोक गाथाएं यहां के इतिहास की वे सरिताएं हैं जिनसे घटनाओं का कालक्रम सूत्रबद्ध हुआ है।‘

— डा.हिमेंद्र बाली ‘हिम’, प्राचार्य, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला, मैलन, जिला शिमला, हिमाचल प्रदेश-172031,


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