..लोग तो अब भी पढ़ना चाहते हैं साहित्य
यादविंद्र शर्मा
साहित्य को पाठकों से दूर किया जा रहा है। पाठकों ने कभी भी साहित्य का विरोध नहीं किया है। पत्र-पत्रिकाएं साहित्य को पाठकों से जोड़ने का माध्यम रही हंै। मगर वर्तमान समय में दैनिक पत्र साहित्य को उचित स्थान नहीं दे रहे हैं। वे त्वरित घटनाओं पर फोकस किए हुए हैं। जबकि साहित्य त्वरितता के विपरीत लंबे समय में अपना प्रभाव डालता है। मीडिया को नई तकनीक से क्षण-प्रतिक्षण की घटनाओं के ब्यौरे उपलब्ध होते हैं…संपादकीय पृष्ठ भी रोजाना की राजनीतिक उथल- पुथल को महत्त्व देते हैं। कुछ सालों तक सभी अखबारों में सप्ताह में एक बार साहित्यिक पृष्ठ छपते थे। दूसरी ओर साहित्यिक पत्रिकाओं क ा एक के बाद एक बंद होना पाठक का साहित्य से जुड़ाव कम होने का एक कारण है। जिला स्तर पर भी साहित्यिक पुस्तकों की कोई दुकान नहीं है। लोग तो अब भी साहित्य पढ़ना चाहते हैं। स्कूल और कालेज में भी साहित्य गंभीरता से नहीं लिया जाता और पढ़ाने वाले भी रोजगार के बावजूद साहित्य को गंभीरता से नहीं लेते। वहीं भाषा अकादमी भी साहित्यिक आयोजनों का घिसा पिटा प्रारूप अपनाए हुए है। गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अच्छे साहित्यकारों के विकास के लिए जो प्रयास किए जाने उससे अकादमी अनभिज्ञ है। किसी विशिष्ट लेखक के कृतित्व पर चर्चाएं की जाएं। दिवंगत साहित्यकारों की जयंतियों के आयोजनों में बस दोहराव ही देखने को मिलता है।
हिमाचल के वरिष्ठ कवि यादविंद्र शर्मा की कविताओं की धमक राष्ट्रीय स्तर पर रही है। उनका तीसरा काव्य संग्रह ‘दुनिया खूबसूरत’ इन दिनों चर्चा में है।
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