लोक गाथाओं में सतलुज का राग

By: Feb 13th, 2017 12:05 am

लोक गाथा में भगवान वामन दो पग में पूरी पृथ्वी लांघ जाते हैं। परिणामतः आधा पद बलि अपने सिर पर धारण करता है। पृथ्वी के राज्य को खोने के बाद बलि भगवान से प्रार्थना करता है कि उसे धरती पर बारह संक्रांतियों और बारह अमावस दी जाएं, परंतु भगवान उसे कार्तिक मास की अमावस देते हैं और महीने के मध्य में आने वाली संक्रांति को आयोजित संक्रांति (साजा) में उसके निमित्त लोकोत्सव प्रदान करते हैं।

कुल्लू के बाहरी सिराज क्षेत्र में ब्रलाज (बरलाज) रामायण कथा से पूर्व मंगलाचरण के रूप में गाया जाता है-

पहले नाओ नारायणों रा जुणी धरती पुआनी। जलथली होई पिरथवी देवी मनसा राखों जगड़ी माणु न होले कब न रीखी एकेही नारायण राजो होला सिद्ध गुरु री भ्योड़ी फा ढाई दाणा शेरो रा भौडा ढाई दाणा शेक रा म्हारै खाडि़ए बाजौ बीजी बीजी रो शेरो जोमदे लगे जोमी रो शेरो गोड़ने लाए…

अर्थात ब्रलाज गाथा में नारायण की स्तुति का वर्णन है, जिसने धरती को प्रकट किया। तभी सिद्ध गुरु गोरखनाथ की झोली में अढ़ाई दाने सरसों के गिरे। अढ़ाई दाने बीजने के उपरांत डेढ़ तोला सरसों पैदा हुई। डेढ़ तोला सरसों से एक पाथा (दो किलोग्राम),  एक पाथा से एक जून (48 सेर), एक जून से एक खार (20 जून) व एक खार से एक खारश (20 खार) सरसों उत्पन्न हुई। इस प्रकार ब्रलाज में यहां गुरु गोरख नाथ को सृष्टिकर्ता माना जाता है। इस तरह का कथानक कमोबेश शिमला और सिरमौर के जिलों में भी प्रचलित है।

सुन्नी के भज्जी (छोटी बल्ल) क्षेत्र में प्रलय के बाद नारायण के पैदा होने का वर्णन विशुद्ध वैष्णव रूप में निरूपित है। भाईया जला थली सारी बे पृथ्वी, ओले ओला राक्षस वासा भाईया नारायण होई गोऐ पैयदा। मना दा सुचो सुचणा, भाईया मना दी सूची गाया सुचणा, देवी मनसा पैयदा होई। भाईया तांई बोलू देवियै मनसा, तू ही सांबे मेरी दरोई, भाईया देवियै, बोलू बैहणे, मां जाणा बीजुऐ बणा खे। भाईया मां जाणा बीजुऐ बणा खे, तू ही सांबे मेरी धरोई।  भाईया नारायणा डेई गोऐ बणा खे, देवी मनसा फोड़ो ली भुजा। भाईया एक भुजा फोड़ी गाई मनसे, ब्रह्म विष्णु पेयदा ओये। भाईया दुजी भुजा फोड़ी गाई देविये, चंद्र सूरज पैयदा ओये। उपरोक्त बरलाज में नारायण द्वारा सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है। उसके संकल्प मात्र से माता मनसा आविर्भूत हुई। माता मनसा ने अपनी चारों भुजाओं से क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, सूरज-चांद, महादेव और वेद पैदा किए। पृथ्वी गाय रूप में खड़ी होकर नारायण से प्रार्थना करती है कि राजा हरिश्चंद्र राजा के पास जाकर एक थाली दान देने को कहते हैं। राजा ने कहा कि यह थाली नहीं पूर्णिमा का चांद है।  अंत में नारायण राजा बलि से कुटिया व सरसों का साग लगाने के लिए तीन कदम धरती मांगते हैं। अंत में बलि को पाताल भेजते हैं। धरती माता को कहा जाता है कि तू क्यों कांपती है? नारायण स्वयं भार संभाल लेंगे। इस प्रकार कुल्लवी समाज और शिमला के सतलुज उपत्यका में ब्रलाज या बरलाज की कथावस्तु एक ही है। जहां कुल्लू के बाहरी सराज में सृष्टि के विस्तार को सिद्ध गुरु से जोड़ा गया है। जबकि शिमला के जनपदीय क्षेत्र में सृष्टि विचार भगवान नारायण विष्णु से ग्रंथिल हैं। लघु कथानक एवं स्थान व नाम लोक कवि की अपनी कल्पना है।

           – डा.हिमेंद्र बाली ‘हिम’ राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला, मैलन, शिमला


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