शैव धर्म था हिमाचल का प्राचीन धर्म

By: Feb 15th, 2017 12:05 am

हिमाचल के एक ओर किन्नर कैलाश और दक्षिण में महासू देवता का मंदिर। इसके मध्य में है देवभूमि हिमाचल प्रदेश, जिसके गांव-गांव और घाटी-घाटी में पाए जाते हैं शिव शक्ति के अनेक मंदिर। इस दृष्टि से यह सिद्ध होता है कि हिमाचल का प्राचीनतम धर्म शैव धर्म ही है…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

प्राप्त सामग्री के आधार पर हम कह सकते हैं कि इस प्रकार हिमाचल प्रदेश का इतिहास असंख्य जातियों, उपजातियों के उदय, विलय, संघर्ष, शांति तथ अनेक वंशों के आविर्भाव, पतन और मिश्रण से ओत-प्रोत है। लगभग पांच साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व यह प्रदेश भली प्रकार बस चुका था और यहां बसने वाले लोग मैदानी भागों की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में उतना ही योगदान देते थे, जितना अन्य जातियों का रहा होगा। ऐसे विविध जाति तत्त्वों के समन्वय और सम्मश्रण से जो संस्कृति उत्पन्न हुई, वह विशुद्ध रूप से हिमाचल की मौलिक एवं लोक मान्य संस्कृति थी। न तो वह पूर्व-खश थी और न ही खश आर्य। वह सबकी सांझी संस्कृति थी। उस सम्मश्रित संस्कृति का एक मुख्य अंग था उनकी धार्मिक भावनाएं। उनकी वे धार्मिक भावनाएं किसी न किसी रूप में यहां-वहां वर्तमान युग तक प्रचलित धर्म में प्रविष्ट रही हैं। हिमाचल के आदि निवासियों के धार्मिक जीवन का पता हमें प्राचीनकाल से चली आ रही परंपराओं, दुर्गम स्थानों में स्थित गुफाओं के भीतर प्राकृतिक रूप से बने हुए लिंगों एवं मूर्तियों और पुराने मंदिरों में पाई जाने वाली प्रतिमाओं से लगता है। सिंधु घाटी में पाई जाने वाली मिट्टी और पत्थर की कुछ मूर्तियों और मुहरों से भी यहां के मूल निवासियों की धार्मिक भावनाओं का पता चलता है। इन उदाहरणों के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि यहां ऐसे देव की उपासना होती थी, जिसे विद्वानों ने शिव, महाशिव, महायोगी, पशुपति, गिरीश आदि के नाम से पुकारा है। इसके उच्चतम उदाहरण हैं, हिमाचल के एक ओर किन्नर कैलाश और दक्षिण में महासू देवता का मंदिर। इसके मध्य में है देवभूमि हिमाचल प्रदेश, जिसके गांव-गांव और घाटी-घाटी में पाए जाते हैं शिव शक्ति के अनेकों मंदिर। इस दृष्टि से यह सिद्ध होता है कि हिमाचल का प्राचीनतम धर्म शैव धर्म ही है। शिव संबंधी कल्पना का विकास आग्नेय जातीय संस्कृति की देन है, यह बात डाक्टर भंडारकर भी मानते हैं। उनका कहना है कि रूद्र-शिव का संबंध आरंभ में जंगली जातियों से रहा होगा। शिव का भांग-धतूरा पीना, गले में सांप और मृगछाला आदि बातें, वनवासियों के ही संस्कार से आई होंगी, जो नाग पूजक रहे होंगे। इन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सिंधु सभ्यता ने जो एक नागरिक सभ्यता थी, शिव की कल्पना इन्हीं वन्य जातियों से ली होगी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिट्टी और पत्थर की बहुत सी मूर्तियों मिली हैं। इनमें एक पुरुष देवता की मूर्ति है, जसके तीन मुख और तीन नेत्र हैं। वह योगासन मुद्रा में एक चौकी पर बैठा और उसके दोनों ओर पशु अंकित हैं। इसमें पुरुष के मस्तक पर दो सींग भी दिखाए गए हैं।


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