वसंत में वह

By: Feb 6th, 2017 12:05 am

वसंत में वह

हरियाली सा बिछ जाता है

चहुं ओर

महक सा बिखर जाता है

दूर-दूर तक

फूलों सा हंसता, मुस्कराता है

जी भर कर

मोहक धूप सा खिलता है

हर बस्ती, हर गांव

हवाओं सा बहता है धीरे-धीरे

सबको अपना बनाता हुआ

भंवरों जैसा फूलों पर

इतराता है, मंडराता है, गुनगुनाता है

कोयल सा कुहु-कुहु

बोलता है

वसंत में वह

नव्यता का वासंती लिवास

पहन लेता है

आह्लाद का अमृत पीता है

रंग-बिरंगे खुशियों के फूल

लुटाता है

लोक जीवन में वसंत की मनुहार

सुनाता है

मेलों में शिरकत करता है, ढोल, मंजरियां बजाता है

स्वयं पूरी तरह

बसंतमयी हो जाता है

चहकता है,

हवा में उड़ता है

गीत गाता है

गुलाल खेलता है

रंगोली रचता है

सृजन में डूब जाता है

यादों का वितान

तान लेता है

वासंती बयार सा मृदुल

हो जाता है

भाव विह्वल, प्रेम आवेग से आतुर

इस ऋतु का शैदाई

बन जाता है

कि वसंत में वह

तन-मन दोनों से वासंती-वासंती

हो जाता है।

— हंसराज भारती


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