स्नातक डिग्री की गरिमा
( डा. दीपकुमार शुक्ल, नौबस्ता )
आज स्नातक अर्थात उच्च शिक्षित होना अभिश्ाप जैसा बनता जा रहा है। शिक्षित बेरोजगारों की निरंतर बढ़ रही संख्या एक गंभीर चिंता का विषय है। कुछ वर्षों पूर्व तक तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर लेने पर सरलता से रोजगार मिल जाता था, परंतु अब यहां भी बेरोजगारी का ग्राफ निरंतर चढ़ता जा रहा है। एक समय ऐसा भी था जब स्नातक होना अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। स्नातकों को समाज में विशेष आदर मिलता था। अंग्रेजों के समय शासन-प्रशासन के अधिकारी तक स्नातकों का खड़े होकर सम्मान करते थे। शायद तभी स्नातक उपाधि प्राप्त कर लेने वाले अधिकांश लोग अपने सरनेम की जगह स्नातक लिखना पसंद करते थे। जिस शैक्षणिक स्तर को कभी इतना अधिक महत्त्व मिलता था, आज उसी स्तर की शिक्षा प्राप्त कर लेने वाले न केवल दर-दर भटक रहे हैं बल्कि सामाजिक असहिष्णुता के भी शिकार हैं। आज उन्हें स्वयं को शिक्षित कहने में भी संकोच होता है। गाँधी जी द्वारा दी गयी शिक्षा की परिभाषा के अनुसार ‘शिक्षा वह है जो रोजगार की गारंटी देती हो।’ आज स्नातक ही नहीं, बल्कि परास्नातक तथा विद्या वाचस्पति तक की उपाधि लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं। कोई भी उनकी सुध लेने वाला नहीं है। किसी भी देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोजगार सुनिश्चित करना उस देश की सरकारों का दायित्व होता है और सरकार को उसके दायित्व के प्रति सचेत करना तथा इसके लिए कार्ययोजना प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी जन प्रतिनिधियों की होती है। आशा है कि भविष्य में यह वर्ग अपने दायित्व को समझते हुए, इसका निर्वहन भी करेगा।
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