संसद ‘बदतमीज’ न हो
संसद कोई गली-मोहल्ला या चाल-चौपाल नहीं है कि मनमर्जी भाषा का उपयोग किया जाए या अभद्र, असभ्य, अश्लील भाषा की हदों तक पहुंचा जाए। वाणी, विचार और वक्तव्य के संदर्भ में औसत सांसद ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री को भी संयमित रहना लाजिमी है। यह किसी संविधान या नैतिकता के दस्तावेजों में नहीं लिखा है। संसद का बजट सत्र हो और ‘रेनकोट’ शब्द के कारण संसद के बहिष्कार की नौबत आ जाए, तो यह संसद की गरिमा और गंभीरता का ही अपमान है। ‘रेनकोट’ कोई असंसदीय या अश्लील शब्द नहीं है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने शास्त्रीय भाषा में रूपक और उपमा का इस्तेमाल किया है, जिसके मायने अभिधा (सीधी-सपाट भाषा) में ग्रहण नहीं किए जाने चाहिए। संदर्भ बेहद गंभीर था कि कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान करीब 12 लाख करोड़ रुपए के घोटाले किए गए। कोयला खदानों के आबंटन पर सुप्रीम कोर्ट ने 122 खदानें रद्द कर दीं। प्रधानमंत्री रहते हुए डा. मनमोहन सिंह तब कोयला मंत्री भी थे। सवाल है कि डा. सिंह घोटालों के समंदर में डूबे रहे, लेकिन दाग एक भी नहीं लगा। शास्त्रीय भाषा में प्रधानमंत्री मोदी का कहना था-रेनकोट पहनकर नहाने की कला डा. सिंह ही जानते हैं। यह प्रत्यक्ष तौर पर किसी के बेडरूम या बाथरूम में झांकने की कोशिश नहीं है। इसे हंसी-मजाक, पर्यायवाची या व्यंग्य की भाषा के तौर पर भी लिया जा सकता है। संसद के भीतर चुटकियां लेने की अच्छी-खासी परंपरा रही है। शायद पूर्व प्रधानमंत्री डा. सिंह इसे जानते होंगे, लिहाजा उन्होंने इस प्रसंग पर चुप्पी ही साधे रखी है। यदि कैबिनेट की ‘सामूहिक जिम्मेदारी’ की अवधारणा को मानें, तो घोटालों के लिए डा. सिंह भी जिम्मेदार थे। यह अलग बात है कि आम धारणा और अदालती इनसाफ में उन्हें बेदाग माना गया। उस दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशंसा ही की है, लेकिन निशाना 10, जनपथ पर रखा गया है। नतीजतन कांग्रेसी चिलचिला रहे हैं। यदि मान-अपमान का प्रसंग है, तो राहुल गांधी ने तत्कालीन कैबिनेट द्वारा पारित अध्यादेश को प्रेस वालों के सामने फाड़ते हुए ‘बकवास’ करार दिया था और एक समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ जोड़ने पर भी सोनिया गांधी ने कोई जवाब नहीं दिया था, क्या ये प्रतिक्रियाएं एक प्रधानमंत्री का अपमान नहीं थीं? बहरहाल आज तो डा. सिंह पूर्व प्रधानमंत्री हैं, लेकिन मोदी तो फिलहाल प्रधानमंत्री हैं। उनके लिए संसद के भीतर कसाई, जल्लाद, यमराज और भस्मासुर से लेकर हिटलर, मुसोलिनी, गद्दाफी सरीखे तानाशाहों की तुलना की गई है, क्या वे मर्यादित और सम्मानजनक शाब्दिक प्रयोग थे? हम गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी के लिए ‘मौत का सौदागर’ और ‘जहर की खेती’ सरीखे शाब्दिक विशेषणों को एक तरफ रखते हैं, लेकिन आज मुद्दा प्रधानमंत्री का है। कांग्रेस ने तो अपने ही दिवंगत प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव का शव कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया था, जबकि वह कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सीताराम केसरी के साथ क्या सुलूक किया गया और उन्हें बाहर किया गया, यह अपमान भी दुनिया ने देखा है। हम इसके पक्षधर नहीं हैं कि कांग्रेस ने भी अपमान किए, तो अब कांग्रेस नेताओं का भी अपमान किया जाए। दरअसल हमारा विवेक यह है कि किसी भी तरह गरिमामय संसद के भीतर ‘बदतमीजी’ न खेली जाए। हालांकि हमारे तर्क हैं कि प्रधानमंत्री ने ‘रेनकोट’ का इस्तेमाल कर पूर्व प्रधानमंत्री का अपमान नहीं किया, लेकिन फिर भी अपेक्षा करेंगे कि प्रधानमंत्री भी भाषा का संयम बरतें। पद की गरिमा बड़ी मूल्यवान होती है। प्रधानमंत्री के तंज भी दायरे में रहें। संसद में विपक्ष ने लामबंद होकर बजट सत्र के अगले चरण में सरकार का विरोध करना तय किया है। यह बेहतर प्रवृत्ति नहीं है। यदि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर पहल करके खेद व्यक्त कर लेते हैं, तो उनका कद घटेगा नहीं, बल्कि यह उनका बड़प्पन होगा।
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